यह मामला हिमाचल
प्रदेश के मंडी जिले की पांगना ग्राम पंचायत के प्रधान बसंत लाल से जुड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया है,
जिसमें कहा गया था कि पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपने
खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों की जानकारी देना अनिवार्य है। अगर कोई उम्मीदवार यह
जानकारी छिपाता है, तो यह गलत और भ्रष्ट आचरण माना जाएगा।
आइए इस मामले को सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं:
क्या हुआ था?
1. बसंत
लाल का चुनाव और विवाद:
o 17
जनवरी 2021 को बसंत लाल को पांगना ग्राम
पंचायत का प्रधान चुना गया।
o चुनाव
में तीसरे स्थान पर आए जितेंद्र महाजन ने लाल के चुनाव को चुनौती दी। उनकी शिकायत
थी कि लाल ने अपने खिलाफ चल रहे एक आपराधिक मामले की जानकारी छिपाई थी।
o यह
आपराधिक मामला ऐसा था, जिसमें दो साल तक की सजा हो
सकती थी।
2. निचली
अदालतों और हाईकोर्ट का फैसला:
o उप-विभागीय
मजिस्ट्रेट (चुनाव न्यायाधिकरण) ने पाया कि लाल ने जानबूझकर आपराधिक मामले की
जानकारी नहीं दी। इस वजह से उनका चुनाव रद्द कर दिया गया।
o लाल
ने इस फैसले के खिलाफ डिप्टी कमिश्नर के पास अपील की,
लेकिन 1 मई 2023 को उनकी
अपील खारिज हो गई।
o इसके
बाद लाल हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर 2024
को फैसला दिया कि लाल का जानकारी छिपाना हिमाचल प्रदेश पंचायती राज
अधिनियम, 1994 के तहत "भ्रष्ट आचरण" है। इस आधार
पर उनका चुनाव शून्य (अमान्य) घोषित किया गया।
o हाईकोर्ट
की खंडपीठ ने 7 नवंबर 2024 को इस
फैसले को सही ठहराया।
3. लाल
की अयोग्यता:
o 2
फरवरी 2025 को लाल को छह साल के लिए पंचायत
चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने
आपराधिक मामले की जानकारी छिपाई थी।
सुप्रीम कोर्ट में
क्या हुआ?
लाल ने हाईकोर्ट के
फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच,
जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे,
ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर फैसला दिया:
1. हाईकोर्ट
का फैसला सही:
o सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला सही है। पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों
के लिए राज्य चुनाव आयोग के नियमों का पालन करना जरूरी है। इन नियमों के तहत अपने
खिलाफ आपराधिक मामलों की जानकारी देना अनिवार्य है।
o लाल
ने जानबूझकर एक झूठा हलफनामा देकर अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को छिपाया। यह
गलत था और उनके चुनाव को रद्द करने का पर्याप्त कारण था।
o कोर्ट
ने कहा कि इस तरह के गलत आचरण को साबित करने के लिए किसी खास कानूनी प्रावधान की
जरूरत नहीं है। जानकारी छिपाना ही अपने आप में गलत है।
2. छह
साल की अयोग्यता पर टिप्पणी:
o सुप्रीम
कोर्ट ने नोट किया कि लाल को उस आपराधिक मामले में बाद में बरी (निर्दोष) कर दिया
गया था,
जिसकी जानकारी उन्होंने छिपाई थी।
o कोर्ट
ने कहा कि छह साल तक चुनाव लड़ने से रोकना थोड़ा सख्त और अनुपात से ज्यादा सजा
लगती है,
खासकर जब लाल को उस मामले में बरी कर दिया गया है।
o हालांकि,
कोर्ट ने इस सजा के गुण-दोष (सही-गलत) पर अंतिम राय नहीं दी,
क्योंकि यह मामला हाईकोर्ट में चुनौती का विषय नहीं था।
o कोर्ट
ने लाल को सलाह दी कि अगर वे चाहें, तो इस सजा
को हाईकोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।
3. अयोग्यता
पर रोक:
o सुप्रीम
कोर्ट ने लाल को राहत देते हुए 2 फरवरी 2025 के उस आदेश पर आठ हफ्ते के लिए रोक लगा दी, जिसमें
उन्हें छह साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया गया था।
o इस
रोक का मतलब है कि अगर निकट भविष्य में ग्राम पंचायत का चुनाव होता है,
तो लाल उसमें हिस्सा ले सकते हैं।
o कोर्ट
ने कहा कि यह रोक 17 अप्रैल 2025 से शुरू होकर आठ हफ्ते तक लागू रहेगी। इस दौरान लाल हाईकोर्ट में अपनी
अयोग्यता के खिलाफ उचित कानूनी कदम उठा सकते हैं।
o कोर्ट
ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में अंतिम फैसला हाईकोर्ट के विवेक पर निर्भर
करेगा,
क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता आदेश के सही-गलत होने पर कोई
अंतिम राय नहीं दी है।
इस मामले का सार:
- मुख्य मुद्दा:
बसंत लाल ने पंचायत चुनाव में अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले
की जानकारी छिपाई, जो गलत था। इस वजह से उनका चुनाव
रद्द कर दिया गया।
- हाईकोर्ट का रुख:
जानकारी छिपाना "भ्रष्ट आचरण" है, और यह चुनाव रद्द करने का वैध आधार है।
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
हाईकोर्ट का फैसला सही है। जानकारी छिपाना गलत है, और लाल का चुनाव रद्द करना उचित था। हालांकि, छह
साल की अयोग्यता सख्त लगती है, क्योंकि लाल को उस मामले
में बरी कर दिया गया था।
- राहत:
सुप्रीम कोर्ट ने लाल को अयोग्यता से राहत दी और आठ हफ्ते के
लिए उनकी अयोग्यता पर रोक लगा दी, ताकि वे हाईकोर्ट में
अपील कर सकें और अगर चुनाव हो तो उसमें हिस्सा ले सकें।
इस फैसले का महत्व:
- यह फैसला पंचायत चुनावों में
पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। उम्मीदवारों को अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की
जानकारी देना अनिवार्य है, ताकि मतदाता सही
जानकारी के आधार पर फैसला ले सकें।
- यह भी दिखाता है कि अगर कोई
उम्मीदवार जानबूझकर जानकारी छिपाता है, तो
उसका चुनाव रद्द हो सकता है और उसे सजा मिल सकती है।
- साथ ही,
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दिखाया कि सजा का अनुपात अपराध के
हिसाब से होना चाहिए। चूंकि लाल को बरी कर दिया गया था, इसलिए छह साल की अयोग्यता सख्त लगती है।
लाल के लिए अगला कदम:
- लाल को सुप्रीम कोर्ट की सलाह के
अनुसार हाईकोर्ट में जाकर अपनी अयोग्यता के खिलाफ अपील करनी चाहिए।
- आठ हफ्ते की रोक के दौरान उन्हें
यह सुनिश्चित करना होगा कि वे हाईकोर्ट में समय पर अपनी याचिका दायर करें,
ताकि उनकी अयोग्यता पर अंतिम फैसला हो सके।
यह मामला न केवल
बसंत लाल के लिए, बल्कि पंचायत चुनाव लड़ने
वाले सभी उम्मीदवारों के लिए एक सबक है कि पारदर्शिता और ईमानदारी बेहद जरूरी है।