भारत में वैवाहिक विवादों से जुड़े कानूनी मामलों में धारा 498ए (भारतीय दंड संहिता) का दुरुपयोग एक गंभीर मुद्दा रहा है। इस धारा के तहत पति या उसके परिवार पर पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आरोप लगाए जाते हैं। हालांकि, कई बार इसका इस्तेमाल बदले की भावना या निजी विवादों को सुलझाने के लिए गलत तरीके से किया जाता है। इस समस्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों का समर्थन किया है, जिसमें परिवार कल्याण समितियों (FWC) की स्थापना और "शीतलन अवधि" जैसे उपाय शामिल हैं।
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धारा
498ए क्या है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 85, पत्नी के साथ क्रूरता से संबंधित है। इसके तहत, अगर पति या उसके परिवार के सदस्य पत्नी के साथ शारीरिक या मानसिक क्रूरता करते हैं, तो उन्हें सजा हो सकती है। इसमें तीन साल तक की जेल और जुर्माना शामिल हो सकता है। यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया था, लेकिन कई बार इसका दुरुपयोग देखा गया है, जहां झूठे या अतिशयोक्तिपूर्ण आरोप लगाए जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला
22
जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण
फैसला सुनाया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को लागू करने का आदेश दिया गया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर.
गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि धारा 498ए
के दुरुपयोग को रोकने के लिए परिवार कल्याण समितियों का गठन और उनके दिशानिर्देश
प्रभावी रहेंगे।
इसके
अलावा,
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पति को जमानत के लिए पत्नी की सभी
जरूरतें पूरी करने की शर्त को हटाया जाता है। यह फैसला वैवाहिक विवादों में संतुलन
लाने और गलत मामलों को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशानिर्देश
इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने 2022 में धारा 498ए
के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए थे। इन्हें
सुप्रीम कोर्ट ने अब समर्थन दिया है। ये दिशानिर्देश इस प्रकार हैं:
1. दो
महीने की "शीतलन अवधि":
o धारा
498ए के तहत कोई शिकायत या FIR दर्ज होने के बाद,
पहले दो महीनों तक कोई गिरफ्तारी या पुलिस कार्रवाई नहीं होगी। इस
अवधि को "शीतलन अवधि" कहा गया है।
o इस
दौरान मामला परिवार कल्याण समिति (FWC) को
भेजा जाएगा, जो विवाद को सुलझाने की कोशिश करेगी।
2. किन
मामलों को FWC को भेजा जाएगा?:
o केवल
वही मामले FWC को भेजे जाएंगे, जिनमें धारा 498ए के साथ-साथ ऐसी धाराएं शामिल हों,
जिनमें सजा 10 साल से कम हो। उदाहरण के लिए,
हत्या का प्रयास (धारा 307) जैसे गंभीर मामले
इसमें शामिल नहीं होंगे।
3. परिवार
कल्याण समिति (FWC) का गठन:
o प्रत्येक
जिले में कम से कम एक FWC होगी, जिसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे।
o इन
सदस्यों में शामिल हो सकते हैं:
§ मध्यस्थता
केंद्र से युवा मध्यस्थ, पांच साल के अनुभव वाला
अधिवक्ता, या लॉ कॉलेज का वरिष्ठ छात्र।
§ जिले
का कोई प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता।
§ सेवानिवृत्त
न्यायिक अधिकारी।
§ वरिष्ठ
अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां।
o इन
समितियों की निगरानी जिला एवं सत्र न्यायाधीश या परिवार न्यायालय के प्रधान
न्यायाधीश करेंगे।
4. FWC
की कार्यप्रणाली:
o शिकायत
दर्ज होने के बाद, FWC दोनों पक्षों
(शिकायतकर्ता और आरोपी) को उनके चार वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ बुलाएगी।
o समिति
दो महीने के भीतर विवाद सुलझाने की कोशिश करेगी और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार
करेगी।
o इस
दौरान पुलिस कोई गिरफ्तारी नहीं करेगी, लेकिन
जांच (जैसे चिकित्सा रिपोर्ट, गवाहों के बयान) जारी रख सकती
है।
5. रिपोर्ट
और कार्रवाई:
o FWC
की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट या पुलिस को भेजी जाएगी, जो इसकी जांच के बाद उचित कार्रवाई करेगा।
o अगर
पक्षकारों के बीच समझौता हो जाता है, तो जिला
एवं सत्र न्यायाधीश मामले को बंद करने का आदेश दे सकते हैं।
6. सदस्यों
का प्रशिक्षण और मानदेय:
o FWC
के सदस्यों को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रशिक्षण दिया
जाएगा।
o यह
सामाजिक कार्य माना जाएगा, और सदस्यों को न्यूनतम
मानदेय या निशुल्क आधार पर काम करना होगा।
इस फैसले का महत्व
यह
फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
- दुरुपयोग पर रोक:
धारा 498ए के गलत इस्तेमाल को रोकने के
लिए यह एक ठोस कदम है। कई बार पति और उनके परिवार को बिना ठोस सबूत के फंसाया
जाता है, जिससे उनकी जिंदगी प्रभावित होती है।
- "शीतलन अवधि"
का लाभ: दो महीने की अवधि
दोनों पक्षों को शांतिपूर्ण तरीके से विवाद सुलझाने का मौका देती है, जिससे अनावश्यक कानूनी कार्रवाई से बचा जा सकता है।
- परिवार कल्याण समितियों की भूमिका:
ये समितियां मध्यस्थता के जरिए विवादों को सुलझाने में मदद
करेंगी, जिससे कोर्ट पर बोझ कम होगा।
- पति के लिए राहत:
जमानत के लिए पत्नी की सभी जरूरतें पूरी करने की शर्त हटाने से
पति पर अनुचित दबाव कम होगा।
पृष्ठभूमि: शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल
इस
फैसले की पृष्ठभूमि में शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल का मामला है। इस केस में
पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ धारा 498ए,
307 (हत्या का प्रयास), और 376 (बलात्कार) जैसे गंभीर आरोपों के तहत कई शिकायतें दर्ज की थीं। इनमें से
कुछ शिकायतें झूठी पाई गईं, जिसके कारण पति को 109 दिन और उनके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों को खारिज करते हुए पत्नी और उसके परिवार को सार्वजनिक
माफी मांगने का आदेश दिया। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 142
के तहत विवाह को समाप्त करने का फैसला लिया।
पहले के फैसले और बदलाव
2017
में सुप्रीम कोर्ट ने राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
मामले में भी इसी तरह के दिशानिर्देश दिए
थे। हालांकि, 2018 में सोशल एक्शन फोरम मामले में इन दिशानिर्देशों को यह कहते हुए वापस
ले लिया गया था कि कोर्ट विधायी कमियों को नहीं भर सकता। लेकिन अब 2025 के इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने पुराने दिशानिर्देशों को फिर से
प्रभावी कर दिया है, जिससे धारा 498ए
के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट का यह फैसला वैवाहिक विवादों में संतुलन लाने और धारा 498ए के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। परिवार कल्याण
समितियों और "शीतलन अवधि" जैसे उपाय न केवल दोनों पक्षों को सुलह का
मौका देंगे, बल्कि कोर्ट और पुलिस पर अनावश्यक बोझ को भी कम
करेंगे। यह समाज में वैवाहिक रिश्तों को बेहतर बनाने और गलतफहमियों को दूर करने की
दिशा में एक सकारात्मक पहल है।
केस: शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल, 2025 (एससी) 735
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद
हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों का समर्थन किया और धारा 498ए के
तहत जमानत की शर्तों को हटाया।