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मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक (डिवोर्स)
से जुड़े एक मामले में एक महत्वपूर्ण और प्रगतिशील फैसला सुनाया। यह फैसला
तलाकशुदा पत्नी के गुजारा भत्ते (एलिमनी) और बच्चों के संपत्ति के अधिकारों को
लेकर है। कोर्ट ने इस मामले में महिलाओं और उनके बच्चों की आर्थिक सुरक्षा को
प्राथमिकता दी है। इस फैसले ने न केवल इस मामले को सुलझाया, बल्कि
भविष्य में तलाक से जुड़े मामलों के लिए भी एक मिसाल कायम की है। आइए, इस फैसले को विस्तार से समझते हैं।
फैसले का सार
सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले में दो मुख्य मुद्दों पर ध्यान दिया: पहला,
तलाकशुदा पत्नी को मिलने वाला गुजारा भत्ता और दूसरा, पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी। कोर्ट ने गुजारा भत्ते को तय करने के लिए
महंगाई (इन्फ्लेशन) और पति की बढ़ती आय को आधार बनाया। पहले पत्नी को हर महीने 20,000
रुपये का गुजारा भत्ता मिलता था, जिसे कोर्ट
ने बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया। साथ ही, कोर्ट ने यह नियम बनाया कि इस राशि में हर दो साल में 5% की बढ़ोतरी होगी, ताकि यह राशि समय के साथ प्रासंगिक
बनी रहे। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पति
ने दूसरी शादी कर ली है, तब भी पहली पत्नी के बेटे को पिता
की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा।
यह
फैसला तलाकशुदा पत्नी और उसके बच्चों के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह
न केवल उनकी वर्तमान जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि
भविष्य में भी उनकी आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने का प्रावधान करता है।
फैसले
की पृष्ठभूमि और कारण
यह
मामला पिछले 17 साल से कोर्ट में चल रहा था, जो बताता है कि तलाक से जुड़े विवाद कितने लंबे और जटिल हो सकते हैं।
पत्नी ने कोर्ट में दलील दी थी कि 20,000 रुपये का गुजारा
भत्ता उनकी जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने उनकी बात को स्वीकार करते
हुए माना कि पत्नी अभी भी अविवाहित है और स्वतंत्र रूप से रह रही है। कोर्ट ने यह
भी कहा कि पत्नी को ऐसा गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, जो उनकी
शादी के दौरान की जीवनशैली को बनाए रखे और उनके भविष्य को सुरक्षित करे।
कोर्ट
ने पति की आर्थिक स्थिति का भी आकलन किया। यह पाया गया कि पति की आय समय के साथ
बढ़ी है और वह अधिक राशि देने में सक्षम है। इसलिए, कोर्ट
ने पुरानी राशि को बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति माह करने का
आदेश दिया। साथ ही, महंगाई को ध्यान में रखते हुए हर दो साल
में 5% की बढ़ोतरी का नियम बनाया गया। यह कदम सुनिश्चित करता
है कि गुजारा भत्ता समय के साथ अप्रासंगिक न हो जाए।
फैसले
के मुख्य बिंदु
1. गुजारा
भत्ते में बढ़ोतरी:
o कोर्ट
ने गुजारा भत्ते को 20,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000
रुपये प्रति माह किया।
o हर
दो साल में 5% की बढ़ोतरी का नियम लागू किया गया,
जो महंगाई और आर्थिक बदलावों को ध्यान में रखता है।
2. पत्नी
की जीवनशैली और सुरक्षा:
o कोर्ट
ने माना कि तलाकशुदा पत्नी को वही जीवन स्तर मिलना चाहिए,
जो वह शादी के दौरान जी रही थी।
o यह
फैसला महिलाओं को तलाक के बाद आर्थिक तंगी से बचाने और सम्मानजनक जीवन जीने में
मदद करता है।
3. पैतृक
संपत्ति में बेटे का अधिकार:
o कोर्ट
ने स्पष्ट किया कि पहली पत्नी का बेटा, चाहे पति
ने दूसरी शादी कर ली हो, पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा
पाने का हकदार है।
o यह
बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है और उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
4. मामले
की लंबी अवधि:
o 17
साल तक चले इस मामले में कोर्ट ने धैर्यपूर्वक सभी पक्षों को सुना
और उचित न्याय सुनिश्चित किया।
फैसले
का प्रभाव
कानूनी
प्रभाव
यह
फैसला भविष्य में तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता और संपत्ति के बंटवारे के लिए
एक उदाहरण बन सकता है। कोर्ट का महंगाई और आय को ध्यान में रखने का तरीका अन्य
मामलों में भी लागू हो सकता है। यह परिवार कानून में एक प्रगतिशील कदम है,
जो तलाकशुदा महिलाओं और उनके बच्चों के अधिकारों को मजबूत करता है।
सामाजिक
प्रभाव
यह
फैसला समाज में तलाकशुदा महिलाओं और उनके बच्चों को सम्मान और आर्थिक सुरक्षा
प्रदान करता है। यह पति की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है कि वह अपनी पूर्व
पत्नी और बच्चों की आर्थिक जरूरतों का ध्यान रखे। यह फैसला समाज में यह संदेश देता
है कि तलाक के बाद भी महिलाएं और उनके बच्चे गरिमापूर्ण जीवन जी सकते हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट का यह फैसला तलाकशुदा पत्नी और उनके बच्चों के हितों की रक्षा करने वाला एक
ऐतिहासिक कदम है। गुजारा भत्ते को बढ़ाना, समय के
साथ उसमें बढ़ोतरी का प्रावधान करना, और बच्चों के संपत्ति
के अधिकार को बरकरार रखना—ये सभी कदम महिलाओं और बच्चों की आर्थिक और सामाजिक
सुरक्षा को मजबूत करते हैं। यह फैसला न केवल इस मामले में न्याय सुनिश्चित करता है,
बल्कि भविष्य के तलाक के मामलों में भी एक मिसाल कायम करता है। यह
समाज को यह सिखाता है कि तलाक के बाद भी महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का सम्मान
करना जरूरी है।
BENCH
HON'BLE MR. JUSTICE VIKRAM NATH
HON'BLE MR. JUSTICE SANJAY KUMAR
RAKHI SADHUKHAN VS RAJA SADHUKHAN C.A. No.-010209-010209 - 2024