सुप्रीम कोर्ट ने
अवैध निर्माण के मामलों में सख्त रुख अपनाते हुए यह टिप्पणी की है कि ऐसी
गैरकानूनी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और इन्हें ध्वस्त करना
जरूरी है। सरल भाषा में समझें तो सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अगर कोई बिना अनुमति
के इमारत बनाता है, तो उसे बचाने के बजाय कानून
के तहत सजा मिलनी चाहिए। यह टिप्पणी इसलिए की गई, क्योंकि
अवैध निर्माण न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज की
व्यवस्था और सभी के हितों को नुकसान पहुंचाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने
ऐसा क्यों कहा?
1. कानून
का शासन बनाए रखने के लिए:
o सुप्रीम
कोर्ट का मानना है कि कानून सभी के लिए बराबर है। अगर कोई बिना अनुमति के निर्माण
करता है,
तो उसे बचाने का मतलब होगा कि कानून का डर खत्म हो जाएगा। इससे लोग
और ज्यादा नियम तोड़ने के लिए प्रेरित होंगे।
o कोर्ट
ने कहा कि अगर अवैध निर्माण करने वालों को माफ किया जाएगा,
तो यह "दंड से मुक्ति" की संस्कृति को बढ़ावा देगा,
जो समाज के लिए हानिकारक है।
2. न्यायिक
संयम और समाज की भलाई:
o कोर्ट
ने कहा कि अदालतों को अवैध निर्माण को वैध करने (नियमित करने) की प्रक्रिया में
शामिल नहीं होना चाहिए। ऐसा करना कानून की अवहेलना करने वालों को प्रोत्साहन देता
है।
o सख्ती
से निपटने से न केवल कानून की मर्यादा बनी रहती है, बल्कि
इससे समाज में व्यवस्था और सभी की सुविधा को बढ़ावा मिलता है।
3. हाई
कोर्ट के फैसले की तारीफ:
o यह
मामला कोलकाता से जुड़ा है, जहां हाई कोर्ट ने कोलकाता
नगर निगम को अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई
कोर्ट के इस साहसिक और जनहित में लिए गए फैसले की प्रशंसा की।
o याचिकाकर्ता
(कनीज अहमद) ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी,
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और हाई कोर्ट के
फैसले को सही ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य बातें
1. अवैध
निर्माण को ध्वस्त करना जरूरी:
o सुप्रीम
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना अनुमति के बने भवनों को तोड़ा जाना चाहिए। अदालतों
को इसमें नरमी नहीं बरतनी चाहिए।
o कोर्ट
ने कहा कि अवैध निर्माण करने वालों के प्रति दया दिखाना गलत है,
क्योंकि यह गलत सहानुभूति को बढ़ावा देता है।
2. कानून
का पालन सबके लिए अनिवार्य:
o कोर्ट
ने अपने पुराने फैसले (राजेन्द्र कुमार बडजात्या बनाम यूपी आवास एवं विकास परिषद,
2024) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हर
निर्माण को नियमों के अनुसार करना होगा। अगर कोई नियम तोड़ता है, तो उसे सख्त सजा मिलनी चाहिए।
3. नियमितीकरण
की मांग खारिज:
o याचिकाकर्ता
ने अपने अवैध निर्माण को वैध करने की मांग की थी, लेकिन
सुप्रीम कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया। कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति कानून की परवाह नहीं
करता, उसे बाद में नियमितीकरण का मौका नहीं दिया जा सकता।
4. सभी
हाई कोर्ट को आदेश:
o सुप्रीम
कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस आदेश की कॉपी देश के सभी हाई कोर्ट
को भेजी जाए, ताकि वे भी अवैध निर्माण के मामलों में
सख्ती बरतें।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता
- कोर्ट ने यह भी कहा कि कई राज्य
सरकारें अवैध निर्माण को वैध करने के लिए "इम्पैक्ट फीस"
(जुर्माना) लेकर नियम बनाती हैं। यह गलत है, क्योंकि इससे कानून तोड़ने वालों को प्रोत्साहन मिलता है।
- कोर्ट ने इसे दुखद बताया और कहा
कि ऐसी नीतियां कानून के कठोर प्रभाव को कमजोर करती हैं,
जो एक व्यवस्थित समाज की नींव है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने
अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त रुख इसलिए अपनाया, क्योंकि
यह कानून का उल्लंघन है और समाज की व्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है। कोर्ट चाहता
है कि अदालतें और सरकारें मिलकर ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाएं, ताकि कानून का शासन बना रहे और समाज में व्यवस्था कायम हो। यह फैसला न
केवल कोलकाता के मामले में लागू होता है, बल्कि पूरे देश में
अवैध निर्माण के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है।