भारत
में बच्चों के यौन शोषण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं,
जिसने समाज और न्याय व्यवस्था के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी
है। इस संकट से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और स्वागत योग्य कदम
उठाया है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को विशेष
पोक्सो अदालतें स्थापित करने का सख्त निर्देश दिया
है, ताकि बाल यौन शोषण के मामलों में त्वरित और संवेदनशील न्याय सुनिश्चित हो सके। यह लेख
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले, इसके महत्व, चुनौतियों और बच्चों के अधिकारों पर विस्तार से चर्चा करेगे।
सुप्रीम
कोर्ट का निर्देश: क्या हुआ?
16
मई 2025 को, जस्टिस बेला
एम. त्रिवेदी और जस्टिस पी.बी. वराले की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए
केंद्र सरकार को विशेष पोक्सो अदालतें स्थापित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यौन
अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 के तहत मामलों में देरी को गंभीरता से लिया और कहा कि विशेष अदालतों की
अपर्याप्त संख्या के कारण पीड़ित बच्चों को समय पर न्याय नहीं मिल रहा। कोर्ट के
प्रमुख निर्देश इस प्रकार हैं:
- प्राथमिकता पर अदालतें:
हर जिले में 100 से अधिक लंबित पोक्सो
मामलों के लिए कम से कम एक विशेष अदालत और 300 से अधिक
मामलों वाले जिलों में दो अदालतें स्थापित की जाएं।
- समयबद्ध सुनवाई:
आरोप पत्र दाखिल करने से लेकर मुकदमे की सुनवाई तक, सभी प्रक्रियाएं पोक्सो एक्ट में तय समय सीमा के भीतर पूरी हों।
- अधिकारियों का प्रशिक्षण:
जांच अधिकारियों और पुलिस को बच्चों के प्रति संवेदनशील बनाने
के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएं।
- राज्यों की जवाबदेही:
केंद्र के वित्त पोषण का उपयोग कर विशेष अदालतें स्थापित करने
में ढिलाई बरतने वाले राज्यों को तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश।
कोर्ट
ने तमिलनाडु, बिहार, उत्तर
प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और
महाराष्ट्र जैसे राज्यों की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई, जहां
केंद्र के फंड के बावजूद पर्याप्त अदालतें नहीं बनाई गईं।
पोक्सो
एक्ट: बच्चों के लिए एक मजबूत ढाल
पोक्सो
एक्ट (Protection
of Children from Sexual Offences Act, 2012) बच्चों को यौन शोषण,
उत्पीड़न और अश्लील सामग्री से बचाने के लिए बनाया गया एक विशेष
कानून है। यह 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों (लड़के और
लड़कियां दोनों) के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। इसकी मुख्य विशेषताएं हैं:
- बाल-केंद्रित न्याय:
विशेष अदालतें और प्रक्रियाएं बच्चों की मानसिक और भावनात्मक
स्थिति को ध्यान में रखती हैं।
- कठोर दंड:
यौन अपराधों के लिए 3 साल से लेकर आजीवन
कारावास और जुर्माने का प्रावधान।
- त्वरित प्रक्रिया:
मामलों को 60 दिनों के भीतर निपटाने का
लक्ष्य।
- 2019 संशोधन:
गंभीर अपराधों में मृत्युदंड और न्यूनतम सजा को बढ़ाने का
प्रावधान।
हालांकि,
विशेष अदालतों और संसाधनों की कमी के कारण यह कानून अपनी पूरी
क्षमता से लागू नहीं हो पा रहा था। सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्देश इस कमी को दूर
करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
बाल
यौन शोषण: एक गंभीर संकट
भारत
में बच्चों के यौन शोषण की स्थिति चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022
के आंकड़ों के अनुसार, पोक्सो एक्ट के तहत
दर्ज मामलों में 25.8% की वृद्धि हुई। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट
बताती है कि 53% बच्चे किसी न किसी रूप में यौन शोषण का
शिकार होते हैं। इनमें से अधिकांश मामले परिवार, रिश्तेदारों
या परिचितों द्वारा किए जाते हैं, जिसके कारण शिकायत दर्ज
करना और भी मुश्किल हो जाता है।
सुप्रीम
कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान इस बढ़ती समस्या पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट
ने कहा कि विशेष पोक्सो अदालतों की कमी और जांच में देरी के कारण पीड़ित बच्चों और
उनके परिवारों को लंबे समय तक मानसिक और सामाजिक पीड़ा झेलनी पड़ती है।
चुनौतियां:
क्या हैं रास्ते की बाधाएं?
