सीधा उत्तर
- सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय आधार पर
दुष्कर्म के दोषी युवक की सजा माफ की, जो
कि 14 साल की नाबालिग लड़की से जुड़ा मामला था और आरोपी
25 साल का था।
- वे बाद में शादी कर चुके हैं और
अब उनके एक बच्चे हैं, हालांकि उपयोगकर्ता ने
दो बच्चों का उल्लेख किया है, जो स्रोतों में भिन्नता
दिखाता है।
- कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142
का उपयोग करते हुए सजा माफ की, यह कहते
हुए कि यह भविष्य के मामलों के लिए मिसाल नहीं बनेगा।
- पीड़िता ने अपने पति को जेल भेजने
से रोकने की अपील की थी, और कोर्ट ने
सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए फैसला दिया।
पृष्ठभूमि:
यह मामला 2018 का है, जहां पीड़िता 14 साल की थी और आरोपी 25 साल का था। स्थानीय कोर्ट ने आरोपी को POCSO अधिनियम के तहत 20 साल की सजा सुनाई थी। बाद में, कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2023 में आरोपी को बरी कर दिया, लेकिन विवादास्पद टिप्पणियां कीं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में सजा को बहाल किया लेकिन सजा लागू नहीं की। 20 मई, 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए सजा माफ की, यह देखते हुए कि वे शादीशुदा हैं और एक बच्चे के माता-पिता हैं।न्यायिक निर्णय:
कोर्ट
ने कहा कि पीड़िता ने इस कृत्य को अपराध नहीं माना और कानूनी प्रक्रिया से उसे
अधिक नुकसान हुआ। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने पीड़िता की भावनात्मक और सामाजिक
स्थिति का मूल्यांकन किया, जिसने कोर्ट को "पूर्ण
न्याय" के लिए प्रेरित किया।
विवाद और अस्पष्टता:
यह
निर्णय विवादास्पद है, क्योंकि यह POCSO अधिनियम के सख्त प्रावधानों से हटकर है, जो
नाबालिगों की रक्षा पर जोर देता है। उपयोगकर्ता द्वारा दो बच्चों का उल्लेख और
स्रोतों में एक बच्चे का उल्लेख असंगति पैदा करता है, जो
संभवतः रिपोर्टिंग में त्रुटि या अपडेट की कमी हो सकती है।
यह
मामला 2018
में शुरू हुआ, जब पीड़िता 14 साल की थी और आरोपी 25 साल का था। स्थानीय कोर्ट ने
आरोपी को POCSO अधिनियम, 2012 के तहत
दोषी ठहराया और 20 साल की सजा सुनाई, क्योंकि
यह अधिनियम नाबालिगों (18 साल से कम उम्र के) के यौन शोषण को
गंभीर अपराध मानता है। 2023 में, कलकत्ता
हाई कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया, लेकिन इसने विवादास्पद
टिप्पणियां कीं, जैसे कि किशोरावस्था की लड़कियों को अपनी
यौन इच्छाओं पर "नियंत्रण" रखना चाहिए, जो
सार्वजनिक आक्रोश का कारण बना। इस पर, सुप्रीम कोर्ट ने 2023
में स्वतः संज्ञान (suo motu) लिया और मामले
की सुनवाई शुरू की।
अगस्त
2024
में, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को
पलटते हुए सजा को बहाल किया, लेकिन सजा लागू करने पर रोक लगा
दी। अंततः, 20 मई, 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत, सजा माफ कर दी। यह निर्णय इस आधार पर लिया गया कि आरोपी और पीड़िता अब
शादीशुदा हैं और एक बच्चे के माता-पिता हैं, और पीड़िता ने
इस कृत्य को अपराध नहीं माना।
अनुच्छेद
142
और "पूर्ण न्याय" का उपयोग
अनुच्छेद
142
भारत के संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो
सुप्रीम कोर्ट को "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश
पारित करने की शक्ति देता है। इस मामले में, कोर्ट ने इस
शक्ति का उपयोग करते हुए सजा माफ की, यह देखते हुए कि
