भारतीय
दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306,
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 108 आत्महत्या के लिए उकसाने
से संबंधित है। यह एक गंभीर अपराध को परिभाषित करती है, जिसमें
कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है या प्रेरित
करता है। यह धारा अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 108 में प्रतिबिंबित है,
क्योंकि 1 जुलाई 2024 से
आईपीसी को बीएनएस ने प्रतिस्थापित कर दिया है। नीचे धारा 306 का विस्तृत विवरण सरल और स्पष्ट भाषा में दिया गया है:
धारा
306
आईपीसी का पाठ
धारा
306
कहती है:
"यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या के लिए उकसाता है, और उस
उकसावे के परिणामस्वरूप वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है, तो
उकसाने वाला व्यक्ति इस धारा के तहत अपराधी माना जाएगा और उसे सजा दी जाएगी।"
सजा:
- दस वर्ष तक का कारावास
(जो साधारण या कठोर हो सकता है), और
- जुर्माना
भी लगाया जा सकता है।
धारा
306
के प्रमुख तत्व
धारा
306
के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक
है:
1. आत्महत्या
का होना:
o यह
सिद्ध करना जरूरी है कि मृतक ने आत्महत्या की थी। यदि मृत्यु किसी अन्य कारण (जैसे
हत्या,
दुर्घटना) से हुई, तो यह धारा लागू नहीं होगी।
2. उकसावे
का होना:
o अभियुक्त
ने मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाया,
प्रेरित किया, या जानबूझकर ऐसा कृत्य किया जो
आत्महत्या का कारण बना।
o उकसावे
का अर्थ है ऐसा कार्य या व्यवहार जो मृतक को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करे।
इसमें मानसिक उत्पीड़न, धमकी, अपमान, या लगातार प्रताड़ना शामिल हो सकती है।
3. उकसावे
और आत्महत्या के बीच सीधा संबंध:
o यह
सिद्ध करना जरूरी है कि अभियुक्त के उकसावे के कारण ही मृतक ने आत्महत्या की। यदि
आत्महत्या का कारण कोई अन्य कारक (जैसे व्यक्तिगत परेशानी,
मानसिक बीमारी) था, तो धारा 306 लागू नहीं होगी।
4. इरादा
या जानकारी:
o अभियुक्त
का इरादा या यह जानकारी होनी चाहिए कि उसका कृत्य मृतक को आत्महत्या के लिए
प्रेरित कर सकता है। यह इरादा स्पष्ट (direct) या
निहित (implied) हो सकता है।
उकसावे का अर्थ
- उकसावा
(Abetment) का मतलब केवल शारीरिक सहायता देना नहीं है। यह
मानसिक दबाव, प्रलोभन, धमकी,
या ऐसा व्यवहार भी हो सकता है जो किसी को आत्महत्या के लिए
मजबूर करे।
- उदाहरण:
- किसी को बार-बार अपमानित करना,
धमकी देना, या मानसिक रूप से इतना
प्रताड़ित करना कि वह आत्महत्या कर ले।
- किसी को आत्महत्या करने के लिए
साधन (जैसे जहर, रस्सी) उपलब्ध कराना,
यह जानते हुए कि इसका उपयोग आत्महत्या के लिए होगा।
- किसी को आत्महत्या करने के लिए
स्पष्ट रूप से कहना, जैसे "जा,
मर जा" (हालांकि, यह संदर्भ पर
निर्भर करता है)।
- महत्वपूर्ण:
केवल मानसिक तनाव या दुख का कारण बनना उकसावे के बराबर नहीं
माना जाता। उकसावे में सक्रिय भूमिका (active role) या
जानबूझकर प्रेरणा (deliberate instigation) का होना
जरूरी है।
सजा और प्रकृति
- सजा:
दस वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।
- अपराध की प्रकृति:
- यह एक संज्ञेय अपराध
(cognizable) है, यानी पुलिस बिना वारंट
के गिरफ्तारी कर सकती है।
- यह गैर-जमानती
(non-bailable) है, यानी जमानत का फैसला
अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।
- यह संग्राह्य
(compoundable) नहीं है, यानी पीड़ित
पक्ष और अभियुक्त के बीच समझौता नहीं हो सकता।
उदाहरण और केस कानून
1. मामले
का उदाहरण:
o यदि
कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को लगातार प्रताड़ित करता है,
