इन
मामलों में चार लोग पिछले 11 से
16 साल तक जेल में बंद थे। इनकी
अपीलों पर करीब 2-3 साल पहले सुनवाई पूरी होकर
फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, लेकिन आदेश
नहीं सुनाया गया। इससे परेशान होकर दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।
सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और झारखंड हाईकोर्ट से जवाब मांगा। फिर हाईकोर्ट
ने तीन दोषियों को बरी कर दिया और एक के मामले में बंटा हुआ (विभाजित) फैसला सुनाया।
कोर्ट ने आदेश दिया कि चारों को तुरंत जेल से रिहा किया जाए।
हालांकि,
फैसला सुनने के 7 दिन बाद भी तीन लोग जेल में ही
बंद थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई। जब कोर्ट ने पूछा कि ऐसा क्यों
हुआ, तो राज्य के वकील ने कहा कि रिहाई का आदेश जेल तक नहीं
पहुंचा था। कोर्ट ने साफ कहा कि आज ही सबको रिहा किया जाए। दोपहर
2 बजे की सुनवाई में जानकारी दी गई कि सभी चारों दोषियों को छोड़
दिया गया है।
इस
दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये मामला न्यायिक व्यवस्था की बड़ी विफलता है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हमें सिस्टम की कमजोरी पर
अफसोस है। कोर्ट ने ऐसे मामलों पर निगरानी रखने और जल्द फैसला
सुनाने के लिए देशभर के हाईकोर्ट्स से रिपोर्ट भी तलब की है।
साथ
ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि ऐसे ही मामलों
में अन्य कैदियों को भी कानूनी सहायता दिलवाई जाए।
मामले
की पृष्ठभूमि :
चारों
दोषी आदिवासी और पिछड़ा वर्ग समुदाय से हैं। तीन को हत्या और एक को बलात्कार
के मामले में उम्रकैद की सजा मिली थी। उन्होंने अपनी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट
में अपील की थी। 2022 में फैसला सुरक्षित रखा
गया, लेकिन आज तक सुनाया नहीं गया।
इसके
बाद इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई, जिसमें
कहा गया कि इतनी देरी उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद
21) का उल्लंघन है।
सुप्रीम
कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए न सिर्फ इस मामले में हाईकोर्ट से जवाब मांगा,
बल्कि पूरे देश के हाईकोर्ट्स से उन मामलों की लिस्ट भी मांगी है,
जिनके फैसले 31 जनवरी 2025 या उससे पहले सुरक्षित रखे जा चुके हैं, लेकिन अब तक
सुनाए नहीं गए।