भारत
में सामाजिक और कानूनी बदलावों की हवा धीरे-धीरे तेज हो रही है। केरल के एक
ट्रांसजेंडर दंपत्ति, जहाद और जिया पावल, ने न सिर्फ अपने लिए बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक मिसाल कायम
की है। उनकी बच्ची ज़ाबिया के जन्म प्रमाणपत्र में ‘माता-पिता’ की जगह ‘अभिभावक’
(पेरेंट्स) शब्द को शामिल करने का फैसला न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत है,
बल्कि यह समाज और कानून में समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस पोस्ट में हम इस पूरे मामले को सरल भाषा में समझेंगे और जानेंगे कि यह बदलाव
क्यों और कैसे महत्वपूर्ण है।
कौन हैं जहाद और जिया?
जहाद
एक ट्रांस पुरुष और जिया एक ट्रांस महिला हैं। दोनों साल 2020
से एक साथ हैं और उनकी प्रेम कहानी समाज के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
साल 2022 में जहाद ने अपने ट्रांजिशन (लिंग परिवर्तन की
प्रक्रिया) को कुछ समय के लिए रोका और मां बनने का फैसला किया। फरवरी 2023 में उनकी बेटी ज़ाबिया का जन्म हुआ। यह अपने आप में एक अनोखी उपलब्धि थी,
क्योंकि भारत में ट्रांसजेंडर दंपत्ति द्वारा प्राकृतिक रूप से
बच्चे को जन्म देना कोई आम बात नहीं थी।
ज़ाबिया
के जन्म के बाद जहाद और जिया ने फिर से अपनी ट्रांजिशन प्रक्रिया शुरू की। लेकिन
जब बात उनकी बेटी के जन्म प्रमाणपत्र की आई, तो उन्हें
एक ऐसी चुनौती का सामना करना पड़ा, जिसने उन्हें कानूनी
लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया।
क्या थी समस्या?
ज़ाबिया
के जन्म प्रमाणपत्र में जहाद को ‘मां’ और जिया को ‘पिता’ के रूप में
दर्ज किया गया था। लेकिन यह दर्जीकरण उनकी पहचान और उनके रिश्ते की वास्तविकता के
साथ मेल नहीं खाता था। जहाद और जिया ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उनका
कहना था कि ‘माता-पिता’ जैसे शब्द उनकी ट्रांसजेंडर पहचान को पूरी तरह से दर्शाने
में सक्षम नहीं हैं। इसके अलावा, वे नहीं चाहते थे कि
उनकी बेटी को भविष्य में किसी भी तरह की सामाजिक या कानूनी परेशानी का सामना करना
पड़े।
इसलिए,
उन्होंने कोझिकोड नगर निगम के सामने एक याचिका दायर की। उनकी मांग
थी कि जन्म प्रमाणपत्र में ‘माता-पिता’ के कॉलम को हटाकर सिर्फ ‘अभिभावक’
(पेरेंट्स) लिखा जाए। यह मांग न केवल उनकी पहचान को सम्मान देने की थी,
बल्कि यह समाज में लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में भी
एक कदम था।
केरल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
केरल
हाईकोर्ट ने जहाद और जिया की याचिका पर विचार किया और उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि समाज में बदलाव आ रहे हैं, और कानून
को भी इन बदलावों के साथ कदम मिलाकर चलना होगा। कोर्ट का यह भी कहना था कि जब
कानून सामाजिक बदलावों को नहीं अपनाते, तो अदालतों को
हस्तक्षेप करना पड़ता है।
कोर्ट
ने माना कि 1969 का जन्म और मृत्यु पंजीकरण कानून उस
समय बनाया गया था, जब ट्रांसजेंडर परिवारों की स्थिति को
ध्यान में नहीं रखा गया था। लेकिन अब, जब सुप्रीम कोर्ट ने
ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों को मान्यता दी है, तो कानूनों
को भी उसी हिसाब से अपडेट करने की जरूरत है।
इस
फैसले के बाद ज़ाबिया के जन्म प्रमाणपत्र में अब ‘माता-पिता’ की जगह ‘अभिभावक’
शब्द दर्ज किया जाएगा। यह बदलाव न केवल जहाद और जिया के लिए,
बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक बड़ी जीत है।
कानूनी लड़ाई में ट्रांस वकील की भूमिका
इस
मामले में केरल की पहली ट्रांसजेंडर वकील पद्मा लक्ष्मी की भूमिका बेहद अहम रही।
जब जहाद और जिया सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और आलोचनाओं का सामना कर रहे थे,
