भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में लोक अभियोजक (Public Prosecutor) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 225 और इसके उत्तराधिकारी कानून, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 248, यह सुनिश्चित करती हैं कि सत्र न्यायालय (Court of Session) में प्रत्येक आपराधिक मुकदमे का संचालन एक लोक अभियोजक द्वारा किया जाए। यह लेख इन धाराओं के प्रावधानों, लोक अभियोजक की भूमिका और जिम्मेदारियों, हाल के बदलावों, संबंधित केस लॉ, और इनका विशिष्ट आपराधिक मुकदमों में उपयोग पर विस्तार से चर्चा करता है।
CrPC
धारा 225 और BNSS धारा 248
का अर्थ
CrPC की धारा 225 स्पष्ट रूप से कहती है:
"प्रत्येक आपराधिक मुकदमे का संचालन, जो
सत्र न्यायालय में विचारणीय है, एक लोक अभियोजक द्वारा किया
जाएगा।"
यह
प्रावधान सुनिश्चित करता है कि गंभीर आपराधिक मामलों में,
जहां सजा सात वर्ष से अधिक कारावास, आजीवन
कारावास, या मृत्युदंड हो सकती है, अभियोजन
पक्ष की ओर से एक प्रशिक्षित और स्वतंत्र सरकारी वकील (लोक अभियोजक) ही मुकदमे का
नेतृत्व करेगा।
BNSS
की धारा 248, जो 1
जुलाई 2024 से CrPC को
प्रतिस्थापित कर चुकी है, भी यही प्रावधान रखती है। इसमें
कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया गया है, और यह धारा भी सत्र
न्यायालय में लोक अभियोजक की अनिवार्यता को रेखांकित करती है। हालांकि,
BNSS में प्रक्रियात्मक स्पष्टता और डिजिटल प्रक्रियाओं को शामिल
किया गया है, जो अभियोजन की प्रक्रिया को और आधुनिक बनाता
है।
लोक
अभियोजक की भूमिका और जिम्मेदारियाँ
लोक
अभियोजक को "न्याय का सेवक" (Minister of Justice) कहा जाता है। उनकी भूमिका केवल अभियुक्त को दोषी ठहराने तक सीमित नहीं है,
बल्कि सत्य को सामने लाने और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने में है।
उनकी प्रमुख भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ निम्नलिखित हैं:
1.
भूमिका
- राज्य का प्रतिनिधित्व:
लोक अभियोजक राज्य की ओर से कार्य करता है और समाज के व्यापक हितों की रक्षा
करता है। वह व्यक्तिगत शिकायतकर्ता का नहीं, बल्कि राज्य का प्रतिनिधि होता है।
- निष्पक्षता:
वह न तो अभियोजन पक्ष का पक्षपाती होता है और न ही अभियुक्त का। उसका कर्तव्य
सत्य को सामने लाना और कानून का पालन सुनिश्चित करना है।
- न्याय प्रक्रिया में योगदान:
वह सुनिश्चित करता है कि मुकदमा कानूनी प्रक्रियाओं के अनुरूप और निष्पक्ष
रूप से चले।
2.
जिम्मेदारियाँ
- मुकदमे का संचालन:
लोक अभियोजक सत्र न्यायालय में मामले को शुरू करने से लेकर अंतिम निर्णय तक
की प्रक्रिया का नेतृत्व करता है। इसमें शामिल हैं:
- मामले की शुरुआत:
अभियुक्त के खिलाफ आरोप पत्र (Charge Sheet) का विवरण देना और साक्ष्य प्रस्तुत करने की रणनीति बनाना।
- साक्ष्य प्रस्तुति:
गवाहों की जांच (Examination-in-Chief और
Cross-Examination), दस्तावेजी सबूत (जैसे फोरेंसिक
रिपोर्ट, मेडिकल रिकॉर्ड), और
कानूनी तर्क प्रस्तुत करना।
- अंतिम तर्क:
मुकदमे के अंत में अभियोजन पक्ष की ओर से समापन तर्क (Closing
Arguments) देना।
- सबूतों की निष्पक्ष प्रस्तुति:
लोक अभियोजक को सभी प्रासंगिक सबूत, चाहे
वे अभियुक्त के पक्ष में हों या खिलाफ, अदालत के सामने
रखने होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई साक्ष्य
अभियुक्त को बरी करने में मदद कर सकता है, तो उसे
छिपाना अनैतिक और गैरकानूनी है।
- कानूनी सलाह:
वह जांच एजेंसियों (जैसे पुलिस) को कानूनी मार्गदर्शन देता है ताकि जांच
प्रक्रिया CrPC/BNSS के प्रावधानों
के अनुसार हो।
- विशेष लोक अभियोजक:
गंभीर अपराधों (जैसे NDPS, PMLA, SC/ST एक्ट)
के लिए विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किए जाते हैं, जिनके
पास कम से कम 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए।
- पुलिस हिरासत और वारंट:
जांच के दौरान, लोक अभियोजक गिरफ्तारी
वारंट, सर्च वारंट, या पुलिस
हिरासत के लिए आवेदन करता है।
- फरार अभियुक्त:
यदि अभियुक्त फरार है, तो लोक अभियोजक उसे भागीदा
अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित करने और
उसकी संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू करता है।
- सजा पर तर्क:
यदि अभियुक्त दोषी पाया जाता है, तो
लोक अभियोजक सजा की गंभीरता (जैसे आजीवन कारावास या मृत्युदंड) पर तर्क
प्रस्तुत करता है।
हालिया
बदलाव और केस लॉ
1.
