9 जून, 2025 को दिल्ली के द्वारका न्यायालय
में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश श्री शरद गुप्ता ने विकास सरोहा नामक व्यक्ति
के खिलाफ एक मामले में फैसला सुनाया। उन पर सुश्री पिंकेश (अभिषेक की पत्नी) और
उनके दो नाबालिग बच्चों का अपहरण करने, नशीली चाय देकर बेहोश
करने, उन्हें बंधक बनाने, और पिंकेश का
मोबाइल फोन तोड़ने के आरोप थे। यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 365 (अपहरण), 328 (नशीली
दवा देना), 427 (नुकसान पहुंचाना), और 342
(गलत तरीके से बंधक बनाना) के तहत दर्ज था।
अभियोजन पक्ष का दावा
अभियोजन
पक्ष ने कहा कि विकास सरोहा ने पिंकेश और उनके बच्चों को जबरन दिल्ली से चंडीगढ़
ले जाकर 23
अक्टूबर, 2017 से 21 फरवरी,
2018 तक एक घर में बंधक बनाए रखा। पिंकेश ने दावा किया कि आरोपी ने
उन्हें बस स्टैंड पर बुलाया, नशीली चाय पिलाई, जिससे वह बेहोश हो गईं, और फिर उन्हें चंडीगढ़ ले
जाया गया। साथ ही, उनके मोबाइल फोन को नष्ट करने का भी आरोप
लगाया गया।
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गवाहों की गवाही और विरोधाभास
न्यायालय
ने पिंकेश की गवाही की जाँच की, लेकिन उनके बयानों में
कई विरोधाभास पाए गए। उनके दावे और प्रारंभिक बयान में अंतर था, जिसके कारण उनकी गवाही को अविश्वसनीय माना गया। सर्वोच्च न्यायालय के एक
पुराने फैसले (1977) के आधार पर कोर्ट ने कहा कि यदि गवाह का
बयान बदलता है, तो उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
दो
अन्य महत्वपूर्ण गवाहों—चंडीगढ़ के मकान मालिक नजीर अहमद और किराना दुकानदार रवि
कुमार—ने भी पिंकेश के दावों का समर्थन नहीं किया। नजीर अहमद ने कहा कि उन्होंने
विकास को किराए पर कमरा दिया था, लेकिन पिंकेश या
बच्चों के बंधक होने की कोई जानकारी नहीं थी। रवि कुमार ने भी पिंकेश के वहाँ रहने
या खरीदारी करने से इनकार किया। इन गवाहियों ने अभियोजन पक्ष के मामले को और कमजोर
कर दिया।
महत्वपूर्ण तथ्य
- पिंकेश ने स्वीकार किया कि उन्हें
घर में सख्ती से बंद नहीं रखा गया था। वे पड़ोसियों से बात कर सकती थीं और
उनके पास पैसे भी थे।
- उनके बच्चों के साथ होने और कोई
शिकायत न करने से बंधक होने का दावा कमजोर पड़ा।
- विकास सरोहा हमेशा उनके साथ नहीं
रहता था और अक्सर बाहर जाता था, जिससे
यह साफ हुआ कि पिंकेश पर कोई सख्त नियंत्रण नहीं था।
- कोर्ट ने कहा कि अगर पिंकेश
वास्तव में खतरे में होतीं, तो उनके लिए मदद
माँगना आसान था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
कानूनी सिद्धांत
कोर्ट
ने कहा कि कानून के अनुसार, जब तक अभियोजन पक्ष बिना
किसी संदेह के अपराध साबित नहीं करता, तब तक आरोपी को
निर्दोष माना जाता है। इस मामले में, अभियोजन पक्ष अपराध के
सभी तत्वों को साबित करने में विफल रहा। केवल संदेह या संभावना के आधार पर किसी को
दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
अंतिम फैसला
साक्ष्यों
और गवाहों की जाँच के बाद, कोर्ट ने पाया कि अभियोजन
पक्ष के पास पर्याप्त सबूत नहीं थे। पिंकेश की गवाही अविश्वसनीय थी, और अन्य गवाहों ने उनके दावों का समर्थन नहीं किया। इसलिए, विकास सरोहा को सभी आरोपों (IPC धारा 365,
328, 427, और 342) से बरी कर दिया गया।
मामले का समापन
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पेज के इस फैसले को 9 जून, 2025 को खुली अदालत में सुनाया गया। मामले को रिकॉर्ड रूम में भेजने का आदेश
दिया गया।
मुख्य बिंदु
- पिंकेश के बयानों में विरोधाभास
और गवाहों के समर्थन की कमी के कारण अभियोजन पक्ष कमजोर रहा।
- कोई ठोस सबूत न होने और पीड़िता
के दावों के खंडन ने आरोपी को बरी करने का आधार दिया।
- यह मामला आपराधिक न्याय में "उचित
संदेह से परे" साक्ष्य की महत्ता को दर्शाता है।