हाल ही में, कलकत्ता हाई कोर्ट ने अलीपुरद्वार के चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट (CJM) और डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज (NDPS) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया है। यह आदेश 13 जून 2025 को न्यायाधीश कृष्णा राव द्वारा एक नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम से संबंधित मामले में दिया गया। यह मामला सुद्धर मंगर से जुड़ा है, जिन्हें 28 मार्च 2024 को खांसी की दवा की 40 बोतलें जब्त करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
मामले का विवरण
यह
मामला तब शुरू हुआ जब सुद्धर मंगर को 28 मार्च 2024
को खांसी की दवा की 40 बोतलें रखने के आरोप
में गिरफ्तार किया गया। यह मामला NDPS अधिनियम के तहत दर्ज
किया गया, जो नशीली दवाओं और मन:प्रभावी पदार्थों से संबंधित
अपराधों को नियंत्रित करता है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान
पाया कि अलीपुरद्वार के CJM और सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को
महत्वपूर्ण कोर्ट कार्यवाही के दौरान कानूनी सहायता प्रदान करने में विफलता दिखाई।
यह विफलता न केवल एक प्रक्रियात्मक त्रुटि थी, बल्कि यह
संविधान के अनुच्छेद 22(1) और NDPS अधिनियम
की धारा 52(1) का उल्लंघन भी थी।
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कानूनी उल्लंघन
1. संविधान
के अनुच्छेद 22(1): यह
अनुच्छेद प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को कानूनी सहायता प्राप्त करने का मौलिक
अधिकार देता है। इसका मतलब है कि हर आरोपी को अपने बचाव के लिए वकील की मदद लेने
का हक है। इस मामले में, कोर्ट ने पाया कि सुद्धर मंगर को
कोर्ट कार्यवाही के दौरान उचित कानूनी प्रतिनिधित्व नहीं प्रदान किया गया।
2. NDPS
अधिनियम की धारा 52(1): इस
धारा के तहत, गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी के कारणों
को लिखित रूप में सूचित करना अनिवार्य है। कोर्ट ने पाया कि सुद्धर मंगर को ये
कारण लिखित रूप में नहीं बताए गए। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि कारण मौखिक रूप से
समझाए गए थे, लेकिन कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया
क्योंकि इसके समर्थन में कोई दस्तावेजी सबूत नहीं थे।
कोर्ट का निष्कर्ष
कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले को एक "प्रणालीगत विफलता" के रूप में देखा।
न्यायाधीश कृष्णा राव ने नोट किया कि कानूनी सहायता प्रदान करना और गिरफ्तारी के
कारणों को लिखित रूप में सूचित करना केवल औपचारिकताएं नहीं हैं,
बल्कि ये आरोपी के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम
हैं। इन प्रावधानों का उल्लंघन न केवल कानूनी गलती है, बल्कि
यह न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाता है।
कोर्ट
ने अपने आदेश में निम्नलिखित निर्देश दिए:
- इस मामले को रजिस्ट्रार जनरल को
भेजा जाए ताकि CJM और सत्र न्यायाधीश
के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जा सके।
- यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य
में ऐसी प्रक्रियात्मक त्रुटियां न हों और कानूनी प्रक्रियाओं में जवाबदेही
बनी रहे।
इस
आदेश का महत्व
कलकत्ता हाई कोर्ट का यह आदेश न केवल व्यक्तिगत न्यायिक अधिकारियों की जवाबदेही को
रेखांकित करता है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली
में प्रक्रियात्मक सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करता है। यह आदेश स्पष्ट करता है
कि कानूनी सहायता प्रदान करना और गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में सूचित करना
केवल वैधानिक आवश्यकताएं नहीं हैं, बल्कि ये एक निष्पक्ष और
पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया के आधारभूत सिद्धांत हैं।
इसके
अतिरिक्त,
यह आदेश भविष्य में ऐसी त्रुटियों को रोकने के लिए दिशानिर्देशों और
प्रशिक्षण की आवश्यकता को भी दर्शाता है। यह संभावना है कि इस मामले के बाद
न्यायिक अधिकारियों के लिए प्रक्रियात्मक अनुपालन पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।
व्यापक
प्रभाव
1. न्यायिक
जवाबदेही: यह मामला न्यायिक अधिकारियों की
कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे अपने कर्तव्यों का
पालन पूरी जिम्मेदारी के साथ करें।
2. आरोपी
के अधिकार: यह आदेश पुन: पुष्टि करता है कि
प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को कानूनी सहायता और पारदर्शी प्रक्रिया का अधिकार है।
3. प्रणालीगत
सुधार: कोर्ट ने इस मामले को प्रणालीगत विफलता
के रूप में देखा, जो यह संकेत देता है कि भविष्य में ऐसी
समस्याओं को रोकने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता हो सकती है।
निष्कर्ष
कलकत्ता हाई कोर्ट का यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है जो न केवल व्यक्तिगत न्यायिक
अधिकारियों की जवाबदेही को सुनिश्चित करता है, बल्कि यह
भी दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता कितनी
महत्वपूर्ण है। सुद्धर मंगर के मामले में हुई प्रक्रियात्मक त्रुटियां हमें यह याद
दिलाती हैं कि कानूनी सहायता और उचित प्रक्रिया का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के
मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है। इस आदेश से यह उम्मीद की जाती है कि
भविष्य में ऐसी गलतियां कम होंगी और न्यायिक प्रणाली में सुधार होगा।
CRM (NDPS) No. 146 of 2025 Sudhar Mangar Versus The State of West Bengal