मुख्य
बिन्दु
- सुप्रीम कोर्ट ने 28
मई, 2025 को 40 वर्षीय
महिला से दुष्कर्म के आरोपी 23 वर्षीय इन्फ्लुएंसर को
अंतरिम जमानत दी, क्योंकि 9 महीने
से जेल में था और आरोप तय नहीं हुए।
- कोर्ट ने कहा कि पीड़िता 40
वर्षीय वयस्क है, "ताली एक हाथ से
नहीं बजती," और पुलिस ने धारा 376 लगाने का आधार स्पष्ट नहीं किया।
- मामला संवेदनशील है,
और अदालत ने पीड़िता की स्वेच्छा से यात्रा और पति की सहमति पर
सवाल उठाए।
निर्णय
सुप्रीम
कोर्ट ने 23 वर्षीय इन्फ्लुएंसर को अंतरिम जमानत दी,
क्योंकि वह 9 महीने से जेल में था और उसके
खिलाफ आरोप तय नहीं हुए थे। अदालत ने कहा कि पीड़िता 40 वर्षीय
वयस्क है, और "ताली एक हाथ से नहीं बजती," जिसका अर्थ है कि दोनों पक्षों की सहभागिता हो सकती है।
कोर्ट
की टिप्पणियाँ
अदालत
ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि उसने आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत मामला दर्ज करने का आधार क्या था, खासकर
जब पीड़िता स्वेच्छा से आरोपी के साथ जम्मू गई थी और उसके पति को कोई आपत्ति नहीं
थी। अदालत ने यह भी कहा, "ऐसे लोगों से कौन प्रभावित
होता है?" जो शायद आरोपी के इन्फ्लुएंसर होने पर सवाल
उठाता है।
शर्तें
आरोपी
को अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना होगा और पीड़िता से संपर्क नहीं करना
होगा। उसे अधीनस्थ अदालत में पेश होना होगा।
सुप्रीम
कोर्ट का निर्णय और मामले का विश्लेषण
सुप्रीम
कोर्ट ने 28 मई, 2025 को एक 40
वर्षीय महिला से दुष्कर्म के आरोपी 23 वर्षीय
सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को अंतरिम जमानत दी, जो एक
संवेदनशील और जटिल कानूनी मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह निर्णय इस आधार पर
लिया गया कि आरोपी पिछले 9 महीनों से जेल में था, लेकिन उसके खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं किए गए थे। अदालत ने इस मामले में
कई टिप्पणियाँ कीं, जो न केवल कानूनी पहलुओं को बल्कि
सामाजिक और नैतिक मुद्दों को भी उजागर करती हैं। नीचे दिए गए विस्तृत विश्लेषण में
मामले के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
पृष्ठभूमि और मामले का संदर्भ
यह
मामला 2021
में शुरू हुआ जब पीड़िता, एक 40 वर्षीय महिला, अपने कपड़ों के ब्रांड के प्रचार के
लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों की तलाश कर रही थी। उसने आरोपी, एक 23 वर्षीय इन्फ्लुएंसर, के
संपर्क में आई। शुरुआती बातचीत के दौरान, आरोपी ने प्रचार
सामग्री को प्रभावशाली दिखाने के लिए एक आईफोन का अनुरोध किया, जिसे पीड़िता ने जम्मू में एक अधिकृत एप्पल स्टोर के माध्यम से उपलब्ध
कराया। हालांकि, जब आरोपी ने इस आईफोन को बेचने का प्रयास
किया, तो उनके बीच पेशेवर रिश्ते खराब हो गए। विक्रेता ने 20,000
रुपये काटने के बाद पीड़िता के खाते में रुपये वापस कर दिए, लेकिन आरोपी ने वादा किए गए पैसे वापस नहीं किए, जिसके
बाद पीड़िता ने उससे सभी संबंध तोड़ने का फैसला किया।
आरोप
और घटनाएँ
दिसंबर
2021
में, आरोपी ने पैसे वापस करने और माफी मांगने
के लिए पीड़िता के घर (नोएडा) जाने का बहाना बनाया। इसके बाद, उसने पीड़िता को कनॉट प्लेस में एक फोटोशूट के लिए यात्रा करने के लिए
राजी कर लिया। यात्रा के दौरान, आरोपी ने कथित तौर पर
