उच्चतम
न्यायालय ने वकीलों को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ का दर्जा देने की प्रक्रिया को और
पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए नए नियम बनाए हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा एक
वकील के लिए बहुत सम्मानजनक होता है। यह दर्जा उन वकीलों को दिया जाता है,
जिन्होंने लंबे समय तक कानूनी क्षेत्र में उत्कृष्ट काम किया हो और
जिनके पास गहरी कानूनी समझ हो। पहले इस दर्जे को देने के लिए एक अंक-आधारित
प्रणाली थी, जिसमें वकीलों के अनुभव, योग्यता
और काम को अंकों के आधार पर आंका जाता था। लेकिन अब उच्चतम न्यायालय ने इस प्रणाली
को हटा दिया है।
क्यों
बदले गए नियम?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति उज्जल
भुइयां और न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि पिछले साढ़े सात साल के
अनुभव से यह साफ हुआ है कि अंकों के आधार पर वकीलों की योग्यता और अनुभव को आंकना
न तो तर्कसंगत है और न ही पूरी तरह वस्तुनिष्ठ। यानी, यह
तरीका पूरी तरह से निष्पक्ष और सटीक नहीं था। इसलिए, अब नए
दिशा-निर्देशों के तहत यह प्रक्रिया बदली जाएगी।
नए
दिशा-निर्देश क्या कहते हैं?
उच्चतम न्यायालय ने कई अहम बदलावों की घोषणा की है:
1. पूर्ण
पीठ करेगी फैसला: अब वरिष्ठ अधिवक्ता का
दर्जा देने का फैसला उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ करेगी। पूर्ण
पीठ में सभी न्यायाधीश शामिल होते हैं।
2. आवेदनों
की जांच: एक स्थायी सचिवालय सभी आवेदनों की जांच
करेगा और योग्य उम्मीदवारों के दस्तावेज पूर्ण पीठ के सामने रखेगा।
3. सर्वसम्मति
या मतदान: पीठ हमेशा सर्वसम्मति (सबकी सहमति) से
फैसला लेने की कोशिश करेगी। अगर सहमति न बने, तो लोकतांत्रिक
तरीके से मतदान होगा। कुछ मामलों में गुप्त मतदान भी हो सकता है, लेकिन यह फैसला उच्च न्यायालयों पर छोड़ा गया है।
4. न्यूनतम
योग्यता: वरिष्ठ अधिवक्ता बनने के लिए कम से कम 10
साल की कानूनी प्रैक्टिस की शर्त पहले जैसी ही रहेगी।
5. निष्पक्ष
चयन प्रक्रिया: चयन प्रक्रिया को निष्पक्ष
और पारदर्शी बनाने के लिए हर साल कम से कम एक बार यह प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
उच्च न्यायालयों को निर्देश
उच्चतम न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों से कहा है कि वे चार महीने
के भीतर अपने मौजूदा नियमों को इन नए दिशा-निर्देशों के अनुसार बदल लें। साथ ही,
उच्चतम न्यायालय भी अपने नियमों में बदलाव करेगा और समय-समय पर इस
प्रणाली की समीक्षा करेगा ताकि इसे और बेहतर किया जा सके।
विविधता पर जोर
न्यायालय ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि वरिष्ठ अधिवक्ता का
दर्जा सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। निचली अदालतों, जिला अदालतों और विशेष न्यायाधिकरणों में काम करने वाले वकीलों को भी इस
दर्जे के लिए मौका मिलना चाहिए। पीठ ने कहा कि इन वकीलों की भूमिका उतनी ही
महत्वपूर्ण है, जितनी उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों
में वकालत करने वालों की। यह कदम कानूनी क्षेत्र में विविधता को बढ़ावा देगा।
कानूनी प्रावधान
यह पूरा मामला अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 से
जुड़ा है, जो वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा देने से
संबंधित है। उच्चतम न्यायालय ने पहले भी कहा था कि इस प्रक्रिया में गंभीर
आत्मनिरीक्षण की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह प्रणाली निष्पक्ष और
समावेशी हो।
क्या
होगा असर?
इन नए दिशा-निर्देशों से कानूनी क्षेत्र में कई सकारात्मक बदलाव आने
की उम्मीद है। यह प्रक्रिया अब ज्यादा पारदर्शी और निष्पक्ष होगी। साथ ही, निचली अदालतों में काम करने वाले वकीलों को भी वरिष्ठ अधिवक्ता बनने का
मौका मिलेगा, जिससे कानूनी पेशे में समानता और विविधता को
बढ़ावा मिलेगा।
हमारा विचार
उच्चतम न्यायालय का यह फैसला देश की न्याय व्यवस्था को और मजबूत
करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह न केवल वकीलों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए
एक सकारात्मक संदेश है कि निष्पक्षता और समावेशिता हर क्षेत्र में जरूरी है