मुख्य बिन्दु
- सुप्रीम कोर्ट ने
इलाहाबाद हाई कोर्ट की जमानत याचिका को 27 बार टालने पर नाराजगी जताई, यह एक धोखाधड़ी
मामले से जुड़ा था।
- आरोपी लक्ष्य तवर को
करीब 4 साल जेल में रहने के
बाद जमानत दी गई, क्योंकि देरी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता
का उल्लंघन माना गया।
- यह मामला सीबीआई की
जांच से संबंधित था, और
हाई कोर्ट की देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए।
पृष्ठभूमि
यह
मामला एक धोखाधड़ी के केस से जुड़ा है, जहां
आरोपी लक्ष्य तवर को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत
याचिका की सुनवाई 27 बार टाली, जिससे
सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतनी देरी व्यक्तिगत
स्वतंत्रता के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
चीफ
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने आरोपी को जमानत दी और हाई
कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा, "4 साल जेल में रहने के बाद, 27 बार सुनवाई टाली गई,
28वीं बार क्या उम्मीद की जा सकती है?"
अतिरिक्त संदर्भ
यह
मामला न्यायिक देरी की समस्या को भी उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट में 82,831
मामले लंबित हैं, और हाई कोर्ट्स में 2014
से 41 लाख से बढ़कर अब 59 लाख मामले लंबित हैं। सभी कोर्ट्स में 5 करोड़ से
ज्यादा मामले लंबित हैं।
सहायक
लिंक: Dainik Bhaskar, Navbharat Times
विस्तृत रिपोर्ट
इस
खंड में,
हम सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी और जमानत याचिका को 27 बार टालने के मामले की गहराई से जांच करेंगे, जो हाल
ही में सुर्खियों में रहा। यह रिपोर्ट उपयोगकर्ता के प्रश्न को संबोधित करती है और
सभी प्रासंगिक विवरणों को शामिल करती है, जो सोच प्रक्रिया
से प्राप्त हुए हैं।
परिचय और पृष्ठभूमि
सुप्रीम
कोर्ट ने 22 मई, 2025 को
इलाहाबाद हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई, जब एक
जमानत याचिका को 27 बार टालने का मामला सामने आया। यह मामला
एक धोखाधड़ी के केस से जुड़ा था, जिसकी जांच केंद्रीय जांच
ब्यूरो (सीबीआई) कर रही थी। आरोपी, लक्ष्य तवर, करीब 4 साल (3 साल, 8 महीने, 24 दिन) से जेल में थे, और इस देरी को सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन माना।
न्यायिक
प्रक्रिया में देरी एक व्यापक समस्या है, और यह
मामला इस मुद्दे को और उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप
करते हुए आरोपी को जमानत दी और हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।
मामले का विवरण
मामले
की बारीकियों को समझने के लिए, आइए तालिका के माध्यम
से मुख्य बिंदुओं को व्यवस्थित करें:
विवरण |
जानकारी |
केस
का संदर्भ |
धोखाधड़ी
का मामला, सीबीआई की जांच, आरोपी लक्ष्य तवर 4 साल से जेल में |
सुप्रीम
कोर्ट का कार्य |
इलाहाबाद
हाई कोर्ट को फटकार, 27 बार टालने पर
नाराजगी, जमानत दी |
बेंच |
चीफ
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह |
इलाहाबाद
हाई कोर्ट का कार्य |
सुनवाई
27 बार टाली, 20 मार्च
को ट्रायल कोर्ट को तेजी से कार्यवाही का निर्देश |
सीबीआई
का रुख |
जमानत
का विरोध, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल
राजा ठाकरे ने 33 केसों का हवाला दिया |
बचाव
पक्ष का तर्क |
वकील
राजा चौधरी ने कहा, 33 में से 27
केस गिरफ्तारी के बाद दर्ज, उनमें जमानत
मिली, 365 में से सिर्फ 3 गवाहों की
गवाही |
सुप्रीम
कोर्ट की टिप्पणी |
जस्टिस
गवई ने पूछा, "4 साल जेल में,
27 बार टाली गई, 28वीं बार क्या उम्मीद?" |
लंबित
मामलों का आंकड़ा |
सुप्रीम
कोर्ट: 82,831 लंबित, 2024 में 38,995 नए, 37,158 निपटाए;
हाई कोर्ट: 2014 में 41 लाख, अब 59 लाख; सभी कोर्ट: 5 करोड़ से ज्यादा लंबित |
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले में विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए जमानत दी,
खासतौर पर इस आधार पर कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले को 27 बार स्थगित किया था। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने सवाल उठाया कि इतनी देरी
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा, "नॉर्मली हम इस मामले को सुनते, लेकिन 27 बार टालने के कारण हम नोटिस जारी कर रहे हैं।"
सीबीआई
ने जमानत का विरोध किया, यह कहते हुए कि आरोपी के
खिलाफ 33 मामले दर्ज हैं, लेकिन बचाव
पक्ष ने तर्क दिया कि इनमें से 27 केस गिरफ्तारी के बाद दर्ज
किए गए थे और उनमें पहले ही जमानत मिल चुकी थी। इसके अलावा, ट्रायल
में सिर्फ 365 में से 3 गवाहों की
गवाही हुई थी, जो प्रक्रिया की धीमी गति को दर्शाता है।
न्यायिक देरी का संदर्भ
यह
मामला भारत में न्यायिक देरी की व्यापक समस्या को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट
में 82,831
मामले लंबित हैं, जिसमें 2024 में 38,995 नए मामले दाखिल हुए और 37,158 निपटाए गए। हाई कोर्ट्स में लंबित मामलों की संख्या 2014 में 41 लाख थी, जो अब बढ़कर 59
लाख हो गई है। सभी कोर्ट्स मिलाकर 5 करोड़ से
ज्यादा मामले लंबित हैं, जो न्यायिक प्रणाली पर दबाव को
दर्शाता है।
संबंधित
समाचार के लिए, और जानकारी के लिए यह लिंक देखें।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट की नाराजगी और जमानत याचिका को 27 बार
टालने का मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक देरी की गंभीर समस्या को उजागर
करता है। यह मामला न केवल एक व्यक्ति के अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि भारत की न्यायिक प्रणाली में सुधार की जरूरत को भी दर्शाता है।