भारतीय न्याय
व्यवस्था में विचाराधीन कैदी (Undertrial Prisoners) वह
होते हैं जिन पर मुकदमा अभी पूरा नहीं हुआ है और अदालत ने अभी उन्हें दोषी या
निर्दोष घोषित नहीं किया है। हाल ही में केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिक सुरक्षा
संहिता (BNSS) की धारा 479 के तहत राज्यों को निर्देश दिया है कि वे लंबे समय से जेल में बंद ऐसे
कैदियों को रिहा करें, जो अपनी संभावित सजा की आधी अवधि जेल
में बिता चुके हैं।
यह आदेश न केवल
जेलों में भीड़ कम करने की दिशा में कदम है, बल्कि संविधान
के अनुच्छेद 21 — “जीवन और व्यक्तिगत
स्वतंत्रता का अधिकार” — का संरक्षण भी है।
कानूनी प्रावधान
भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता (BNSS), धारा 479
—
यह धारा ऐसे विचाराधीन कैदियों को जमानत या अन्य राहत देने का
प्रावधान करती है जिन्होंने अपनी संभावित सजा का कम से कम आधा भाग जेल में काट
लिया है और जिनका मुकदमा अब तक समाप्त नहीं हुआ है।
भारतीय संविधान,
अनुच्छेद 21 —
“किसी भी
व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किये बिना, उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।”
इसका आशय यह है कि
विचाराधीन कैदियों को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना संविधान का उल्लंघन है।
महत्वपूर्ण केस लॉ
1️.हुसैन
और अनो. बनाम राज्य (2017) 10 SCC 779
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि —
“किसी भी
विचाराधीन कैदी को, जिसने सजा की आधी अवधि जेल में काट ली है,
उसे उचित शर्तों के साथ जमानत दी जानी चाहिए।”
अदालत ने हर राज्य
को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि विचाराधीन कैदियों की समीक्षा कर
उन्हें राहत दी जाए।
2️.कश्मीर
सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2008) 15 SCC 257
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“मुकदमे के
लंबित रहने की स्थिति में किसी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में रखना संविधान
के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।”
3️.संजय
चंद्रा बनाम सीबीआई (2012) 1 SCC 40
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि —
“जमानत का
उद्देश्य मुकदमे के दौरान आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करना है, न कि उसे सजा देना।”
अदालत ने विचाराधीन
कैदियों को जल्द जमानत देने की नीति को बढ़ावा देने की बात कही।
सरकार की हालिया पहल
गृह मंत्रालय ने
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिए हैं कि वे विचाराधीन कैदियों की
समीक्षा करें और जो कैदी अपनी संभावित सजा की आधी अवधि जेल में काट चुके हैं,
उन्हें अच्छे आचरण के आधार पर राहत (जमानत या रिहाई) दी जाए।
गृह मंत्री अमित
शाह ने इस विषय पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी चर्चा की है ताकि इसका त्वरित
और प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
प्रभाव और लाभ
- जेलों में भीड़ कम होगी।
- न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी।
- गरीब,
बेसहारा और छोटे अपराधों के विचाराधीन कैदियों को राहत मिलेगी।
- संविधान के अनुच्छेद 21
का संरक्षण होगा।
- जेलों के प्रशासनिक और संसाधन
संबंधी दबाव में कमी आएगी।
निष्कर्ष
यह निर्णय भारतीय
न्याय व्यवस्था और मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक पहल है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों, संविधानिक प्रावधानों
और सरकार की तत्परता से विचाराधीन कैदियों की दशा में सुधार आएगा। इसके प्रभाव से
न्यायिक प्रक्रिया भी अधिक मानवीय और न्यायसंगत बनेगी।