भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली को व्यवस्थित और निष्पक्ष बनाने के लिए Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) और अब Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (BNSS) जैसे कानून लागू हैं। ये कानून पुलिस, अदालत और अभियुक्त के बीच प्रक्रियात्मक नियमों को स्पष्ट करते हैं। इस पोस्ट में हम CrPC की धारा 233 और BNSS की धारा 256 के बारे में सरल भाषा में विस्तार से समझेंगे, जिन्हें "प्रतिरक्षा प्रारंभ करना" (Entering upon Defence) के रूप में जाना जाता
CrPC की धारा 233: प्रतिरक्षा प्रारंभ करना
CrPC
की धारा 233 सत्र
न्यायालय (Court of Session) में मुकदमे की प्रक्रिया से
संबंधित है। यह धारा तब लागू होती है जब अभियोजन पक्ष अपने साक्ष्य पेश कर चुका
होता है और अभियुक्त को बरी नहीं किया जाता। इस स्थिति में अभियुक्त को अपने बचाव
(प्रतिरक्षा) में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है।
धारा 233: प्रतिरक्षा प्रारंभ करना
1. यदि
अभियुक्त को धारा 232 के तहत बरी नहीं किया
जाता है, तो उसे अपने बचाव में बुलाया जाएगा और वह अपने पक्ष
में कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है।
2. यदि
अभियुक्त कोई लिखित बयान देता है, तो न्यायाधीश उसे
रिकॉर्ड के साथ संलग्न करेगा।
3. यदि
अभियुक्त किसी गवाह को बुलाने या किसी दस्तावेज़ या वस्तु को पेश करने के लिए कोई
प्रक्रिया जारी करने का आवेदन करता है, तो
न्यायाधीश उस प्रक्रिया को जारी करेगा, सिवाय इसके कि वह
लिखित कारणों के साथ यह मानता हो कि ऐसा आवेदन परेशान करने, देरी
करने या न्याय के उद्देश्य को विफल करने के लिए किया गया है।
टिप्पणी
- जब अभियोजन पक्ष अपने गवाह,
दस्तावेज़ और साक्ष्य पेश कर चुका होता है और अदालत यह तय करती
है कि अभियुक्त को बरी नहीं किया जा सकता, तब धारा 233
लागू होती है।
- इस धारा के तहत अभियुक्त को अपने
बचाव में साक्ष्य पेश करने का पूरा अधिकार है। वह गवाह बुला सकता है,
दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकता है या अन्य सबूत दे सकता है।
- यदि अभियुक्त कोई लिखित बयान देता
है,
तो उसे अदालत के रिकॉर्ड में शामिल किया जाता है।
- अभियुक्त के अनुरोध पर,
अदालत को गवाहों या दस्तावेज़ों को पेश करने की प्रक्रिया शुरू
करनी होती है, जब तक कि उसे लगे कि यह अनुरोध केवल
मुकदमे में देरी करने या परेशानी पैदा करने के लिए है। ऐसी स्थिति में,
अदालत को लिखित कारण बताना होगा।
Read also:सत्र न्यायालय में दोषी होने का अभिवचन: CrPC की धारा 229 एवं BNSS की धारा 252 के तहत।
उदाहरण
मान
लीजिए,
किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप है। अभियोजन पक्ष अपने गवाहों और
सबूतों (जैसे चाकू, फिंगरप्रिंट) को पेश करता है। अगर अदालत
को लगता है कि इन सबूतों के आधार पर अभियुक्त को बरी नहीं किया जा सकता, तो धारा 233 के तहत अभियुक्त को अपने बचाव में बोलने
का मौका मिलता है। वह गवाह ला सकता है, जैसे कोई व्यक्ति जो
यह साबित करे कि वह घटना के समय दूसरी जगह था, या कोई
दस्तावेज़ (जैसे टिकट) पेश कर सकता है।
BNSS की धारा 256: प्रतिरक्षा प्रारंभ करना
Bharatiya
Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (BNSS) ने CrPC
को प्रतिस्थापित किया है और यह 1 जुलाई 2024
