17 अप्रैल 2025
| लंदन
"महिला
कौन है?" – इस सवाल पर ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट ने 16
अप्रैल को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि कानूनी रूप से
'महिला' वही मानी जाएगी,
जो जन्म से लड़की (बायोलॉजिकल फीमेल) हो।
इस फैसले का असर
ब्रिटेन में ट्रांसजेंडर अधिकारों और महिला आरक्षण से जुड़ी नीतियों पर पड़ सकता
है। यह मामला स्कॉटलैंड की महिला अधिकार संस्था 'फॉर
वुमेन स्कॉटलैंड (FWS)' द्वारा
उठाया गया था, जो चाहती थी कि महिलाओं की नौकरियों और
अधिकारों की सुरक्षा सिर्फ जन्म से महिलाओं के लिए हो।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
पांच जजों की बेंच
ने सर्वसम्मति से कहा कि ब्रिटेन के समानता अधिनियम 2010 में 'महिला' शब्द का मतलब जन्म
से महिला होता है, ना कि वह व्यक्ति जिसने बाद में लिंग
बदला हो।
न्यायमूर्ति
पैट्रिक हॉज ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ भेदभाव
से उनकी सुरक्षा करता है, लेकिन महिला की
परिभाषा जैविक लिंग पर आधारित रहेगी।
सरकार और संगठनों की प्रतिक्रिया
ब्रिटिश सरकार ने
इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे "महिला की परिभाषा" को लेकर स्पष्टता
आई है।
वहीं, FWS की सदस्य सुसान स्मिथ ने भावुक होकर कहा – "यह एक लंबी लड़ाई रही है। अब महिलाएं खुद को
सुरक्षित महसूस कर सकती हैं कि महिला आरक्षित नौकरियां वास्तव में महिलाओं के लिए
ही रहेंगी।"
ट्रांस समुदाय में चिंता
दूसरी ओर,
ट्रांस अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर नाराजगी जताई है। 25
वर्षीय ट्रांस महिला ऐली गोमर्सल ने कहा कि – "यह फैसला
ट्रांस लोगों के शांतिपूर्वक जीने के अधिकार पर हमला है।"
विवाद क्या था?
विवाद का केंद्र 2010
का समानता अधिनियम और
2004
का लिंग पहचान कानून (Gender Recognition Act) रहा।
स्कॉटिश सरकार मानती थी कि ट्रांस महिलाएं, जिन्होंने
लिंग पहचान सर्टिफिकेट (GRC) लिया है, उन्हें
भी महिला माना जाए। लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह व्याख्या कानून के अनुसार सही
नहीं है।
यह फैसला ब्रिटेन
के ट्रांसजेंडर अधिकारों और महिला-सुरक्षा कानूनों को लेकर एक नया अध्याय खोल
सकता है। अब सबकी नजर इस पर है कि भविष्य में कानून में क्या बदलाव होते हैं और
समाज इसे कैसे स्वीकार करता है।