Key
Points
- राजस्थान हाई कोर्ट
ने हाल ही में निर्णय दिया है कि मृतक बेटे की संपत्ति में मां को बराबर का
हिस्सा मिलना चाहिए, जैसा
कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत प्रथम श्रेणी
के उत्तराधिकारियों में मां, पत्नी, बेटा और बेटी शामिल हैं।
- यह निर्णय एक विशिष्ट
मामले में लिया गया, जहां
मां हेमलता शर्मा को उनके मृतक पुत्र की चल संपत्ति में बराबर का हिस्सा दिया
गया, जिसका मूल्य लगभग ₹35,92,412 था।
- यह मामला जस्टिस
गणेशराम मीना द्वारा सुना गया और मां को मृतक की पत्नी और पुत्र के समान
अधिकार माना गया।
निर्णय का संदर्भ
राजस्थान
हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956
के अनुसार, मृतक की मां को उसकी संपत्ति में
बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, खासकर जब मृतक की मृत्यु बिना
वसीयत के हुई हो। यह निर्णय मां के अधिकारों को मजबूत करता है और परिवार के अन्य
सदस्यों के साथ समानता सुनिश्चित करता है।
कानूनी आधार
हिंदू
उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी मां, पत्नी, बेटा और बेटी हैं, और इन सभी को मृतक की संपत्ति में
बराबर का हिस्सा मिलता है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि मां को उसके बेटे की
संपत्ति से वंचित न किया जाए।
विशिष्ट मामला
इस
मामले में, हेमलता शर्मा ने सेशन कोर्ट में याचिका
दायर की थी, लेकिन मामला हाई कोर्ट में गया, जहां जस्टिस गणेशराम मीना ने फैसला सुनाया कि मां को मृतक पुत्र की चल
संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए। यह निर्णय हाल ही में, 19 मई 2025 को लिया गया था।
परिचय
राजस्थान
हाई कोर्ट द्वारा हाल ही में लिया गया एक महत्वपूर्ण निर्णय,
जिसमें मृतक बेटे की संपत्ति में मां को बराबर का हिस्सा देने का
आदेश दिया गया, हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत मां के अधिकारों को मजबूत करता है। यह निर्णय एक विशिष्ट मामले में
लिया गया, जहां मां हेमलता शर्मा ने अपने मृतक पुत्र की
संपत्ति में अपने हिस्से की मांग की थी। इस लेख में, हम इस
निर्णय के विवरण, कानूनी आधार, और इसके
व्यापक प्रभावों पर चर्चा करेंगे।
निर्णय का विवरण
19
मई 2025 को, राजस्थान
हाई कोर्ट के जस्टिस गणेशराम मीना ने एक मामले में फैसला सुनाया, जिसमें मां हेमलता शर्मा ने अपने मृतक पुत्र की चल संपत्ति में बराबर का
हिस्सा मांगा था। इस संपत्ति का मूल्य लगभग ₹35,92,412 था।
हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि मां को मृतक की पत्नी और पुत्र के समान अधिकार हैं,
और उसे संपत्ति में बराबर का हिस्सा दिया जाना चाहिए। यह निर्णय
हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के प्रावधानों पर आधारित था,
जो मां, पत्नी, बेटा और
बेटी को प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देता है।
कानून क्या कहता है?
हिंदू
उत्तराधिकार कानून 1956 भारत में हिंदुओं के लिए
उत्तराधिकार और संपत्ति वितरण का मुख्य कानून है। इस कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बिना वसीयत के मर जाता है, तो उसकी
संपत्ति प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में समान रूप से बांटी जाती है। प्रथम
श्रेणी के उत्तराधिकारी निम्नलिखित हैं:
उत्तराधिकारी |
विवरण |
मां |
मृतक
की मां, जो संपत्ति में बराबर का
हिस्सा पाने की हकदार है। |
पत्नी |
मृतक
की पत्नी, जो संपत्ति में समान
अधिकार रखती है। |
बेटा |
मृतक
का बेटा, जो प्रथम श्रेणी का
उत्तराधिकारी है। |
बेटी |
मृतक
की बेटी, जो 2005 के संशोधन के बाद पिता की संपत्ति में समान अधिकार रखती है। |
यह
कानून यह सुनिश्चित करता है कि मां को उसके बेटे की संपत्ति से वंचित न किया जाए,
और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ समानता बनी रहे।
मामले का इतिहास
हेमलता
शर्मा ने initially सेशन कोर्ट में याचिका दायर की
थी, जहां उन्हें उनके मृतक पुत्र की संपत्ति में हिस्सा न
देने का मामला उठाया गया था। हालांकि, मामला हाई कोर्ट में
गया, जहां जस्टिस गणेशराम मीना ने सुनवाई की। हाई कोर्ट ने
पाया कि मृतक की पत्नी और पुत्र ने मां को संपत्ति से वंचित करने का प्रयास किया
था, जो कानूनी रूप से गलत था। कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार
कानून 1956 के तहत मां को बराबर का हिस्सा देने का आदेश
दिया।
निर्णय का प्रभाव
यह
निर्णय मां के अधिकारों को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि परिवार के
अन्य सदस्य मां को संपत्ति से वंचित न कर सकें। यह विशेष रूप से उन मामलों में
महत्वपूर्ण है जहां परिवार के बीच संपत्ति विवाद होते हैं। यह निर्णय यह भी
दर्शाता है कि कानून सभी उत्तराधिकारियों, विशेष रूप
से मां, के साथ समानता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।
सम्बंधित कानूनी चर्चा
हिंदू
उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत, मां को मृतक की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना एक स्थापित सिद्धांत
है। हालांकि, कई बार परिवार के अन्य सदस्य मां को संपत्ति से
वंचित करने का प्रयास करते हैं, जिसके खिलाफ कोर्ट हस्तक्षेप
करता है। यह मामला इस सिद्धांत को और मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि
मां के अधिकारों का सम्मान किया जाए।
निष्कर्ष
राजस्थान
हाई कोर्ट का यह निर्णय मां के अधिकारों को मजबूत करता है और हिंदू उत्तराधिकार
कानून 1956
के तहत प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों की समानता को पुनः स्थापित
करता है। हेमलता शर्मा के मामले में, कोर्ट ने यह स्पष्ट
किया कि मां को मृतक पुत्र की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, जो कानूनी रूप से सही और निष्पक्ष है। यह निर्णय भविष्य में इसी तरह के
मामलों में एक महत्वपूर्ण नजीर साबित हो सकता है।