से लागू है। BNSS की धारा 256 वही प्रावधान है जो CrPC की धारा 233 को कवर करता है। यह भी सत्र न्यायालय में अभियुक्त के बचाव से संबंधित है।
धारा 256: प्रतिरक्षा प्रारंभ करना
1. यदि
अभियुक्त को धारा 255 के तहत बरी नहीं किया
जाता है, तो उसे अपने बचाव में बुलाया जाएगा और वह अपने पक्ष
में कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है।
2. यदि
अभियुक्त कोई लिखित बयान देता है, तो न्यायाधीश उसे
रिकॉर्ड के साथ संलग्न करेगा।
3. यदि
अभियुक्त किसी गवाह को बुलाने या किसी दस्तावेज़ या वस्तु को पेश करने के लिए कोई
प्रक्रिया जारी करने का आवेदन करता है, तो
न्यायाधीश उस प्रक्रिया को जारी करेगा, सिवाय इसके कि वह
लिखित कारणों के साथ यह मानता हो कि ऐसा आवेदन परेशान करने, देरी
करने या न्याय के उद्देश्य को विफल करने के लिए किया गया है।
टिप्पणी
- BNSS की धारा 256,
CrPC की धारा 233 के समान ही है। इसमें
कोई बड़ा बदलाव नहीं है।
- यह धारा अभियुक्त को अपने बचाव
में साक्ष्य, गवाह या दस्तावेज़ पेश
करने का अधिकार देती है।
- यदि अभियुक्त का अनुरोध केवल
मुकदमे को देरी करने या परेशान करने के लिए हो, तो अदालत उसे अस्वीकार कर सकती है, लेकिन इसके
लिए लिखित कारण देना अनिवार्य है।
- BNSS में डिजिटल और
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अधिक महत्व दिया गया है, इसलिए
अभियुक्त धारा 256 के तहत डिजिटल रिकॉर्ड्स या वीडियो
सबूत भी पेश कर सकता है।
CrPC धारा 233 और BNSS धारा 256 में अंतर
- नंबरिंग:
CrPC में यह धारा 233 है, जबकि BNSS में धारा 256 है,
क्योंकि BNSS में धाराओं की संरचना में
बदलाव किया गया है।
- प्रक्रिया में समानता:
दोनों धाराओं का उद्देश्य और प्रक्रिया लगभग एकसमान है। BNSS
में इस धारा में कोई विशेष बदलाव नहीं किया गया।
- डिजिटल साक्ष्य का समावेश:
BNSS में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साक्ष्य को अधिक मान्यता दी
गई है, जिसका असर धारा 256 के तहत
साक्ष्य प्रस्तुत करने में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, अभियुक्त सीसीटीवी फुटेज या ईमेल जैसे डिजिटल सबूत पेश कर सकता है।
- आधुनिक दृष्टिकोण:
BNSS में समयबद्ध न्याय और तकनीकी प्रगति पर जोर है, जिससे धारा 256 की प्रक्रिया को और तेजी से
लागू किया जा सकता है।
अदालती नियम और प्रक्रिया
CrPC
धारा 233 और BNSS धारा 256
के तहत अदालती प्रक्रिया
1. अभियोजन
पक्ष की प्रक्रिया के बाद: जब अभियोजन पक्ष अपने
साक्ष्य, गवाह और तर्क पेश कर चुका होता है, तो अदालत यह तय करती है कि अभियुक्त को बरी किया जाए या नहीं। यदि बरी
नहीं किया जाता, तो यह धारा लागू होती है।
2. अभियुक्त
का अधिकार:
o अभियुक्त
को अपने बचाव में साक्ष्य पेश करने का पूरा अधिकार है।
o वह
गवाह बुला सकता है, दस्तावेज़ या अन्य सबूत
(जैसे वीडियो, ऑडियो, या डिजिटल
रिकॉर्ड) पेश कर सकता है।
3. न्यायाधीश
की भूमिका:
o यदि
अभियुक्त कोई लिखित बयान देता है, तो उसे रिकॉर्ड में
शामिल किया जाता है।
o यदि
अभियुक्त गवाहों या दस्तावेज़ों को पेश करने के लिए अनुरोध करता है,
तो अदालत को उस अनुरोध को स्वीकार करना होता है, जब तक कि वह गलत इरादे से न हो।
4. अनुरोध
का अस्वीकरण: यदि न्यायाधीश को लगता है
