विवाह
एक पवित्र बंधन है, लेकिन कभी-कभी परिस्थितियां
ऐसी हो जाती हैं कि दोनों पक्षों के लिए अलग होना ही बेहतर विकल्प होता है। हिंदू
विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के
तहत आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया को मान्यता दी गई है, लेकिन
सामान्य रूप से इसके लिए विवाह के कम से कम एक वर्ष बाद याचिका दायर करने की शर्त
है। हालांकि, धारा 14(1) में कुछ विशेष
परिस्थितियों में इस एक वर्ष की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को माफ करने का प्रावधान
है। हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले
में यह स्पष्ट किया कि यदि विवाह के एक वर्ष के भीतर एक पक्ष ने दूसरे के खिलाफ
आपराधिक मामला दर्ज किया हो और दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक चाहते हों, तो इस प्रतीक्षा अवधि को दरकिनार किया जा सकता है।
मामले का विवरण
यह
मामला अंगद सोनी बनाम अर्पिता यादव (फर्स्ट
अपील डिफेक्टिव संख्या 115 ऑफ 2025) से
संबंधित है। अंगद सोनी और अर्पिता यादव का विवाह 5 अगस्त 2024
को हुआ था। विवाह के कुछ ही दिनों बाद दोनों के बीच विवाद शुरू हो
गया। पति, अंगद सोनी, ने झूठे एफआईआर
के डर से एक शिकायत दर्ज की। जवाब में, पत्नी, अर्पिता यादव, ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 115(2), 352 और 351(3) के तहत एक एफआईआर दर्ज की। इसके बाद, उन्होंने
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और 506, साथ ही पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत एक और गंभीर
एफआईआर दर्ज की।
इन
आपराधिक कार्यवाहियों के बावजूद, दोनों पक्षों ने आपसी
सहमति से तलाक के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के
तहत याचिका दायर की और धारा 14(1) के तहत एक वर्ष की
प्रतीक्षा अवधि से छूट की मांग की।
पारिवारिक न्यायालय का निर्णय
अंबेडकर
नगर की पारिवारिक न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया। उनका तर्क था कि हिंदू
विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत तलाक की याचिका
विवाह के एक वर्ष पूर्ण होने के बाद ही दायर की जा सकती है। इस निर्णय से असंतुष्ट
होकर, दोनों पक्षों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा, कर्नाटक, और केरल हाईकोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि अन्य उच्च
न्यायालयों ने भी उन मामलों में एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को शिथिल करने की
अनुमति दी है, जहां विवाह के टिकने की कोई संभावना नहीं
रहती। कोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया:
1. आपराधिक
मामले: दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ
गंभीर आपराधिक मामले दर्ज किए थे, जिससे विवाह के टिकने की
संभावना समाप्त हो गई थी।
2. आपसी
सहमति: दोनों पक्षों ने स्पष्ट रूप से आपसी
सहमति से तलाक की इच्छा जताई थी।
3. धारा
14(1)
का प्रावधान: हिंदू
विवाह अधिनियम की धारा 14(1) के तहत, यदि
याचिकाकर्ता को असाधारण कठिनाई हो या प्रतिवादी का आचरण अत्यंत भ्रष्ट हो, तो एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को माफ किया जा सकता है।
कोर्ट
ने अपने फैसले में कहा,
“वर्तमान मामले में, यह रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि
आपराधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं और विवाह के टिकने की कोई संभावना नहीं है।
अतः धारा 14(1) का प्रावधान लागू किया जाना चाहिए…”
इसके
आधार पर,
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया
और तलाक की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति दी। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि
तलाक की याचिका को 26 मार्च 2025 से
दायर माना जाए, ताकि पक्षकार धारा 13-बी(2)
के तहत छह महीने बाद आवश्यक कदम उठा सकें।
धारा
13-बी और धारा 14(1) का महत्व
हिंदू
विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी और धारा 14(1) के प्रावधानों को समझना इस मामले को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- धारा 13-बी: यह धारा आपसी
सहमति से तलाक की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इसके तहत, दोनों पक्षों को यह साबित करना होता है कि वे कम से कम एक वर्ष से
अलग रह रहे हैं और विवाह को बनाए रखना संभव नहीं है। इस प्रक्रिया में छह
महीने की प्रतीक्षा अवधि (कूलिंग-ऑफ पीरियड) भी शामिल होती है, जिसमें पक्षकार अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
- धारा 14(1):
यह धारा एक अपवाद प्रदान करती है, जो
असाधारण कठिनाई या प्रतिवादी के अत्यंत भ्रष्ट आचरण के आधार पर एक वर्ष की
प्रतीक्षा अवधि को माफ करने की अनुमति देती है।
इस
मामले में, आपराधिक मामलों की गंभीरता और दोनों
पक्षों की सहमति ने धारा 14(1) के तहत छूट को उचित ठहराया।
अन्य
उच्च न्यायालयों के समान निर्णय
इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पंजाब और हरियाणा, कर्नाटक,
और केरल हाईकोर्ट के निर्णयों का उल्लेख किया। इन न्यायालयों ने भी
उन मामलों में एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को शिथिल करने की अनुमति दी थी, जहां:
- विवाह के कुछ ही समय बाद गंभीर
विवाद उत्पन्न हो गए थे।
- आपराधिक मामले या गंभीर आरोप दर्ज
किए गए थे।
- दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से
तलाक की इच्छा जताई थी।
ये
निर्णय इस बात को रेखांकित करते हैं कि यदि विवाह के टिकने की कोई संभावना न हो,
तो कानून को लचीला होना चाहिए ताकि पक्षकारों को अनावश्यक कष्ट न
सहना पड़े।
इस फैसले का महत्व
यह
फैसला उन दंपतियों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान करता है,
जो विवाह के शुरुआती चरण में ही गंभीर विवादों का सामना करते हैं और
आपसी सहमति से अलग होना चाहते हैं। यह निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
1. न्याय
में त्वरित पहुंच: यह निर्णय उन लोगों को
जल्दी राहत प्रदान करता है, जो असाधारण परिस्थितियों का
सामना कर रहे हैं।
2. कानूनी
लचीलापन: धारा 14(1) का
उपयोग यह दर्शाता है कि कानून कठिन परिस्थितियों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की
अनुमति देता है।
3. महिला
और पुरुष दोनों के लिए समानता: यह फैसला
दोनों पक्षों के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित करता है, चाहे
आपराधिक मामला किसी ने भी दर्ज किया हो।
सावधानी और कानूनी सलाह
हालांकि
यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है, लेकिन यह
स्वतः लागू नहीं होता। याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि:
- उन्हें असाधारण कठिनाई हो रही है,
या
- प्रतिवादी का आचरण अत्यंत भ्रष्ट
है।
यदि
ये शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो पारिवारिक न्यायालय एक
वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को बरकरार रख सकता है। उदाहरण के लिए, सहारनपुर के एक मामले में, अपीलकर्ता असाधारण आधार
सिद्ध करने में विफल रहे, और उनकी याचिका खारिज कर दी गई।
इसलिए,
इस तरह के मामलों में कानूनी सलाह लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक
योग्य वकील आपको यह समझने में मदद कर सकता है कि आपका मामला धारा 14(1) के तहत छूट के लिए योग्य है या नहीं।
निष्कर्ष
इलाहाबाद
हाईकोर्ट का यह फैसला उन दंपतियों के लिए एक उम्मीद की किरण है,
जो विवाह के शुरुआती चरण में ही गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे
हैं। यह न केवल कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाता है, बल्कि यह
भी सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्ष बिना अनावश्यक देरी के अपने जीवन को आगे बढ़ा
सकें। हालांकि, इस प्रक्रिया में शामिल होने से पहले कानूनी
विशेषज्ञों की सलाह लेना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आपका मामला इस छूट
के लिए उपयुक्त है।
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