कोलकाता
हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और श्रमिक हितैषी निर्णय में स्पष्ट किया है कि 30
वर्ष से अधिक समय तक किसी संस्था में कार्यरत श्रमिकों को
ग्रेच्युटी के लाभ से वंचित करना गैरकानूनी है। यह फैसला दो जूट मिल श्रमिकों के
मामले में आया, जिन्हें लंबे समय तक सेवा देने के बावजूद
ग्रेच्युटी से वंचित रखा गया था। इस निर्णय ने न केवल श्रमिकों के अधिकारों को
मजबूती प्रदान की है, बल्कि नियोक्ताओं के लिए भी एक सख्त
संदेश जारी किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
हाई
कोर्ट के समक्ष यह मामला दो जूट मिल श्रमिकों से संबंधित था,
जिन्होंने 1978 में एक जूट मिल में अस्थायी
कर्मचारी के रूप में कार्य शुरू किया था। दोनों श्रमिकों ने 37 वर्षों तक लगातार उस मिल में अपनी सेवाएं दीं और 2015 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद, जब
उन्होंने अपनी ग्रेच्युटी राशि के लिए आवेदन किया, तो जूट
मिल प्रबंधन ने इसे देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। इस अन्याय के खिलाफ
श्रमिकों ने 2016 में श्रम विभाग में शिकायत दर्ज की।
श्रम विभाग का आदेश
लंबी
सुनवाई और जांच के बाद, श्रम विभाग ने 2024 में श्रमिकों के पक्ष में फैसला सुनाया। विभाग ने जूट मिल प्रबंधन को
निर्देश दिया कि दोनों श्रमिकों को 3.93 लाख रुपये की
ग्रेच्युटी राशि, साथ ही सेवानिवृत्ति की तारीख से इस राशि
पर ब्याज, का भुगतान किया जाए। यह आदेश श्रमिकों के लिए बड़ी
राहत लेकर आया, लेकिन मिल प्रबंधन ने इसे स्वीकार नहीं किया
और श्रम विभाग के फैसले को कोलकाता हाई कोर्ट में चुनौती दी।
हाई कोर्ट का निर्णय
मामले
की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति शांतनु दत्त
पाल ने श्रमिकों के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि जो श्रमिक
अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा किसी संस्था की सेवा में समर्पित कर देते हैं,
उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद ग्रेच्युटी जैसे महत्वपूर्ण लाभों से
वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने श्रम विभाग के 2024 के
आदेश को पूरी तरह से बरकरार रखा और मिल प्रबंधन को चेतावनी दी कि इस आदेश की
अवहेलना करना कानून का उल्लंघन होगा।
न्यायमूर्ति
ने यह भी रेखांकित किया कि ग्रेच्युटी न केवल श्रमिकों का अधिकार है,
बल्कि यह उनके दीर्घकालिक समर्पण और मेहनत का सम्मान भी है। अदालत
ने इस बात पर जोर दिया कि नियोक्ता ऐसी नीतियों का दुरुपयोग नहीं कर सकते, जिससे श्रमिकों को उनके हक से वंचित किया जाए।
फैसले का महत्व
यह
निर्णय न केवल उन दो श्रमिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करता है,
बल्कि देश भर के उन लाखों श्रमिकों के लिए भी एक मिसाल कायम करता है,
जो लंबे समय तक कार्य करने के बाद भी ग्रेच्युटी जैसे लाभों से
वंचित रह जाते हैं। खास तौर पर असंगठित क्षेत्र और अस्थायी कर्मचारियों के लिए यह
फैसला एक उम्मीद की किरण है।
इसके
अलावा,
कोलकाता हाई कोर्ट का यह आदेश नियोक्ताओं के लिए एक सख्त संदेश है
कि वे श्रम कानूनों का उल्लंघन करने से बचें। यह फैसला ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम,
1972 के प्रावधानों को और मजबूती देता है, जिसमें
यह स्पष्ट है कि पांच वर्ष से अधिक समय तक कार्यरत कर्मचारी ग्रेच्युटी के हकदार
हैं।
आगे क्या होगा ?
इस
फैसले के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि जूट मिल
प्रबंधन कोर्ट के आदेश का पालन करेगा और श्रमिकों को उनकी ग्रेच्युटी राशि और
ब्याज का भुगतान करेगा। साथ ही, यह निर्णय अन्य नियोक्ताओं
को भी अपने कर्मचारियों के प्रति जवाबदेह बनने के लिए प्रेरित करेगा। श्रमिक
संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे श्रमिक
अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।
निष्कर्ष:
कोलकाता
हाई कोर्ट का यह फैसला श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और नियोक्ताओं की जवाबदेही
सुनिश्चित करने में मील का पत्थर साबित होगा। यह न केवल कानूनी दृष्टिकोण से
महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक
प्रेरणादायक कदम है।