पीड़िता और आरोपी की शादी और उनके परिवार की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखना
जरूरी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय भविष्य के मामलों के लिए मिसाल नहीं
बनेगा, जो इस बात को दर्शाता है कि यह एक अपवादात्मक मामला
माना गया।
पीड़िता
की अपील और विशेषज्ञ समिति
उपयोगकर्ता
ने उल्लेख किया कि पीड़िता ने अपने पति को जेल भेजने से रोकने की अपील की थी,
जो स्रोतों में पुष्टि होती है। सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति
का गठन किया, जिसमें मनोवैज्ञानिक और बाल कल्याण अधिकारी
शामिल थे, जिन्होंने पीड़िता की भावनात्मक और सामाजिक स्थिति
का मूल्यांकन किया। समिति की रिपोर्ट में पाया गया कि पीड़िता आरोपी के प्रति
भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई थी और परिवार को बनाए रखने के लिए सजा लागू करने से
उसे और नुकसान हो सकता था। यह रिपोर्ट कोर्ट के निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई।
बच्चों की संख्या में असंगति
उपयोगकर्ता
ने कहा कि अब उनके दो बच्चे हैं (अब उनके दो बच्चे हैं),
लेकिन विश्वसनीय स्रोत, जैसे India Today और Bar and Bench, में उल्लेख है कि उनके पास एक
बच्चा है और वे पश्चिम बंगाल में साथ रहते हैं। यह असंगति संभवतः उपयोगकर्ता की
जानकारी में त्रुटि या समाचार रिपोर्टिंग में अपडेट की कमी के कारण हो सकती है।
वर्तमान समय (24 मई, 2025) को देखते
हुए, नवीनतम स्रोतों के आधार पर, यह
माना जा सकता है कि उनके पास एक बच्चा है, लेकिन उपयोगकर्ता
की जानकारी को पूरी तरह नकारना उचित नहीं है।
कानूनी और सामाजिक निहितार्थ
यह
निर्णय POCSO
अधिनियम के सख्त प्रावधानों से हटकर है, जो
नाबालिगों की रक्षा पर जोर देता है और किसी भी यौन गतिविधि को, चाहे सहमति हो या नहीं, अपराध मानता है। सुप्रीम
कोर्ट का यह कदम विवादास्पद है, क्योंकि यह बाल संरक्षण
कानूनों और सांस्कृतिक प्रथाओं (जैसे शादी को अपराध का समाधान मानना) के बीच टकराव
को उजागर करता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय पीड़िता और उसके
परिवार की भलाई को ध्यान में रखता है, जबकि अन्य इसे POCSO
अधिनियम के उद्देश्य को कमजोर करने वाला मानते हैं।
तालिका: मामले के मुख्य बिंदु
बिंदु |
विवरण |
घटना
की तिथि |
2018 |
पीड़िता
की उम्र |
14
साल |
आरोपी
की उम्र |
25
साल |
प्रारंभिक
सजा |
POCSO
अधिनियम के तहत 20 साल की सजा |
कलकत्ता
हाई कोर्ट का फैसला |
2023
में बरी, विवादास्पद टिप्पणियां |
सुप्रीम
कोर्ट का फैसला |
20
मई, 2025 को सजा माफ, अनुच्छेद
142 का उपयोग |
वर्तमान
स्थिति |
शादीशुदा,
एक बच्चा, पश्चिम बंगाल में साथ रहते हैं
(उपयोगकर्ता: दो बच्चे) |
विशेषज्ञ
समिति |
पीड़िता
की भावनात्मक और सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन |
निष्कर्ष
यह
मामला सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के
उपयोग को दर्शाता है, जो "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित
करने के लिए लचीलापन प्रदान करता है। हालांकि, यह निर्णय
कानूनी और नैतिक बहस को जन्म देता है, विशेष रूप से POCSO
अधिनियम के संदर्भ में। उपयोगकर्ता द्वारा उल्लेखित दो बच्चों की
संख्या और स्रोतों में एक बच्चे का उल्लेख असंगति को दर्शाता है, लेकिन नवीनतम रिपोर्ट्स के आधार पर, यह माना जा सकता
है कि उनके पास एक बच्चा है। यह मामला न्यायपालिका की संवेदनशीलता और सामाजिक
वास्तविकताओं को संतुलित करने की चुनौती को उजागर करता है।