हालिया बदलाव
- CrPC से BNSS में परिवर्तन: BNSS ने
CrPC को प्रतिस्थापित किया है, और
धारा 225 अब धारा 248 के रूप में
मौजूद है। BNSS में कुछ प्रक्रियात्मक बदलाव किए गए
हैं:
- लोक अभियोजक की
परिभाषा: BNSS की धारा 2(v)
में लोक अभियोजक को धारा 18 के तहत
नियुक्त व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें
उनके निर्देशों के तहत कार्य करने वाले व्यक्ति भी शामिल हैं।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
BNSS धारा 18(4) और 18(5) के तहत, जिला मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायाधीश के परामर्श से, लोक अभियोजकों
और अतिरिक्त लोक अभियोजकों के लिए नामों का पैनल तैयार करता है।
- विशेष लोक अभियोजक:
BNSS धारा 18(8) में विशेष लोक
अभियोजकों की नियुक्ति का प्रावधान है, जो विशेष
कानूनों (जैसे NDPS, SC/ST एक्ट) के लिए नियुक्त किए
जाते हैं।
- डिजिटल प्रक्रियाएँ:
BNSS में इलेक्ट्रॉनिक संचार और डिजिटल साक्ष्य प्रस्तुति को
बढ़ावा दिया गया है, जिससे लोक अभियोजकों को डिजिटल
रिकॉर्ड और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही प्रस्तुत करने की
सुविधा मिलती है।
- अन्य बदलाव:
BNSS में समय-सीमा को और सख्त किया गया है, जैसे कि पुलिस हिरासत की अवधि को बढ़ाना (BNSS धारा 187) और अग्रिम जमानत के कुछ प्रावधानों
को हटाना (BNSS धारा 482)।
2.
महत्वपूर्ण केस लॉ
सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले में लोक अभियोजक की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि
लोक अभियोजक ने अभियोजन पक्ष के बजाय बचाव पक्ष की तरह काम किया,
जिसके कारण मुकदमा गुजरात से बाहर स्थानांतरित किया गया। यह केस लोक
अभियोजक की निष्पक्षता के महत्व को दर्शाता है।
दिल्ली
हाई कोर्ट ने कहा कि लोक अभियोजक को "न्याय का सेवक" मानकर कार्य
करना चाहिए, न कि केवल अभियुक्त को दोषी ठहराने का
प्रयास करना चाहिए।
सुप्रीम
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोक अभियोजक की प्राथमिक जिम्मेदारी मुकदमे के संचालन में
है,
न कि जांच में हस्तक्षेप करने में।
पंजाब
और हरियाणा हाई कोर्ट ने BNSS के लागू होने के बाद CrPC
के तहत दायर याचिकाओं की वैधता पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि 1
जुलाई 2024 से पहले दायर याचिकाएँ CrPC
के तहत ही वैध रहेंगी, जो लोक अभियोजकों की
प्रक्रियात्मक जिम्मेदारियों को प्रभावित करता है।
विशिष्ट
आपराधिक मुकदमों में उपयोग
CrPC
धारा 225 और BNSS धारा 248
का उपयोग उन गंभीर आपराधिक मुकदमों में होता है जो सत्र न्यायालय
में विचारणीय हैं। ये मामले आमतौर पर उन अपराधों से संबंधित होते हैं जिनकी सजा
सात वर्ष से अधिक कारावास, आजीवन कारावास, या मृत्युदंड हो सकती है। कुछ विशिष्ट उदाहरण:
1.
