भारत
में आपराधिक न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए
अभियोजन पक्ष को अपनी रणनीति स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है। दंड
प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 226 और भारतीया नागरिक
सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 249
इस प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं। यह लेख इन दोनों प्रावधानों का
तुलनात्मक विश्लेषण, उनकी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं, चुनौतियों, और संबंधित केस लॉ के साथ प्रस्तुत करता
है।
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CrPC धारा 226: अभियोजन के लिए मामला प्रारंभ करना
CrPC
धारा 226 के अनुसार,
जब कोई अभियुक्त धारा 209 के तहत मामले की
प्रतिबद्धता के बाद सत्र न्यायालय के समक्ष उपस्थित होता है या लाया जाता है,
तो अभियोजक को निम्नलिखित कदम उठाने होते हैं:
1. आरोप
का वर्णन: अभियोजक को अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए
आरोपों को स्पष्ट रूप से बताना होता है।
2. साक्ष्य
का प्रस्ताव: अभियोजक को यह बताना होता
है कि वह अभियुक्त के अपराध को साबित करने के लिए किन साक्ष्यों और गवाहों का
उपयोग करेगा।
उद्देश्य और महत्व
- पारदर्शिता:
यह धारा सुनिश्चित करती है कि अभियुक्त को उसके खिलाफ लगाए गए
आरोपों और साक्ष्यों की पूरी जानकारी हो, जो प्राकृतिक
न्याय के सिद्धांतों का पालन करती है।
- निष्पक्ष सुनवाई:
अभियोजक का प्रारंभिक बयान बचाव पक्ष को अपनी रणनीति तैयार
करने का अवसर देता है, जिससे सुनवाई निष्पक्ष रहती है।
- प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना:
यह प्रक्रिया अनावश्यक देरी को कम करती है और मुकदमे को
व्यवस्थित बनाती है।
चुनौतियाँ
- जटिल मामले:
जब मामले में एक से अधिक अभियुक्त या आरोप हों, तो साक्ष्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- कानूनी विशेषज्ञता:
अभियोजक को कानून का गहन ज्ञान और प्रभावी प्रस्तुति कौशल की
आवश्यकता होती है।
- साक्ष्य संग्रह:
सभी साक्ष्यों को समय पर एकत्र करना और उनकी विश्वसनीयता
सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है।
BNSS धारा 249: निरंतरता और परिवर्तन
BNSS
धारा 249 CrPC की
धारा 226 का स्थान लेती है और इसमें कई समानताएँ हैं। यह
धारा भी अभियोजक से यह अपेक्षा करती है कि वह अभियुक्त के खिलाफ आरोपों का वर्णन
करे और साक्ष्यों को प्रस्तुत करने की योजना बताए। हालांकि, BNSS में कुछ आधुनिक सुधार शामिल किए गए हैं:
1. डिजिटल
साक्ष्य: BNSS धारा 249 के
तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों, जैसे कि डिजिटल रिकॉर्ड्स और
संचार, को शामिल करने की अनुमति देता है, जो CrPC में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं था।
2. प्रक्रियात्मक
लचीलापन: BNSS में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से
सुनवाई और साक्ष्य प्रस्तुति की अनुमति दी गई है, जो
प्रक्रिया को और अधिक लचीला बनाता है।
3. समयबद्धता:
BNSS में प्रक्रियाओं को तेज करने पर जोर दिया गया है, जिससे अभियोजन पक्ष को अपनी प्रस्तुति को और अधिक संक्षिप्त और प्रभावी
बनाने की आवश्यकता है।
CrPC और BNSS के बीच तुलना
पहलू |
CrPC
धारा 226 |
BNSS
धारा 249 |
आरोप
का वर्णन |
अभियोजक
को आरोप स्पष्ट करना अनिवार्य है। |
समान
प्रावधान, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक
साक्ष्य शामिल। |
साक्ष्य
प्रस्तुति |
पारंपरिक
साक्ष्य पर केंद्रित। |
डिजिटल
और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर जोर। |
प्रक्रिया |
मैनुअल
और कागजी प्रक्रिया। |
इलेक्ट्रॉनिक
माध्यमों को शामिल करने की अनुमति। |
लचीलापन |
सीमित
लचीलापन। |
अधिक
लचीलापन और आधुनिक दृष्टिकोण। |
केस लॉ और न्यायिक व्याख्या
1. State
of Maharashtra v. Som Nath Thapa (1996):
o इस
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने CrPC धारा 226 के महत्व पर जोर दिया और कहा कि अभियोजक का प्रारंभिक बयान स्पष्ट और
संक्षिप्त होना चाहिए ताकि अभियुक्त को कोई आश्चर्य न हो।
o यह
सुनिश्चित करता है कि बचाव पक्ष को अपनी रणनीति तैयार करने का उचित अवसर मिले।
2. Supreme
Court Observation (2022):
o सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि अभियोजक का यह कर्तव्य है कि वह CrPC धारा 226 के तहत अदालत को अभियोजन के मामले का
स्पष्ट और निष्पक्ष विचार दे। यह प्रक्रिया आरोपों को निर्धारित करने और मुकदमे को
सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण है।
3. Krishan
Joshi v. State of Rajasthan (2024):
o इस
मामले में राजस्थान हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई FIR
1 जुलाई, 2024 से पहले दर्ज की गई थी, तो वह CrPC के प्रावधानों के तहत ही आगे बढ़ेगी,
न कि BNSS के। यह धारा 531 BNSS के बचत खंड के तहत तय किया गया।
BNSS की प्रासंगिकता और सुधार
BNSS,
2023 ने CrPC को प्रतिस्थापित करके आपराधिक
प्रक्रिया को आधुनिक बनाने का प्रयास किया है। धारा 249 के
तहत, निम्नलिखित सुधार उल्लेखनीय हैं:
- तकनीकी एकीकरण:
डिजिटल साक्ष्य और इलेक्ट्रॉनिक सुनवाई को शामिल करके
प्रक्रिया को और अधिक समकालीन बनाया गया है।
- सार्वजनिक सेवकों के लिए सुरक्षा:
BNSS धारा 218 (CrPC धारा 197 का समकक्ष) में "डीम्ड सैंक्शन" का प्रावधान जोड़ा गया है,
जिसके तहत यदि सरकार 120 दिनों के भीतर
स्वीकृति देने या अस्वीकार करने का निर्णय नहीं लेती, तो
स्वीकृति मानी जाएगी।
- निष्पक्षता और जवाबदेही:
BNSS में अभियुक्त को सुनवाई से पहले सुनने का अवसर देने जैसे
प्रावधान (धारा 223) जोड़े गए हैं, जो अभियोजन प्रक्रिया को और अधिक निष्पक्ष बनाते हैं।
निष्कर्ष
CrPC
धारा 226 और BNSS
धारा 249 दोनों ही आपराधिक न्याय प्रणाली
में अभियोजन के लिए मामला प्रारंभ करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं। जहाँ CrPC
पारंपरिक दृष्टिकोण पर आधारित थी, वहीं BNSS
ने डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साधनों को शामिल करके प्रक्रिया को
आधुनिक बनाया है। दोनों प्रावधानों का उद्देश्य निष्पक्ष सुनवाई, पारदर्शिता, और प्रक्रियात्मक दक्षता सुनिश्चित करना
है। हालांकि, जटिल मामलों और साक्ष्य संग्रह की चुनौतियाँ
अभी भी बनी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्णयों ने इन प्रावधानों की
व्याख्या को और स्पष्ट किया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है
कि अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष दोनों को उचित अवसर मिले।