पोक्सो
एक्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, बच्चों को
त्वरित न्याय दिलाने में कई चुनौतियां हैं:
- कम सजा दर:
एक अध्ययन के अनुसार, पोक्सो मामलों में
सजा की दर केवल 14% है, जो खराब
जांच और सबूतों की कमी को दर्शाता है।
- संसाधनों की कमी:
कई राज्यों में विशेष अदालतों, प्रशिक्षित
पुलिस और फोरेंसिक सुविधाओं का अभाव है।
- सामाजिक कलंक:
यौन शोषण के मामलों में सामाजिक डर और शर्म के कारण पीड़ित
अक्सर शिकायत दर्ज नहीं करते।
- कानूनी जटिलताएं:
लंबी कानूनी प्रक्रियाएं और गवाहों की अनुपस्थिति के कारण
मामले अटक जाते हैं।
इन
समस्याओं को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित सुझाव दिए:
- जागरूकता अभियान:
स्कूलों, समुदायों और सोशल मीडिया के
माध्यम से पोक्सो एक्ट और बच्चों के अधिकारों की जानकारी फैलाई जाए।
- हेल्पलाइन और सहायता:
चाइल्डलाइन (1098) और ऑनलाइन शिकायत
पोर्टल को और सुलभ बनाया जाए।
- प्रशिक्षण और संसाधन:
राष्ट्रीय और राज्य न्यायिक अकादमियों के माध्यम से जजों,
वकीलों और पुलिस के लिए विशेष प्रशिक्षण।
सुप्रीम
कोर्ट के फैसले का प्रभाव
सुप्रीम
कोर्ट का यह निर्देश बच्चों के लिए सुरक्षित और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में एक
क्रांतिकारी कदम है। इसके संभावित प्रभाव हैं:
- तेज न्याय:
विशेष पोक्सो अदालतें मामलों को जल्दी निपटाएंगी, जिससे पीड़ितों को समय पर राहत मिलेगी।
- अपराधियों में डर:
त्वरित और कठोर सजा से यौन अपराधियों में कानून का भय बढ़ेगा।
- सामाजिक जागरूकता:
यह फैसला बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर
सार्वजनिक चर्चा को प्रोत्साहित करेगा।
- संवैधानिक प्रतिबद्धता:
यह कदम संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत बच्चों के अधिकारों को मजबूत करता
है।
कोर्ट
ने साफ कहा कि बच्चों के हित सर्वोपरि हैं, और इस
दिशा में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
समाज
की भूमिका: आप क्या कर सकते हैं?
बच्चों
के यौन शोषण को रोकने और पीड़ितों को न्याय दिलाने में हर व्यक्ति की भूमिका
महत्वपूर्ण है। आप निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:
- जागरूकता बढ़ाएं:
अपने परिवार, स्कूल और समुदाय में पोक्सो
एक्ट और बच्चों के अधिकारों के बारे में बात करें।
- शिकायत दर्ज करें:
अगर आपको किसी बच्चे के साथ यौन शोषण का मामला पता चलता है,
तो तुरंत पुलिस, चाइल्डलाइन (1098),
या स्थानीय बाल कल्याण समिति से संपर्क करें।
- बच्चों को शिक्षित करें:
छोटी उम्र से बच्चों को “अच्छा स्पर्श” और “बुरा स्पर्श” के
बारे में सिखाएं।
- सहायता प्रदान करें:
पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों को भावनात्मक और कानूनी सहायता
प्रदान करें।
सामाजिक
जागरूकता और सामूहिक प्रयासों से ही इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट का विशेष पोक्सो अदालतें स्थापित करने का
निर्देश बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ एक मजबूत कदम है। यह फैसला न केवल पीड़ित
बच्चों को त्वरित न्याय दिलाने में मदद करेगा, बल्कि समाज में
बच्चों की सुरक्षा और सम्मान को बढ़ावा देगा। केंद्र और राज्य सरकारों को अब इस
आदेश को पूरी गंभीरता से लागू करना होगा। यह समय है कि हम सब मिलकर बच्चों के लिए
एक सुरक्षित और समावेशी समाज बनाएं, जहां हर बच्चा बिना डर
के जी सके।
क्या
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जागरूकता फैलाएं।