09 मई 2025,
भारत के साथ चल रहे
तनावपूर्ण हालात के बीच पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है,
जिसने न केवल देश के आम नागरिकों बल्कि राजनीतिक हलकों में भी हलचल
मचा दी है। इस फैसले ने पाकिस्तानी सेना और इसके प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को
अभूतपूर्व शक्तियां प्रदान की हैं, जिससे उनकी स्थिति पहले
से कहीं अधिक मजबूत हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 7 मई
2025 को अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि अब आम नागरिकों
पर भी मिलिट्री कोर्ट में मुकदमे चलाए जा सकते हैं, जिनमें
मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है। यह फैसला न केवल पाकिस्तान के लोकतांत्रिक ढांचे
के लिए बल्कि आम नागरिकों, खासकर विपक्षी नेताओं और
कार्यकर्ताओं के लिए भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
मिलिट्री कोर्ट को असीमित अधिकार
पाकिस्तान सुप्रीम
कोर्ट के इस फैसले ने जनरल आसिम मुनीर को यह अधिकार दे दिया है कि वह किसी भी
व्यक्ति को 'राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा' करार देकर मिलिट्री कोर्ट में मुकदमा चलवा सकते हैं। मिलिट्री कोर्ट के
फैसलों की प्रकृति ऐसी है कि इनमें पारदर्शिता की कमी होती है और अपील की
संभावनाएं भी सीमित होती हैं। इस फैसले ने सेना को नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता
पर सीधा नियंत्रण प्रदान कर दिया है। यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है, जब देश में पहले से ही सेना के खिलाफ बोलना 'देशद्रोह'
के समान माना जा रहा है। भारत के साथ सीमा पर तनाव और युद्ध जैसे
हालात ने इस फैसले को और भी संवेदनशील बना दिया है।
पुराने फैसले को
पलटने का क्या है मायने?
यह फैसला इसलिए भी
महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसने सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर 2023
के एक पुराने निर्णय को पूरी तरह पलट दिया। उस समय कोर्ट ने स्पष्ट
रूप से कहा था कि मिलिट्री कोर्ट में नागरिकों के खिलाफ मुकदमे चलाना असंवैधानिक
है। इस फैसले ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में एक मजबूत
कदम माना गया था। हालांकि, इसके बाद कई अपीलें दायर की गईं,
जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई
2025 को अपना पुराना रुख बदल लिया। इस नए फैसले ने न केवल
सेना को मजबूत किया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि देश
में सेना का प्रभाव अब न्यायपालिका पर भी हावी हो रहा है।
इमरान खान और पीटीआई पर निशाना
इस फैसले का सबसे
बड़ा प्रभाव पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ
(पीटीआई) पर पड़ने की संभावना है। दरअसल, यह फैसला 9
मई 2023 को इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद हुए
हिंसक प्रदर्शनों से जुड़ा है। इन प्रदर्शनों में पीटीआई समर्थकों पर सैन्य और
सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा था। उस समय करीब 1000 पीटीआई समर्थकों को गिरफ्तार किया गया था, और पार्टी
का दावा था कि उनके सैकड़ों कार्यकर्ताओं को बिना सबूत के जेल में डाल दिया गया।
अब नए फैसले के बाद इन कार्यकर्ताओं पर मिलिट्री कोर्ट में मुकदमे चल सकते हैं,
जहां सजा के रूप में मृत्युदंड तक का प्रावधान है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
पाकिस्तान में पहले
से ही जनरल आसिम मुनीर का प्रभाव राजनीतिक नेतृत्व से कहीं अधिक है। वह देश के
प्रमुख नीतिगत और रणनीतिक फैसले ले रहे हैं। इस फैसले ने उनकी स्थिति को और अजेय
बना दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के साथ तनाव का माहौल और सेना के
खिलाफ बोलने की सीमित स्वतंत्रता ने इस फैसले के लिए मुफीद समय प्रदान किया। कई
विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला सुनियोजित तरीके से लिया गया है,
ताकि सेना अपनी स्थिति को और मजबूत कर सके और विपक्ष को पूरी तरह
दबाया जा सके।
नागरिकों के लिए खतरे की घंटी
यह फैसला आम
नागरिकों के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करता है। मिलिट्री कोर्ट में मुकदमों की
सुनवाई गुप्त रूप से होती है, और इनमें निष्पक्षता
की गारंटी नहीं होती। ऐसे में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह
पत्रकार हो, कार्यकर्ता हो या आम नागरिक, सेना की आलोचना करने या विरोध करने पर आसानी से निशाना बन सकता है। खासकर
भारत के साथ युद्ध जैसे हालात में 'राष्ट्रविरोधी' का ठप्पा लगाकर किसी को भी सजा दी जा सकती है। इससे देश में अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर संकट मंडरा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भविष्य
इस फैसले ने
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी खींचा है। मानवाधिकार संगठन और लोकतांत्रिक देश
इस फैसले को पाकिस्तान में लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं। यह देखना
दिलचस्प होगा कि क्या अंतरराष्ट्रीय दबाव इस फैसले को प्रभावित कर पाएगा या नहीं।
जहां तक पाकिस्तान के भविष्य का सवाल है, यह फैसला
देश को और अधिक सैन्य शासन की ओर धकेल सकता है, जहां नागरिक
अधिकार और स्वतंत्रता पूरी तरह सेना के अधीन हो जाएंगे।
निष्कर्ष
पाकिस्तान सुप्रीम
कोर्ट का यह फैसला न केवल जनरल आसिम मुनीर और सेना की शक्ति को बढ़ाता है,
बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे और नागरिक स्वतंत्रता के लिए भी एक
बड़ा झटका है। भारत के साथ तनावपूर्ण स्थिति में लिया गया यह निर्णय पाकिस्तान के
आंतरिक और बाहरी हालात को और जटिल बना सकता है। इस फैसले ने एक बार फिर साबित कर
दिया है कि पाकिस्तान में सेना का दबदबा अब भी कायम है, और
इसका प्रभाव न केवल राजनीति बल्कि न्यायपालिका और समाज पर भी स्पष्ट रूप से देखा
जा सकता है।