पीड़िता को नशीले पदार्थ मिली मिठाई दी, जिससे वह बेहोश हो
गई। आरोपी ने पीड़िता को हिंदू राव अस्पताल ले जाने की बात कही, लेकिन इसके बजाय उसे अस्पताल के पीछे एक सुनसान इलाके में ले गया, जहां उसका यौन शोषण किया, उसके पर्स से पैसे चुराए
और अश्लील तस्वीरें खींचीं।
शिकायत
के अनुसार, इसके बाद पीड़िता को जम्मू जाने के लिए
मजबूर किया गया, जहां ढाई साल की अवधि में लगातार उसका यौन
शोषण किया गया, जबरन वसूली की गई और धमकियाँ दी गईं। इस
मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (दुष्कर्म), 354 (महिला पर हमला), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी),
509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) और 34 (साझा
इरादा) के तहत FIR दर्ज की गई।
सुप्रीम
कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियाँ
सुप्रीम
कोर्ट,
जिसमें जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच
थी, ने इस मामले में कई तीखी टिप्पणियाँ कीं। अदालत ने कहा
कि पीड़िता "बच्ची नहीं है" और वह 40 वर्षीय वयस्क
महिला है। अदालत ने यह भी कहा, "ताली एक हाथ से नहीं
बजती," जिसका अर्थ है कि ऐसी घटनाओं में दोनों पक्षों
की सहभागिता हो सकती है। अदालत ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि उसने किस आधार पर
आईपीसी की धारा 376 के तहत केस दर्ज किया, खासकर जब पीड़िता स्वेच्छा से आरोपी के साथ जम्मू गई थी और उसने सात बार
जम्मू की यात्रा की, जबकि उसके पति को कोई आपत्ति नहीं थी।
अदालत
ने यह भी टिप्पणी की, "ऐसे लोगों से कौन
प्रभावित होता है?" जो शायद आरोपी के सोशल मीडिया
इन्फ्लुएंसर होने पर सवाल उठाता है। अदालत ने यह देखते हुए कि आरोपी 9 महीने से जेल में है और आरोप तय नहीं किए गए हैं, इसे
अंतरिम जमानत देने के लिए उपयुक्त माना। अदालत ने निर्देश दिया कि आरोपी को
अधीनस्थ अदालत में पेश किया जाए और नियमों-शर्तों के अधीन अंतरिम जमानत दी जाए।
इसके साथ ही, अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि आरोपी अपनी
स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा और पीड़िता से संपर्क करने का प्रयास नहीं
करेगा।
कानूनी
और सामाजिक निहितार्थ
यह
मामला कई कानूनी और सामाजिक मुद्दों को उजागर करता है,
विशेष रूप से सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों की भूमिका और उनके द्वारा
किए गए कथित अपराधों पर कानूनी कार्रवाई। अदालत की टिप्पणियाँ, जैसे "ताली एक हाथ से नहीं बजती," ने इस
बात पर बहस छेड़ दी है कि क्या पीड़िता की स्वेच्छा और उसकी यात्राओं को कानूनी
रूप से कैसे देखा जाए। यह मामला यह भी दर्शाता है कि लंबे समय तक जेल में रहने के
बावजूद आरोप तय न होने पर अंतरिम जमानत दी जा सकती है, जो
भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण पहलू है।
निष्कर्ष
यह
मामला कानूनी, सामाजिक और नैतिक पहलुओं से भरा हुआ है,
और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि कानूनी
प्रक्रियाओं में समय और आरोप तय करने की प्रक्रिया कितनी महत्वपूर्ण है। अदालत की
टिप्पणियाँ, हालांकि, विवादास्पद हो
सकती हैं, क्योंकि वे पीड़िता की स्वेच्छा और उसकी स्थिति पर
सवाल उठाती हैं, जो इस तरह के संवेदनशील मामलों में अतिरिक्त
बहस को जन्म दे सकती हैं।