हत्याकांड (Murder Cases)
- कानून:
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302
(BNS धारा 103)।
- लोक अभियोजक की भूमिका:
हत्या के मामलों में, लोक अभियोजक फोरेंसिक
साक्ष्य (जैसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट), चश्मदीद गवाह,
और अन्य सबूत (जैसे हथियार) प्रस्तुत करता है। वह यह सुनिश्चित
करता है कि पीड़ित के परिवार को न्याय मिले।
- उदाहरण:
Best
Bakery Case (2004) में, लोक अभियोजक की विफलता के कारण सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को
स्थानांतरित किया।
2.
बलात्कार (Rape Cases)
- कानून:
IPC धारा 376 (BNS धारा 63)।
- लोक अभियोजक की भूमिका:
बलात्कार के मामलों में, लोक अभियोजक
मेडिकल साक्ष्य, पीड़िता की गवाही, और डीएनए सबूतों को सावधानीपूर्वक प्रस्तुत करता है। वह पीड़िता के
अधिकारों की रक्षा करता है और क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान संवेदनशीलता बरतता
है।
- उदाहरण:
निर्भया केस (2012)
में विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति ने तेजी से और प्रभावी
अभियोजन सुनिश्चित किया।
3.
आर्थिक अपराध (Economic Offences)
- कानून:
IPC धारा 420 (धोखाधड़ी) या PMLA
(मनी लॉन्ड्रिंग)।
- लोक अभियोजक की भूमिका:
जटिल वित्तीय रिकॉर्ड, बैंक स्टेटमेंट,
और डिजिटल साक्ष्य प्रस्तुत करना। विशेष लोक अभियोजक इन मामलों
में नियुक्त किए जाते हैं।
- उदाहरण:
2G
घोटाला जैसे मामलों में
विशेष लोक अभियोजकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4.
आतंकवाद और संगठित अपराध
- कानून:
UAPA या MCOCA।
- लोक अभियोजक की भूमिका:
राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित साक्ष्य, जैसे
इंटरसेप्टेड कॉल, खुफिया जानकारी, और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- उदाहरण:
26/11
मुंबई हमला केस में लोक
अभियोजक ने आतंकवादियों के खिलाफ मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत किए।
5.
SC/ST (Prevention of Atrocities) Act
- लोक अभियोजक की भूमिका:
विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किए जाते हैं जो पीड़ित समुदाय के हितों की रक्षा
करते हैं और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करते हैं।
- उदाहरण:
दलित समुदाय के खिलाफ अत्याचार के मामलों में विशेष लोक अभियोजक की भूमिका
महत्वपूर्ण होती है।
प्रक्रियात्मक
उपयोग
- मुकदमा शुरू करना:
लोक अभियोजक आरोप पत्र के आधार पर मामले को खोलता है (CrPC
धारा 226, BNSS धारा 249)।
- अभियुक्त का निर्वहन:
यदि साक्ष्य अपर्याप्त हैं, तो लोक अभियोजक
और बचाव पक्ष की सुनवाई के बाद अभियुक्त को निर्वहन (Discharge) किया जा सकता है।
- सजा पर सुनवाई:
दोषसिद्धि के बाद, लोक अभियोजक सजा की
गंभीरता पर तर्क देता है, जैसे कि मृत्युदंड या आजीवन
कारावास।
निष्कर्ष
CrPC
धारा 225 और BNSS
धारा 248 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की
रीढ़ हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि गंभीर आपराधिक
मुकदमों का संचालन एक प्रशिक्षित और निष्पक्ष लोक अभियोजक द्वारा किया जाए। लोक
अभियोजक की भूमिका केवल अभियुक्त को सजा दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सत्य और न्याय के लिए कार्य करता है। BNSS ने
इस प्रक्रिया को और आधुनिक और पारदर्शी बनाया है, विशेष रूप
से डिजिटल साक्ष्य और प्रक्रियात्मक समय-सीमाओं के माध्यम से। Best
Bakery Case और निर्भया केस जैसे ऐतिहासिक मामलों ने लोक
अभियोजक की भूमिका के महत्व को और स्पष्ट किया है।