सुप्रीम
कोर्ट ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में जमीन की खरीद-बिक्री से जुड़े एक मामले में
धोखाधड़ी की जांच के आदेश दिए हैं। यह मामला तब सामने आया जब हरीश जायसवाल नाम के
एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर बताया कि उनके नाम पर फर्जी वकील
और फर्जी समझौता पत्र पेश करके कोर्ट से आदेश लिया गया,
जबकि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं थी। कोर्ट ने इस गंभीर
मामले की जांच के लिए तीन हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है और फर्जी तरीके से लिए गए
पुराने आदेश को भी रद्द कर दिया है।
क्या
है पूरा मामला?
मुजफ्फरपुर
में जमीन के एक सौदे को लेकर यह विवाद है। हरीश जायसवाल,
जो 90 साल से ज्यादा उम्र के हैं, का कहना है कि बिपिन बिहारी सिन्हा नाम के व्यक्ति ने उनके नाम पर
धोखाधड़ी की। बिपिन ने सुप्रीम कोर्ट में फर्जी समझौता पत्र और फर्जी वकील के जरिए
यह दिखाया कि जायसवाल ने जमीन बेचने का समझौता किया था। इसके आधार पर 13 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया,
जिसमें निचली अदालतों और पटना हाई कोर्ट के जायसवाल के पक्ष में दिए
गए फैसलों को रद्द कर दिया गया। लेकिन जायसवाल का कहना है कि उन्होंने न तो कोई
समझौता किया, न ही कोई वकील नियुक्त किया, और उन्हें सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस मामले की कोई जानकारी थी।
कोर्ट
में क्या हुआ?
जायसवाल
के वकीलों, अभिषेक राय और ज्ञानंत सिंह, ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि उनके मुवक्किल को इस मामले में धोखा दिया
गया। उन्होंने कहा कि जायसवाल ने पहले ही निचली अदालतों और पटना हाई कोर्ट में यह
केस जीत लिया था। इन अदालतों ने साफ कहा था कि बिपिन बिहारी का दावा किया गया जमीन
का समझौता फर्जी था और वह न तो असली था, न ही रजिस्टर्ड।
वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि जब जायसवाल पहले ही तीनों अदालतों में जीत चुके थे,
तो वे इन फैसलों को रद्द करने के लिए कोई समझौता क्यों करेंगे?
सुनवाई
के दौरान एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। सुप्रीम कोर्ट के 13
दिसंबर 2024 के आदेश में जायसवाल की ओर से एक
वकील का नाम दर्ज था। लेकिन उस वकील की बेटी, जो खुद भी वकील
है, ने कोर्ट में कहा कि उनके पिता ने इस मामले में कोई
पैरवी नहीं की और वे पिछले पांच साल से वकालत भी नहीं कर रहे। इस बेटी ने भी इस
केस में शामिल होने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जस्टिस
पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जोयमाल्या बाग्ची की बेंच ने इस मामले को बहुत गंभीर
माना। कोर्ट ने निम्नलिखित फैसले लिए:
1. जांच
के आदेश: कोर्ट ने फर्जी वकील और फर्जी समझौता
पत्र के जरिए धोखाधड़ी के आरोपों की जांच के लिए तीन हफ्ते में रिपोर्ट मांगी।
2. पुराना
आदेश रद्द: 13 दिसंबर 2024 का
वह आदेश, जो फर्जीवाड़े से लिया गया था, उसे रद्द कर दिया गया।
3. बिपिन
बिहारी का विरोध: बिपिन बिहारी की ओर से इन
आरोपों का विरोध किया गया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि जांच से
कोई नुकसान नहीं होगा।
क्यों
है यह मामला अहम?
यह
मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट जैसे देश के सबसे बड़े
न्यायालय में धोखाधड़ी का आरोप लगा है। जायसवाल का कहना है कि उन्हें कोर्ट से कोई
नोटिस नहीं मिला और उनके नाम पर फर्जी तरीके से वकील और कैविएट (एक तरह की कानूनी
अर्जी) दाखिल की गई। यह घटना न केवल जायसवाल के लिए, बल्कि
पूरे न्यायिक सिस्टम के लिए एक गंभीर सवाल उठाती है कि कैसे कोई फर्जी दस्तावेजों
के जरिए कोर्ट को गुमराह कर सकता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए धोखाधड़ी की पूरी जांच का आदेश दिया
है। हरीश जायसवाल जैसे बुजुर्ग व्यक्ति के साथ हुई इस कथित धोखाधड़ी ने न्यायिक
प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। अगले तीन हफ्तों में
जांच पूरी होने के बाद यह साफ हो पाएगा कि इस फर्जीवाड़े के पीछे की सच्चाई क्या
है।