भारत
के संविधान की मूल संरचना (Basic Structure Doctrine) एक बहुत महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो यह सुनिश्चित
करती है कि संविधान की मूल भावना और उसका आधारभूत ढांचा कभी नष्ट न हो।
मूल
संरचना क्या है?
मूल
संरचना का मतलब है संविधान के वे बुनियादी सिद्धांत और विशेषताएं,
जो इसे एक जीवंत और लोकतांत्रिक दस्तावेज बनाते हैं। ये सिद्धांत
संविधान का आधार हैं, और संसद इन्हें बदल या खत्म नहीं कर
सकती, भले ही उसके पास संशोधन करने की शक्ति हो। यह विचार
सुप्रीम कोर्ट ने 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल
राज्य मामले में दिया था।
मूल संरचना का उद्भव
- केशवानंद भारती केस (1973):
यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत की नींव है। इस केस
में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि संसद को संविधान में संशोधन करने की
शक्ति है (अनुच्छेद 368 के तहत), लेकिन
वह संविधान के मूल ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती।
- पृष्ठभूमि:
1970 के दशक में सरकार ने कई संशोधन किए, जैसे 24वां, 25वां,
और 29वां संशोधन, जो
मौलिक अधिकारों और संपत्ति के अधिकार को कमजोर करने वाले थे। केशवानंद भारती
ने इन संशोधनों को चुनौती दी, और सुप्रीम कोर्ट ने कहा
कि संसद की शक्ति असीमित नहीं है।
मूल
संरचना में क्या-क्या शामिल है?
सुप्रीम
कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि मूल संरचना में केवल कुछ खास चीजें ही शामिल हैं,
लेकिन समय के साथ कई फैसलों में कुछ सिद्धांतों को मूल संरचना का
हिस्सा माना गया। ये हैं:
1. संविधान
की सर्वोच्चता: संविधान देश का सर्वोच्च कानून है,
और कोई भी कानून या संशोधन इसके ऊपर नहीं हो सकता।
2. लोकतंत्र:
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां जनता की भागीदारी
और स्वतंत्र चुनाव जरूरी हैं।
3. धर्मनिरपेक्षता:
भारत में सभी धर्मों को समान सम्मान और स्वतंत्रता दी गई है।
4. संघीय
ढांचा (Federalism): केंद्र और
राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा संविधान का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
5. न्यायिक
समीक्षा (Judicial Review): कोर्ट को यह शक्ति है कि वह संसद या सरकार के किसी कानून या कदम की जांच
कर सके और उसे असंवैधानिक घोषित कर सके।
6. कानून
का शासन (Rule of Law): कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, और सभी के लिए
समान कानून लागू होता है।
7. मौलिक
अधिकारों और स्वतंत्रता: नागरिकों के बुनियादी
अधिकार,
जैसे बोलने की आजादी, समानता, और जीवन का अधिकार, संविधान का आधार हैं।
8. न्याय,
स्वतंत्रता, और समानता:
संविधान की प्रस्तावना में दिए गए ये सिद्धांत इसके मूल में हैं।
9. न्यायपालिका की स्वतंत्रता: अदालतों को स्वतंत्र रहने का अधिकार है, ताकि वे निष्पक्ष फैसले दे सकें।
10. शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers): विधायिका (संसद), कार्यपालिका (सरकार), और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा।
मूल संरचना का महत्व
- संसद की शक्ति पर नियंत्रण:
संसद को संविधान में बदलाव करने की शक्ति है, लेकिन मूल संरचना सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि वह संविधान की
आत्मा को नष्ट न करे।
- लोकतंत्र की रक्षा:
यह सिद्धांत लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता,
और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- समय के साथ प्रासंगिकता:
मूल संरचना यह सुनिश्चित करती है कि संविधान बदलते समय के साथ लचीला रहे,
लेकिन उसका मूल ढांचा बरकरार रहे।
- न्यायिक शक्ति:
सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी संशोधन की जांच करे और अगर
वह मूल संरचना के खिलाफ हो, तो उसे रद्द कर
दे।
मूल संरचना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मामले
1. केशवानंद
भारती केस (1973): इसने
मूल संरचना सिद्धांत को स्थापित किया।
2. इंदिरा
नेहरू गांधी बनाम राज नारायण (1975): इस केस में 39वें संशोधन को चुनौती दी गई, जो इंदिरा गांधी के चुनाव को कोर्ट की जांच से बाहर रखता था। सुप्रीम
कोर्ट ने इसे मूल संरचना के खिलाफ माना।
3. मिनर्वा
मिल्स बनाम भारत संघ (1980): इस केस में 42वें संशोधन के कुछ हिस्सों को रद्द
किया गया, जो संसद को असीमित शक्ति दे रहे थे।
4. एस.आर.
बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): इसने संघीय ढांचे और धर्मनिरपेक्षता को मूल संरचना का हिस्सा माना।
उदाहरण से समझें
मान
लीजिए संसद एक ऐसा संशोधन लाती है, जिसमें
कहा जाए कि भारत में अब लोकतंत्र नहीं रहेगा और एक व्यक्ति की तानाशाही होगी। यह
संशोधन मूल संरचना के खिलाफ होगा, क्योंकि लोकतंत्र संविधान
का आधार है। सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
मूल संरचना की विशेषताएं
- लचीलापन और स्थिरता का संतुलन:
यह संविधान को समय के साथ बदलने की अनुमति देता है,
लेकिन उसके मूल सिद्धांतों को सुरक्षित रखता है।
- न्यायपालिका की भूमिका:
यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट को संविधान का रक्षक बनाता है।
- स्पष्टता की कमी:
सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना की पूरी सूची कभी नहीं दी,
जिससे यह थोड़ा अस्पष्ट है। हर केस में कोर्ट तय करता है कि
क्या मूल संरचना का हिस्सा है।
संक्षेप में
मूल
संरचना सिद्धांत संविधान का वह ढांचा है, जो इसके
बुनियादी सिद्धांतों जैसे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, और मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि संसद अपनी
शक्ति का दुरुपयोग न करे और संविधान की आत्मा को कोई नुकसान न पहुंचे। यह सिद्धांत
भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था को मजबूत बनाता है।