भारत
की आपराधिक न्याय प्रणाली में, जब किसी आपराधिक मामले
का मुकदमा पूरा हो जाता है और दोनों पक्षों — अभियोजन (Prosecution)
और बचाव (Defence) — की दलीलें सुन ली
जाती हैं, तो अदालत का अगला क़दम होता है निर्णय देना। यह
निर्णय दो संभावनाओं पर आधारित होता है:
1. अभियुक्त
को दोषमुक्त (Acquitted) किया जाए।
2. अभियुक्त
को दोषसिद्ध (Convicted) करार दिया जाए।
इस
प्रक्रिया को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 235 और भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 258
में विस्तार से समझाया गया है। इस लेख में हम इन दोनों धाराओं को
सरल और विस्तृत रूप में समझेंगे, ताकि सामान्य व्यक्ति भी
इसकी प्रक्रिया को आसानी से समझ सके।
CrPC की धारा 235 — दोषमुक्ति या दोषसिद्धि का निर्णय
धारा 235(1):
बहस
और कानूनी बिन्दुओं (यदि कोई हों) को सुनने के बाद न्यायाधीश मामले में निर्णय
देगा।
धारा 235(2):
यदि
अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाता है, तो
न्यायाधीश, जब तक कि वह धारा 360 के
प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही न करे, दंड के प्रश्न पर
अभियुक्त की सुनवाई करेगा और फिर कानून के अनुसार सजा सुनाएगा।
टिप्पणी
जब
किसी आपराधिक मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें पूरी हो जाती हैं,
तो न्यायाधीश को यह तय करना होता है कि अभियुक्त दोषी है या नहीं।
इस प्रक्रिया को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. निर्णय
की प्रक्रिया:
o दोनों
पक्षों की दलीलें और साक्ष्य सुनने के बाद, न्यायाधीश
मामले के तथ्यों और कानून के आधार पर निर्णय लेता है।
o यदि
अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाता है, तो उसे
तुरंत रिहा कर दिया जाता है, और मामला यहीं समाप्त हो जाता
है।
o यदि
अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाता है, तो सजा
सुनाने से पहले एक अतिरिक्त प्रक्रिया अपनाई जाती है।
2. दोषसिद्धि
के बाद सुनवाई:
o दोषसिद्धि
के बाद,
न्यायाधीश अभियुक्त को सजा सुनाने से पहले उसका पक्ष सुनता है।
o अभियुक्त
या उसके वकील को यह अवसर दिया जाता है कि वह सजा के संबंध में कुछ कहना चाहे।
उदाहरण के लिए:
§ अभियुक्त
अपनी पारिवारिक, सामाजिक या आर्थिक परिस्थितियाँ बता
सकता है।
§ वह
सुधार की संभावनाएँ या कोई सहानुभूतिपूर्ण तथ्य (जैसे बीमारी,
परिवार की जिम्मेदारी आदि) प्रस्तुत कर सकता है।
o इस
सुनवाई का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सजा निष्पक्ष और उचित हो।
3. सजा
का निर्धारण:
o अभियुक्त
की बात सुनने के बाद, न्यायाधीश कानून के अनुसार
उचित सजा सुनाता है।
o यदि
अदालत उचित समझे, तो धारा 360
CrPC के तहत सुधारात्मक दंड (जैसे प्रोबेशन या सामुदायिक सेवा)
का विकल्प भी चुन सकती है, विशेष रूप से तब जब अपराध गंभीर न
हो या अभियुक्त पहली बार अपराधी हो।
उदाहरण
मान
लीजिए,
किसी व्यक्ति पर चोरी का आरोप है। यदि साक्ष्य और दलीलें सुनने के
बाद अदालत यह पाती है कि अभियुक्त निर्दोष है, तो उसे
दोषमुक्त कर दिया जाएगा। लेकिन यदि वह दोषी पाया जाता है, तो
सजा सुनाने से पहले अदालत उससे पूछेगी कि क्या वह सजा के बारे में कुछ कहना चाहता
है। अभियुक्त यह बता सकता है कि उसने आर्थिक तंगी के कारण चोरी की और वह भविष्य
में सुधार का वादा करता है। इसके आधार पर, अदालत सजा को कम
कर सकती है या प्रोबेशन दे सकती है।
BNSS की धारा 258 — दोषमुक्ति या दोषसिद्धि का निर्णय
धारा 258(1):
तर्कों
और विधि के बिन्दुओं (यदि कोई हों) को सुनने के पश्चात् न्यायाधीश मामले में
यथाशीघ्र निर्णय देगा।
- दलीलें पूरी होने के 30
दिन के भीतर निर्णय देना
अनिवार्य है।
- यदि आवश्यक हो,
तो लिखित कारणों के साथ 45 दिन तक अवधि बढ़ाई जा सकती है।
धारा 258(2):
यदि
अभियुक्त दोषसिद्ध किया जाता है, तो न्यायाधीश, जब तक कि वह धारा 401 BNSS के अनुसार कार्यवाही न
करे, सजा के प्रश्न पर अभियुक्त की सुनवाई करेगा और फिर
कानून के अनुसार सजा सुनाएगा।
टिप्पणी
भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) ने CrPC की धारा 235 को और
अधिक संरचित और समयबद्ध बनाया है। इस धारा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. समयबद्ध
