17 मई 2025
दिल्ली
हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि सिविल नौकरियों और अर्धसैनिक
बलों की नौकरियों में बड़ा फर्क है। अदालत ने साफ कहा कि अर्धसैनिक बलों में काम करने
वाले लोगों के लिए शारीरिक रूप से फिट रहना केवल पसंद का मामला नहीं है,
बल्कि सुरक्षा और देश की रक्षा के लिए ज़रूरी शर्त है। कोर्ट ने कहा
कि बलों में तैनात जवानों को कई बार ऊँचे पहाड़ों, रेगिस्तानों
और दूसरे कठिन इलाकों में तैनात रहना पड़ता है। वहाँ उन्हें खराब मौसम, शारीरिक थकान और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी
जगहों पर तैनाती के लिए ज़रूरी है कि जवान पूरी तरह स्वस्थ और मजबूत हों। इससे न सिर्फ
उनकी अपनी सुरक्षा होती है, बल्कि बल की कार्यक्षमता भी बनी रहती
है।
यह
टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सी हरि शंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपाल की
खंडपीठ ने की। मामला एक ITBP उम्मीदवार से जुड़ा था,
जिसे मेडिकल जांच में अनफिट करार देकर भर्ती से बाहर कर दिया गया था।
उम्मीदवार ने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई थी। उसने कहा था कि उसका एक
अंडकोष हटाया गया है, लेकिन इससे वह भारतीय वायुसेना जैसी दूसरी
सेनाओं में अयोग्य नहीं माना जाता। इसलिए उसे भी भर्ती का मौका मिलना चाहिए और उसके
साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए।
इस
पर कोर्ट ने साफ कहा कि हर सेवा का अपना अलग मेडिकल फिटनेस का मापदंड होता है। जिस
तरह एक बल के नियम दूसरे पर लागू नहीं होते, वैसे ही एक
बल में भर्ती के लिए जो मेडिकल मानक होते हैं, वे दूसरे बल के
लिए बाध्यकारी नहीं हो सकते। यानी एक बल में अगर किसी बीमारी या शारीरिक कमी के बावजूद
भर्ती दी जाती है, तो जरूरी नहीं कि दूसरे बल भी वही करें।
कोर्ट
ने
ITBP के मेडिकल बोर्ड द्वारा उम्मीदवार को अनफिट करार दिए जाने के फैसले
को सही ठहराया। अदालत ने कहा कि हम उत्तरदाताओं के फैसले में कोई कानूनी या तथ्यात्मक
गलती नहीं देखते। साथ ही यह भी कहा कि अर्धसैनिक बलों के काम की प्रकृति और उनकी जिम्मेदारियों
को देखते हुए वहां शारीरिक फिटनेस अनिवार्य है। अदालत ने माना कि जवानों को कई बार
ऐसी विषम परिस्थितियों में ड्यूटी करनी होती है, जो उनके स्वास्थ्य
के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसी स्थिति में अगर कोई उम्मीदवार पूरी तरह से फिट नहीं
है, तो बल के पास उसे भर्ती न करने का अधिकार है।
इस
फैसले के जरिए हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अर्धसैनिक बलों के लिए तय मेडिकल
मानक उनकी विशेष ड्यूटी के मुताबिक बनाए गए हैं। इनमें ढील नहीं दी जा सकती क्योंकि
इससे जवान की सुरक्षा और बल की दक्षता दोनों प्रभावित हो सकती हैं। कोर्ट ने याचिका
को खारिज करते हुए कहा कि ITBP ने सही तरीके से मेडिकल
बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर फैसला लिया है और इसमें कोई त्रुटि नहीं है।