भारत की सड़कों पर
आए दिन ऐसी बसें देखी जा सकती हैं, जिनमें
सीटिंग और स्लीपर व्यवस्था के अलावा छत पर भी भारी मात्रा में सामान लदा होता है।
इस तरह की ओवरलोडेड बसें न केवल यात्रियों की जान के लिए खतरा बनती हैं, बल्कि सड़क सुरक्षा, पर्यावरण और सरकारी राजस्व को
भी नुकसान पहुंचाती हैं। अब यह गंभीर मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है।
क्या है मामला?
हाल ही में सुप्रीम
कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें
देशभर में ओवरलोडेड बसों के संचालन पर रोक लगाने की मांग की गई है। वकील संगम लाल
पांडेय द्वारा दाखिल इस याचिका में कहा गया है कि क्षमता से अधिक यात्रियों और
सामान के साथ बसों का चलना एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इससे सड़क हादसों का खतरा
बढ़ता है और कई बार बड़ी दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं।
क्यों है ओवरलोडेड
बसें खतरनाक?
- ओवरलोडिंग के कारण बसों के ब्रेक
फेल होना, टायर फटना और बस का नियंत्रण
बिगड़ना आम समस्या है।
- आईआईटी दिल्ली की 2022
की रिपोर्ट के अनुसार, हाईवे पर ओवरलोडेड
वाहनों के दुर्घटना की संभावना 30% अधिक होती है।
- ओवरलोडेड बसें 15-20%
अधिक ईंधन खपत करती हैं, जिससे वायु
प्रदूषण भी बढ़ता है।
- सेंट्रल जीएसटी रिपोर्ट के
मुताबिक, बिना दस्तावेज बसों की छत पर ले
जाए जा रहे सामान से करीब 500 करोड़ रुपये का सालाना
राजस्व घाटा होता है।
याचिका में क्या
मांग की गई है?
याचिका में सुप्रीम
कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि
- बसों की ओवरलोडिंग पर रोक लगाने
के लिए मजबूत कानून और व्यवस्था लागू की जाए।
- केंद्र सरकार और सभी राज्य
सरकारों को इस दिशा में सख्ती से कदम उठाने का निर्देश दिया जाए।
- ओवरलोडिंग से होने वाले
दुर्घटनाओं, प्रदूषण और जीएसटी
चोरी को रोकने के लिए ठोस तंत्र तैयार किया जाए।
अभी तक क्या कदम
उठाए गए?
सुप्रीम कोर्ट ने
इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और केंद्र व सभी राज्य सरकारों को
पक्षकार बनाया गया है। जल्द ही इस मामले पर विस्तृत सुनवाई होगी और देशभर की
ओवरलोडेड बसों पर सख्ती की उम्मीद की जा रही है।
निष्कर्ष
ओवरलोडेड बसें देश
में सड़क सुरक्षा, पर्यावरण और सरकारी खजाने —
तीनों के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट का दखल इस दिशा में एक अहम कदम
है, जिससे न केवल सड़क हादसे कम होंगे, बल्कि जीएसटी चोरी और प्रदूषण पर भी नियंत्रण लगाया जा सकेगा।