कि अभियुक्त का अनुरोध केवल मुकदमे को देरी करने या परेशान करने के लिए है,
तो वह इसे अस्वीकार कर सकता है, लेकिन उसे
लिखित में कारण बताना होगा।
5. निष्पक्षता
का सिद्धांत: यह धारा सुनिश्चित करती है
कि अभियुक्त को अपने पक्ष को साबित करने का पूरा मौका मिले, ताकि
न्याय प्रक्रिया निष्पक्ष रहे।
Read also:सत्र न्यायालय में लोक अभियोजक की भूमिका एवं महत्व: CrPC की धारा 225 और BNSS की धारा 248 को जाने।
न्यायिक व्याख्या
- रामचंद्र बनाम उत्तर प्रदेश सरकार
(1990): इस
मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 233 अभियुक्त के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करती है कि उसे अपने बचाव में
साक्ष्य पेश करने का अवसर मिले। अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष
सुनवाई के लिए अनिवार्य है।
- कल्याण सिंह बनाम पंजाब सरकार (2003):
इस मामले में अदालत ने कहा कि धारा 233 के
तहत अभियुक्त द्वारा अनुरोधित गवाहों को बुलाने से इंकार केवल तभी किया जा
सकता है, जब यह स्पष्ट हो कि अनुरोध का उद्देश्य मुकदमे
को अनावश्यक रूप से लंबा खींचना है।
- डिजिटल साक्ष्य का उपयोग:
BNSS के तहत, सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न
उच्च न्यायालयों ने डिजिटल साक्ष्य (जैसे सीसीटीवी फुटेज, व्हाट्सएप चैट) को स्वीकार करने पर जोर दिया है, जो धारा 256 के तहत अभियुक्त के लिए उपयोगी हो
सकता है।
BNSS में बदलाव और आधुनिक दृष्टिकोण
BNSS,
CrPC का आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत संस्करण है, जो 1 जुलाई 2024 से लागू है।
यह न केवल प्रक्रियाओं को सरल बनाता है, बल्कि डिजिटल और
फोरेंसिक तकनीकों को भी शामिल करता है। धारा 256 में कोई
बड़ा बदलाव नहीं है, लेकिन BNSS के
अन्य प्रावधान इसे और प्रभावी बनाते हैं।
BNSS के प्रासंगिक पहलू
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य:
BNSS में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साक्ष्य को मान्यता दी गई है।
उदाहरण के लिए, धारा 256 के तहत
अभियुक्त वीडियो, ऑडियो, या
डिजिटल रिकॉर्ड (जैसे ईमेल, मोबाइल डेटा) पेश कर सकता
है।
- तेजी से न्याय:
BNSS में समयबद्ध जांच और मुकदमे पर जोर है, जिससे धारा 256 के तहत अभियुक्त को जल्दी से
अपने साक्ष्य पेश करने का मौका मिलता है।
- पारदर्शिता:
BNSS में प्रक्रियाओं को डिजिटल रूप से रिकॉर्ड करने और
पारदर्शिता बढ़ाने पर ध्यान दिया गया है, जो धारा 256
की प्रक्रिया को और विश्वसनीय बनाता है।
निष्कर्ष
CrPC
की धारा 233 और BNSS
की धारा 256 दोनों ही "प्रतिरक्षा
प्रारंभ करना" के सिद्धांत पर आधारित हैं, जो अभियुक्त
को अपने बचाव में साक्ष्य पेश करने का अधिकार देती हैं। ये धाराएं सुनिश्चित करती
हैं कि अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिले और वह अपने पक्ष को मजबूती से रख
सके। BNSS में डिजिटल साक्ष्य और समयबद्ध प्रक्रियाओं को
शामिल करने से यह धारा और प्रभावी हो गई है।
यह
धारा न केवल अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करती है, बल्कि
यह भी सुनिश्चित करती है कि न्याय प्रक्रिया में निष्पक्षता बनी रहे। यदि आप इस
धारा के तहत अपने मामले में साक्ष्य पेश करना चाहते हैं या इसके बारे में और जानना
चाहते हैं, तो किसी अनुभवी वकील से संपर्क करें।