मुख्य बिन्दु
- इलाहाबाद हाई कोर्ट
ने 24 मई 2025 को ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी पर नियंत्रण के लिए सख्त कानून बनाने
का सुझाव दिया है।
- मौजूदा कानून,
सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867, डिजिटल युग
में अप्रासंगिक है और ऑनलाइन गेमिंग को कवर नहीं करता।
- कोर्ट ने युवाओं और
निम्न-मध्यम वर्ग पर इसके नकारात्मक प्रभावों पर चिंता जताई है।
- सुप्रीम कोर्ट भी इस
मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
हाई
कोर्ट का सुझाव इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी से युवा
और किशोर आर्थिक नुकसान, अवसाद और सामाजिक विघटन का
शिकार हो रहे हैं। कोर्ट ने एक समिति गठित करने का निर्देश दिया, जिसकी अध्यक्षता आर्थिक सलाहकार प्रोफेसर केवी राजू करेंगे, ताकि विधायी व्यवस्था की जा सके।
केंद्र
और राज्यों की कार्रवाई केंद्र सरकार ने 2022-24 के
बीच 1,298 ब्लॉकिंग आदेश जारी किए हैं और नए कानून की तैयारी
कर रही है, जिसमें डेटा गोपनीयता और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे
मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा। कुछ राज्यों ने वास्तविक धन वाले गेमिंग पर प्रतिबंध
लगाया है, जबकि अन्य ने लाइसेंसिंग व्यवस्था लागू की है।
विवाद
और जटिलता यह मुद्दा संवेदनशील है, क्योंकि
कुछ खेलों को कौशल-आधारित माना जाता है, जैसे पोकर और रम्मी,
जिन्हें हाई कोर्ट ने जुआ नहीं माना है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है
कि जुआ को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है, लेकिन नियमन जरूरी
है।
हाई कोर्ट का निर्देश
इलाहाबाद
हाई कोर्ट ने 24 मई 2025 को एक
महत्वपूर्ण आदेश में ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार
को सख्त कानून बनाने का सुझाव दिया। न्यायमूर्ति विनोद दीवाकर की अध्यक्षता वाली
पीठ ने पाया कि मौजूदा सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867, डिजिटल
युग में अप्रासंगिक हो गया है, क्योंकि यह ऑनलाइन गेमिंग,
फैंटेसी स्पोर्ट्स, पोकर और ई-स्पोर्ट्स जैसे
क्षेत्रों को कवर नहीं करता। इस अधिनियम के तहत अधिकतम जुर्माना 500 रुपये या 3 महीने की कैद है, जो
वर्तमान में 2000 रुपये या 12 महीने की
कैद तक बढ़ाया गया है, लेकिन यह भी अपर्याप्त है।
कोर्ट
ने सामाजिक प्रभावों पर गहरी चिंता व्यक्त की, विशेष रूप
से युवाओं और किशोरों पर, जो आसान पैसा कमाने के लालच में इन
प्लेटफॉर्म्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इससे अवसाद, चिंता,
अनिद्रा और सामाजिक विघटन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। निम्न
और मध्यम वर्ग के लोग वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं, जो
इस मुद्दे को और गंभीर बनाता है।
कोर्ट
ने एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया, जिसकी
अध्यक्षता आर्थिक सलाहकार प्रोफेसर केवी राजू करेंगे, और
इसमें विशेषज्ञों और राज्य कर प्रधान सचिव को शामिल किया जाएगा। इस समिति का कार्य
वर्तमान स्थिति का आकलन कर विधायी व्यवस्था करना है। कोर्ट ने अंतर्राष्ट्रीय
उदाहरणों का भी उल्लेख किया, जैसे यूके का गैंबलिंग एक्ट 2005,
जिसमें लाइसेंसिंग, आयु सत्यापन, जिम्मेदार विज्ञापन और धन शोधन रोकथाम जैसे उपाय शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
23
मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका
पर सुनवाई करते हुए "अवैध" सट्टेबाजी ऐप्स पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने और
ऑनलाइन गेमिंग पर कड़े नियम लागू करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने का
निर्णय लिया। याचिका में एक व्यापक कानून बनाने की भी मांग की गई है। याचिकाकर्ता,
एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और मानवतावादी, ने दावा किया कि ऑनलाइन सट्टेबाजी भारतीय युवाओं और कमजोर नागरिकों को
नुकसान पहुंचा रही है। याचिका में तेलंगाना में मार्च 2025 में
25 बॉलीवुड सेलिब्रिटीज, क्रिकेटरों और
प्रभावशाली लोगों के खिलाफ एफआईआर और 24 आत्महत्याओं का
उल्लेख किया गया, जो ऑनलाइन सट्टेबाजी के कर्ज के कारण हुईं।
सुप्रीम
कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा, लेकिन
वर्तमान चरण में राज्य सरकारों को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। याचिका में
कानूनी तर्क दिया गया कि सट्टेबाजी (ऑनलाइन या ऑफलाइन) एक यादृच्छिक खेल है,
