30 अप्रैल 2025
को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा कदम उठाते हुए डिजिटल एक्सेस को अनुच्छेद
21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा घोषित किया।
यह फैसला खास तौर पर दिव्यांगजनों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के
लिए डिजिटल दुनिया को और सुलभ बनाने की दिशा में है। यह फैसला प्रज्ञा प्रसून की
जनहित याचिका (PIL) के जवाब में आया, जिसमें
डिजिटल इंडिया प्रोग्राम में समावेशिता की कमी को उजागर किया गया था। आइए, इस फैसले के मुख्य बिंदुओं को सरल भाषा में समझते हैं:
डिजिटल एक्सेस: अब मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि डिजिटल पहुंच सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि हर
नागरिक का मौलिक अधिकार है। यह खास तौर पर दिव्यांगजनों के लिए जरूरी है
ताकि वे भी शिक्षा, नौकरी और सरकारी सेवाओं में बराबर हिस्सा
ले सकें। यह अधिकार जीवन और समानता के अधिकार से जुड़ा है।
e-KYC को बनाया जाएगा आसान
कई बार दृष्टिबाधित
लोग,
एसिड अटैक पीड़ित या अन्य दिव्यांगजन e-KYC (जैसे
आधार सत्यापन) में दिक्कतों का सामना करते हैं। कोर्ट ने इसे आसान बनाने के लिए 20
खास दिशानिर्देश जारी किए। अब वैकल्पिक
सत्यापन तरीके और सहायक तकनीकों (जैसे स्क्रीन रीडर) का इस्तेमाल होगा।
सरकार की जिम्मेदारी
कोर्ट ने केंद्र
सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की खामियों पर सवाल उठाए। सरकार को
निर्देश दिया गया कि वह ऐसी नीतियां बनाए जो दिव्यांगजनों की जरूरतों को ध्यान में
रखें और तकनीकी रुकावटों को दूर करें।
सरकारी और निजी कंपनियों का सहयोग
कोर्ट ने सरकारी और
निजी संस्थानों को आदेश दिया कि वे अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म को दिव्यांग-अनुकूल
बनाएं। उदाहरण के लिए, वेबसाइट और ऐप्स को स्क्रीन
रीडर जैसे उपकरणों के साथ काम करने लायक बनाना होगा।
जागरूकता और ट्रेनिंग
डिजिटल सेवाओं का
फायदा तभी मिलेगा जब लोग उन्हें इस्तेमाल करना जानें। कोर्ट ने डिजिटल साक्षरता
और जागरूकता कार्यक्रम चलाने को कहा, ताकि गरीब
और हाशिए पर रहने वाले समुदाय भी इनका लाभ उठा सकें।
निगरानी और समयबद्ध प्रगति
इन निर्देशों को
लागू करने के लिए कोर्ट ने एक निगरानी तंत्र बनाने को कहा। सरकार को
समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट देनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो कि काम सही दिशा में हो
रहा है।
यह फैसला क्यों खास
है?
यह फैसला इसलिए
ऐतिहासिक है क्योंकि यह डिजिटल दुनिया में समानता और समावेशिता को
बढ़ावा देता है। आज के समय में इंटरनेट और डिजिटल सेवाएं जिंदगी का अहम हिस्सा
हैं। अगर कोई इनसे वंचित रहता है, तो वह शिक्षा, नौकरी और सरकारी योजनाओं से पीछे छूट सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर
दिया कि डिजिटल पहुंच एक अधिकार है, जो हर नागरिक को
सशक्त बनाता है।
आगे क्या?
इस फैसले के बाद अब
सरकार,
निजी कंपनियों और समाज को मिलकर काम करना होगा। हमें ऐसी तकनीक और
नीतियां चाहिए जो सबके लिए हों। अगर आप इस बारे में और जानना चाहते हैं,
तो सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट (www.sci.gov.in) पर पूरा फैसला पढ़ सकते हैं।
आइए,
एक ऐसी डिजिटल दुनिया बनाएं जो सबके लिए सुलभ हो!