16 अप्रैल 2025
वक्फ (संशोधन)
अधिनियम 2025
को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल
ने सरकार के नए नियमों पर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि राज्य सरकार यह कैसे तय कर
सकती है कि कोई व्यक्ति मुसलमान है या नहीं?
दरअसल,
नए कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति वक्फ (धार्मिक संस्था) को ज़मीन या
संपत्ति दान करना चाहता है, तो यह जरूरी है कि वह कम से कम पांच
साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो। इसी प्रावधान पर सिब्बल ने आपत्ति
जताई।
कपिल सिब्बल ने
वक्फ अधिनियम की धारा 3R का ज़िक्र करते हुए कहा कि
इस नियम के तहत वक्फ का मतलब वही दान होगा, जो ऐसा व्यक्ति
करेगा जो पांच साल से इस्लाम धर्म मान रहा हो। उन्होंने पूछा कि – "राज्य सरकार को ये अधिकार किसने दिया कि वो तय करे कि कौन मुसलमान है और
कौन नहीं?"
सिब्बल ने यह भी
कहा कि इस्लाम धर्म में विरासत का फैसला व्यक्ति की मृत्यु के बाद होता है,
लेकिन सरकार पहले ही दखल देने लगी है। उन्होंने कहा कि अगर संपत्ति
पर विवाद होता है, तो कानून के मुताबिक उसका फैसला कलेक्टर
करेगा। सिब्बल ने इस पर भी सवाल उठाया कि "सरकारी
अफसर कैसे तय कर सकता है कि प्रॉपर्टी वक्फ है या नहीं?" उन्होंने इसे असंवैधानिक बताया।
मुख्य न्यायाधीश (CJI)
संजीव खन्ना ने सिब्बल की दलील पर टिप्पणी करते हुए कहा, "हिंदू धर्म में भी कुछ ऐसे कानून हैं, इसलिए संसद ने
मुस्लिम समुदाय के लिए अलग कानून बनाया है। यह संविधान के खिलाफ नहीं है।" उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 26 सबको
धार्मिक संस्थाएं चलाने का अधिकार देता है और यह धर्मनिरपेक्ष है – यानी सभी
धर्मों पर लागू होता है।
अब इस मामले में
आगे की सुनवाई से तय होगा कि वक्फ कानून का यह नया प्रावधान बना रहेगा या इसे बदला
जाएगा। फिलहाल, कोर्ट की टिप्पणियों से साफ है कि यह
बहस संविधान, धार्मिक स्वतंत्रता और सरकारी हस्तक्षेप जैसे
बड़े मुद्दों को छू रही है।