न कि कौशल-आधारित, और यह सार्वजनिक जुआ
अधिनियम, 1867 के तहत प्रतिबंधित है। हालांकि, ऑनलाइन सट्टेबाजी पर कोई एकरूप केंद्रीय कानून नहीं है, जो इस मुद्दे को जटिल बनाता है।
वर्तमान कानूनी ढांचा
भारत
में ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी पर नियमन का ढांचा केंद्रीय और राज्य स्तर पर
विभाजित है। निम्नलिखित तालिका वर्तमान स्थिति को संक्षेप में प्रस्तुत करती है:
कानून/नियम |
विवरण |
केंद्रीय
कानून |
सूचना
प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और 2021 के नियम, ऑनलाइन गेमिंग नियम (अभी लागू नहीं) |
राज्य
कानून |
अधिकांश
राज्यों में सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867 लागू,
कुछ में आधुनिक कानून (सिक्किम, नागालैंड,
तमिलनाडु) |
नियामक
निकाय |
सिक्किम
(वित्त विभाग), नागालैंड (वित्त आयुक्त),
तमिलनाडु (TNOGA) |
प्रतिबंधित
राज्य |
तेलंगाना,
आंध्र प्रदेश (सभी वास्तविक धन वाले गेमिंग पर), तमिलनाडु (जुआ पर) |
कौशल-आधारित
खेल |
पोकर,
रम्मी, फैंटेसी स्पोर्ट्स को अधिकांश
राज्यों में एक्सेंप्ट माना गया, हाई कोर्ट द्वारा
कौशल-आधारित घोषित |
केंद्र
सरकार ने 2022-24 के बीच ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुआ
वेबसाइट्स/ऐप्स के खिलाफ 1,298 ब्लॉकिंग आदेश जारी किए हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन कर ऑनलाइन गेमिंग
मध्यस्थों पर गैरकानूनी सामग्री को होस्ट, स्टोर या प्रकाशित
न करने की जिम्मेदारी डाली गई है। सरकार ने सेल्फ-रेगुलेटरी ऑर्गनाइजेशन (SRO)
का ढांचा भी तैयार किया है ताकि ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित किया जा
सके।
फरवरी
2025
में, मोदी सरकार ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय
केंद्र (I4C) की रिपोर्ट के आधार पर नए कानून की तैयारी की
बात कही, जिसमें आर्थिक नुकसान, डेटा
गोपनीयता, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रामक विज्ञापनों पर ध्यान
दिया जाएगा। कराधान के संदर्भ में, आयकर अधिनियम,
1961 के तहत जीत पर 30% कर और ऑनलाइन मनी
गेमिंग पर 28% जीएसटी (1 अक्टूबर 2023
से प्रभावी) लागू है।
राज्य-स्तरीय विनियमन
कुछ
राज्यों ने विशेष कानून बनाए हैं। उदाहरण के लिए:
- सिक्किम:
ऑनलाइन गेमिंग (रूलेट, पोकर) पर
लाइसेंसिंग, वार्षिक शुल्क 5.2 करोड़
रुपये, भौगोलिक प्रतिबंध।
- नागालैंड:
कौशल-आधारित ऑनलाइन खेलों पर लाइसेंस, वार्षिक
शुल्क 10 लाख रुपये।
- तमिलनाडु:
स्थानीय प्रदाताओं के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र, शुल्क 1 लाख रुपये, अवधि 3
साल।
- तेलंगाना और आंध्र प्रदेश:
सभी वास्तविक धन वाले ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध।
कौशल-आधारित
खेलों को लेकर विवाद है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सितंबर 2024
में पोकर और रम्मी को कौशल-आधारित खेल घोषित किया, जिससे इन्हें जुआ नहीं माना गया। यह निर्णय उद्योग और कानूनी विशेषज्ञों
के बीच चर्चा का विषय रहा है।
आगामी सुधार और लंबित मुकदमे
कई
राज्य नए कानून पर विचार कर रहे हैं, जैसे
राजस्थान (फैंटेसी स्पोर्ट्स), उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गोवा। जीएसटी समीक्षा और विदेशी निवेश (FDI) के लिए परिभाषाओं पर भी काम चल रहा है। लंबित मुकदमे में तमिलनाडु,
कर्नाटक और तेलंगाना के प्रतिबंधों पर सुप्रीम कोर्ट के मामले,
स्पोर्ट्स बेटिंग (गीता रानी बनाम भारत संघ, आखिरी
सुनवाई अक्टूबर 2019) और ऑनलाइन गेमिंग नियमों को चुनौती
देने वाली जनहित याचिकाएं (दिल्ली हाई कोर्ट, अगस्त 2024)
शामिल हैं।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
ऑनलाइन
गेमिंग और सट्टेबाजी का सामाजिक प्रभाव गंभीर है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक
जनहित याचिका में युवाओं पर इसके प्रभाव पर नोटिस जारी किया है। स्व-नियामक संगठन
(FIFS,
AIGF) आयु-गेटिंग, पारदर्शिता और खिलाड़ी
संरक्षण पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन इन उपायों की
प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं।
निष्कर्ष
25
मई 2025 तक, ऑनलाइन
गेमिंग और सट्टेबाजी पर नियंत्रण के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों सक्रिय
हैं। हाई कोर्ट ने नए कानून की मांग की है, और सरकार विभिन्न
स्तरों पर प्रयास कर रही है, लेकिन यह मुद्दा जटिल और
विवादास्पद है, विशेष रूप से कौशल-आधारित खेलों और विनियमन
के बीच संतुलन को लेकर।