तब पद्मा ने उन्हें कानूनी रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने इस केस को पूरी ताकत से लड़ा और कोर्ट में ट्रांसजेंडर समुदाय की आवाज को
बुलंद किया।
पद्मा
का कहना है,
“यह केस सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं था। यह पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के
लिए एक मिसाल है। हम चाहते हैं कि समाज और कानून दोनों ट्रांसजेंडर लोगों की पहचान
को स्वीकार करें।”
जाबिया की पहचान और भविष्य
जहाद
और जिया अपनी बेटी ज़ाबिया को एक खुला और स्वतंत्र माहौल देना चाहते हैं। अभी
ज़ाबिया उन्हें ‘पप्पा’ और ‘अम्मा’ कहकर बुलाती है,
क्योंकि आसपास के बच्चे अपने माता-पिता को ऐसे ही बुलाते हैं। लेकिन
जिया का कहना है कि जब ज़ाबिया बड़ी होगी, तो उसे पूरी आजादी
होगी कि वह उन्हें उनके नाम से या किसी और तरीके से पुकारे।
जिया
कहती हैं,
“हम उसकी पहचान में दखल नहीं देंगे। 18 साल
की उम्र के बाद वह जो चाहे, वह फैसला खुद ले सकती है।” यह दृष्टिकोण न केवल उनकी
प्रगतिशील सोच को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे
अपनी बेटी को एक समावेशी और स्वतंत्र भविष्य देना चाहते हैं।
इस फैसले का व्यापक प्रभाव
यह
फैसला सिर्फ एक परिवार तक सीमित नहीं है। यह समाज और कानून में कई बड़े बदलावों की
शुरुआत कर सकता है:
1. लैंगिक
समावेशिता को बढ़ावा:
फैसला लैंगिक पहचान को लेकर समाज की समझ को और व्यापक करेगा। ‘अभिभावक’
जैसे तटस्थ शब्द का उपयोग न केवल ट्रांसजेंडर परिवारों के लिए बल्कि गैर-बाइनरी और
अन्य समुदायों के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
2. कानूनी
सुधारों की जरूरत:
कोर्ट ने यह साफ किया कि पुराने कानूनों को आधुनिक सामाजिक बदलावों
के साथ अपडेट करना जरूरी है। यह फैसला भविष्य में अन्य कानूनी सुधारों की राह खोल
सकता है।
3. ट्रांसजेंडर
समुदाय को प्रेरणा:
जहाद और जिया की कहानी ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक प्रेरणा है। यह
दिखाता है कि साहस और कानूनी लड़ाई के जरिए सामाजिक बदलाव संभव है।
4. सामाजिक
स्वीकार्यता:
इस तरह के फैसले समाज में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति लोगों की सोच
को बदलने में मदद करेंगे। यह समझने में सहायता मिलेगी कि परिवार और प्रेम किसी भी
रूप में हो सकता है।
चुनौतियां और भविष्य की राह
हालांकि
यह फैसला एक बड़ी जीतनी है, लेकिन अभी भी ट्रांसजेंडर
समुदाय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सामाजिक स्वीकार्यता, ट्रोलिंग, और कानूनी जटिलताएं बनी हुई हैं। इसके
अलावा, इस तरह के फैसले पूरे देश में एक समान रूप से लागू
हों, इसके लिए और प्रयासों की जरूरत है।
जहाद
और जिया की कहानी हमें सिखाती है कि बदलाव आसान नहीं होता,
लेकिन असंभव भी नहीं है। उनकी हिम्मत और दृढ़ संकल्प ने न केवल उनकी
बेटी के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित किया है, बल्कि यह
पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक नई उम्मीद की किरण भी बन गया है।
निष्कर्ष: एक नई शुरुआत
जहाद
और जिया का यह संघर्ष सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं है। यह एक ऐसे समाज की ओर
बढ़ाया गया कदम है, जहां हर व्यक्ति की पहचान
को सम्मान मिले, चाहे वह किसी भी लिंग का हो। केरल हाईकोर्ट
का यह फैसला न केवल कानूनी दस्तावेजों में बदलाव की शुरुआत है, बल्कि यह सामाजिक सोच में बदलाव की भी एक मिसाल है।
आइए,
हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां
‘माता-पिता’ या ‘अभिभावक’ जैसे शब्द सिर्फ रिश्तों को परिभाषित करें, न कि लोगों की पहचान को। जहाद, जिया और ज़ाबिया की
कहानी हमें यही सिखाती है—प्यार और परिवार की कोई सीमा नहीं होती।