क्या हुआ और क्यों
यह फैसला आया?
मध्यस्थता (Arbitration)
एक तरीका है जिसमें कोर्ट के बाहर दो पक्षों के बीच विवाद को
सुलझाया जाता है। इसके लिए एक मध्यस्थ (Arbitrator) होता है
जो फैसला देता है। लेकिन कई बार लोग इस फैसले से खुश नहीं होते और कोर्ट में अपील
करते हैं। सवाल यह था कि क्या कोर्ट मध्यस्थता के फैसले में बदलाव कर सकता है या
नहीं।
यह मामला गायत्री
बालासामी बनाम आईएसजी नोवासॉफ्ट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड से शुरू हुआ। पहले तीन
जजों की बेंच ने इसे बड़ी बेंच को भेजा। सुनवाई 13 फरवरी
2025 को शुरू हुई और 19 फरवरी को फैसला
सुरक्षित रख लिया गया। कई बड़े वकीलों जैसे अरविंद दातार, तुषार
मेहता और डेरियस खंबाटा ने अपनी दलीलें दीं।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
1. मध्यस्थता
फैसले में बदलाव हो सकता है: कोर्ट ने कहा कि कुछ
खास परिस्थितियों में मध्यस्थता के फैसले को बदला जा सकता है। जैसे:
o अगर
फैसले में कोई छोटी गलती हो, मसलन टाइपिंग की गलती,
गणना की गलती या रिकॉर्ड में कोई त्रुटि हो।
o फैसले
के बाद ब्याज (इंटरेस्ट) को ठीक करने के लिए भी बदलाव हो सकता है।
2. संविधान
के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल:
यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्तियां देता है ताकि वह पूरा
न्याय कर सके। चीफ जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस शक्ति का इस्तेमाल करके फैसले में
बदलाव किया जा सकता है, लेकिन बहुत सावधानी से करना होगा।
3. सावधानी
बरतने का निर्देश: कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता
के फैसले में बदलाव का अधिकार सीमित है। इसे हर बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए,
बल्कि सिर्फ जरूरी हालात में।
जस्टिस विश्वनाथन की असहमति
जस्टिस केवी
विश्वनाथन ने कहा कि कोर्ट को मध्यस्थता के फैसले में बदलाव का अधिकार नहीं होना
चाहिए। उनका मानना है कि मध्यस्थता का मकसद ही कोर्ट से बाहर विवाद सुलझाना है,
और कोर्ट को इसमें ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए।
मध्यस्थता और सुलह
कानून, 1996 की मुख्य बातें
- धारा 34:
इस धारा के तहत मध्यस्थता के फैसले को रद्द किया जा सकता है,
अगर:
- प्रक्रिया में कोई गलती हो।
- फैसला भारत की सार्वजनिक नीति के
खिलाफ हो।
- मध्यस्थ को अधिकार क्षेत्र से
बाहर जाकर फैसला दिया हो।
- धारा 37:
यह धारा अपील से जुड़ी है। अगर कोई मध्यस्थता का फैसला रद्द
करने की अपील करता है, तो यह धारा लागू होती है।
इस कानून का मकसद
कोर्ट का हस्तक्षेप कम करना है और मध्यस्थता को तेज और आसान बनाना है।
वकीलों ने क्या कहा?
- अरविंद दातार और उनके पक्ष ने कहा:
कोर्ट को मध्यस्थता के फैसले को रद्द करने का अधिकार है,
तो बदलाव करने का भी हल्का-फुल्का अधिकार होना चाहिए। यह कोर्ट
की शक्तियों का हिस्सा है।
- दूसरे पक्ष के वकीलों ने कहा:
कानून में "संशोधन" का अधिकार नहीं लिखा है।
मध्यस्थता एक अलग प्रक्रिया है, और कोर्ट को इसमें
ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए।
इस फैसले का असर
क्या होगा?
- यह फैसला घरेलू और अंतरराष्ट्रीय
व्यापारिक मध्यस्थता को प्रभावित करेगा।
- कोर्ट अब छोटी-मोटी गलतियों को
ठीक कर सकता है, जिससे लोगों को
मध्यस्थता पर ज्यादा भरोसा होगा।
- लेकिन कोर्ट को सावधानी बरतनी
होगी, ताकि मध्यस्थता की स्वतंत्रता बनी
रहे।
संविधान का
अनुच्छेद 142 क्या है?
यह अनुच्छेद
सुप्रीम कोर्ट को ऐसी शक्तियां देता है कि वह किसी भी मामले में पूरा न्याय कर सके,
भले ही मौजूदा कानून में उसका जिक्र न हो। लेकिन इसका इस्तेमाल
सावधानी से करना होता है।
यह फैसला क्यों अहम
है?
- मध्यस्थता के फैसलों में छोटी
गलतियों को ठीक करने का रास्ता खुल गया है।
- इससे मध्यस्थता प्रक्रिया और
भरोसेमंद बनेगी।
- लेकिन कोर्ट का हस्तक्षेप बढ़ने से
मध्यस्थता की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठ सकते हैं।
इस तरह,
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता कानून में एक नया रास्ता दिखाया है,
लेकिन सावधानी के साथ इसका इस्तेमाल करने की हिदायत भी दी है।
नोट:
अधिक जानकारी के लिए सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट (www.sci.gov.in) देखें।