उसे अपमानित करता है, और धमकी देता है कि वह
उसे छोड़ देगा या उसका जीवन बर्बाद कर देगा, और इसके
परिणामस्वरूप पत्नी आत्महत्या कर लेती है, तो यह धारा 306
के तहत अपराध हो सकता है। अगर पति, पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित
करता है और पत्नी परेशान होकर आत्महत्या कर लेती है तो धारा 304B आईपीसी तथा (80 BNS) दहेजहत्या का अपराध मना जाएगा
o लेकिन,
यदि कोई व्यक्ति केवल तलाक का मसौदा भेजता है, और इसके कारण पत्नी मानसिक तनाव में आत्महत्या कर लेती है, तो यह उकसावा नहीं माना जाएगा, जैसा कि केरल उच्च
न्यायालय के हाल के फैसले में देखा गया।
2. महत्वपूर्ण
केस कानून:
o गुरचरण
सिंह बनाम पंजाब राज्य (2016):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उकसावे का सिद्धांत तभी लागू होता है जब
अभियुक्त का कृत्य आत्महत्या का प्रत्यक्ष कारण हो। केवल सामान्य झगड़ा या तनाव
उकसावे के बराबर नहीं है।
o संजू
बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2002):
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी को "जा, मर
जा" कहना, बिना किसी सक्रिय उकसावे के, धारा 306 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
o केरल
उच्च न्यायालय का हालिया फैसला (2025):
तलाक समझौते का मसौदा भेजने को आत्महत्या के लिए उकसावे के रूप में
नहीं माना गया, क्योंकि इसमें सक्रिय उकसावे का कोई सबूत
नहीं था।
धारा
306
और अन्य धाराओं से संबंध
- धारा 498ए (पति द्वारा क्रूरता):
- धारा 498ए और 306 अक्सर एक साथ लगाए जाते हैं, खासकर वैवाहिक विवादों में। 498ए में पत्नी को
मानसिक या शारीरिक क्रूरता से प्रताड़ित करने का आरोप होता है, जबकि 306 में यह सिद्ध करना होता है कि
क्रूरता ने आत्महत्या को प्रेरित किया।
- उदाहरण: यदि पति की क्रूरता के
कारण पत्नी आत्महत्या करती है, तो
दोनों धाराएं लागू हो सकती हैं। अगर पत्नी को कम दहेज लाने या और अधिक दहेज
की मांग के लिए प्रताड़ित किया जाता है और वह परेशान होकर आत्महत्या कर लेती है तो यह दहेजहत्या {304B
IPC (80 BNS)} का अपराध माना जाएगा।
- धारा 107 (उकसावे की परिभाषा):
- धारा 306
में "उकसावे" की परिभाषा धारा 107 से ली गई है, जिसमें उकसावे में निम्न शामिल
हैं:
- किसी को
अपराध करने के लिए प्रेरित करना।
- अपराध में
सहायता करना।
- अपराध के
लिए साजिश रचना।
न्यायिक
दृष्टिकोण
अदालतें
धारा 306
के तहत मामलों में बहुत सावधानी बरतती हैं, क्योंकि
यह एक गंभीर आरोप है। कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- सबूत की आवश्यकता:
उकसावे का स्पष्ट और ठोस सबूत होना चाहिए। केवल अनुमान या
भावनात्मक तनाव पर्याप्त नहीं है।
- संदर्भ का महत्व:
हर मामला अपने तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
अदालत यह देखती है कि अभियुक्त का व्यवहार कितना गंभीर था।
- मानसिक स्थिति:
मृतक की मानसिक स्थिति (जैसे डिप्रेशन, अन्य
तनाव) भी जांच का हिस्सा होती है, ताकि यह सुनिश्चित हो
कि आत्महत्या अभियुक्त के उकसावे का परिणाम थी।
निष्कर्ष
धारा
306
आईपीसी (अब बीएनएस की धारा 108) आत्महत्या के लिए उकसाने को एक गंभीर अपराध मानती है, लेकिन इसके लिए अभियुक्त की सक्रिय भूमिका और स्पष्ट उकसावे का सबूत जरूरी
है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि केवल वही व्यक्ति दंडित हों, जिन्होंने जानबूझकर या लापरवाही से किसी को आत्महत्या के लिए प्रेरित
किया। केरल उच्च न्यायालय के हालिया फैसले ने यह स्पष्ट किया कि सामान्य तनाव या
वैवाहिक विवाद को उकसावे के रूप में नहीं देखा जा सकता, जब
तक कि ठोस सबूत न हों।