निर्णय:
o BNSS
में यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि दलीलें पूरी होने के
30 दिन के भीतर न्यायाधीश को
निर्णय देना होगा।
o यदि
विशेष परिस्थितियों (जैसे जटिल कानूनी मुद्दे या साक्ष्यों की अधिकता) के कारण
निर्णय में देरी हो रही हो, तो लिखित कारणों के साथ यह
अवधि 45 दिन तक बढ़ाई जा सकती
है।
o यह
प्रावधान न्याय वितरण में देरी को कम करने और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए
जोड़ा गया है।
2. दोषसिद्धि
के बाद प्रक्रिया:
o CrPC
की तरह ही, यदि अभियुक्त को दोषसिद्ध किया
जाता है, तो सजा सुनाने से पहले उसका पक्ष सुना जाएगा।
o अभियुक्त
को अपनी परिस्थितियाँ, सुधार की संभावनाएँ या दया
याचना का अवसर दिया जाता है।
o इसके
बाद,
न्यायाधीश कानून के अनुसार सजा सुनाता है।
3. सुधारात्मक
दंड:
o यदि
अदालत उचित समझे, तो धारा 401
BNSS के तहत सुधारात्मक या वैकल्पिक दंड (जैसे प्रोबेशन,
सामुदायिक सेवा आदि) का विकल्प चुन सकता है।
o यह
प्रावधान विशेष रूप से उन मामलों में लागू होता है, जहाँ
अभियुक्त को सुधार का अवसर देना उचित हो।
Read also:सत्र न्यायालय में दोषी होने का अभिवचन: CrPC की धारा 229 एवं BNSS की धारा 252 के तहत।
उदाहरण
मान
लीजिए,
किसी व्यक्ति पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप है।
मुकदमा पूरा होने के बाद, यदि वह दोषी पाया जाता है, तो अदालत को 30 दिनों के भीतर निर्णय देना होगा।
दोषसिद्धि के बाद, अभियुक्त को यह बताने का मौका मिलेगा कि
उसने यह अपराध अनजाने में किया या उसकी मंशा खराब नहीं थी। यदि वह पहली बार अपराधी
है, तो अदालत धारा 401 BNSS के तहत
प्रोबेशन या सामुदायिक सेवा जैसे वैकल्पिक दंड का आदेश दे सकती है।
CrPC धारा 235 और BNSS धारा 258 के बीच तुलना
बिंदु |
CrPC
धारा 235 |
BNSS
धारा 258 |
निर्णय
की समय-सीमा |
कोई
निर्धारित समय-सीमा नहीं। |
30
दिन में निर्णय अनिवार्य, विशेष कारणों पर 45
दिन। |
दंडादेश
पूर्व सुनवाई |
धारा
360 CrPC के अंतर्गत। |
धारा
401 BNSS के अंतर्गत। |
सुधारात्मक
दंड विकल्प |
हाँ
(प्रोबेशन आदि)। |
हाँ
(अधिक संरचित और समयबद्ध)। |
कानूनी
भाषा |
अपेक्षाकृत
पुरानी और सामान्य। |
अधिक
स्पष्ट, संरचित और समयबद्ध। |
विश्लेषण
- समय-सीमा का महत्व:
CrPC में समय-सीमा का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था, जिसके कारण कई मामलों में निर्णय में देरी होती थी। BNSS ने इस कमी को दूर करते हुए 30-45 दिनों की
समय-सीमा निर्धारित की है।
- सुधारात्मक दंड:
दोनों धाराएँ सुधारात्मक दंड के विकल्प प्रदान करती हैं,
लेकिन BNSS में यह प्रक्रिया अधिक संरचित
और स्पष्ट है।
- निष्पक्षता:
दोनों ही धाराएँ नैसर्गिक न्याय (Natural
Justice) के सिद्धांत को अपनाती हैं, जिसमें दोषसिद्धि के बाद अभियुक्त को अपनी बात रखने का अवसर देना
अनिवार्य है।
महत्वपूर्ण बातें
1. नैसर्गिक
न्याय का सिद्धांत: दोषसिद्धि के बाद अभियुक्त
की सुनवाई करना एक मौलिक सिद्धांत है। यह सुनिश्चित करता है कि सजा निष्पक्ष हो और
अभियुक्त को अपनी परिस्थितियाँ प्रस्तुत करने का अवसर मिले।
2. समयबद्धता:
BNSS की धारा 258 ने समय-सीमा जोड़कर न्याय
वितरण को तेज़ और पारदर्शी बनाया है, जिससे अनावश्यक देरी कम
होगी।
3. सुधारात्मक
दृष्टिकोण: दोनों धाराएँ सुधारात्मक दंड को
प्रोत्साहित करती हैं, जो विशेष रूप से पहली बार अपराध करने
वालों या कम गंभीर अपराधों के लिए उपयोगी है।
4. पारदर्शिता:
BNSS में लिखित कारणों के साथ समय-सीमा बढ़ाने का प्रावधान
पारदर्शिता को बढ़ाता है।
निष्कर्ष
दंड
प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा
235 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,
2023 की धारा 258 भारतीय
आपराधिक न्याय प्रणाली के दो महत्वपूर्ण प्रावधान हैं, जो
निष्पक्ष सुनवाई और दोषसिद्धि के बाद अभियुक्त को अपनी बात रखने का अवसर प्रदान
करते हैं। BNSS ने इस प्रक्रिया को समयबद्ध और संरचित बनाकर
इसे और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाया है। यह न केवल न्याय वितरण में तेज़ी लाता
है, बल्कि अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा भी करता है।
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