9 अप्रैल 2025
को उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में रश्मि रोशन
उर्फ निगार द्वारा भारतीय वायु सेना के एक कर्मचारी के खिलाफ दायर रिट याचिका को
खारिज कर दिया। याचिका में विवाह का दावा, भरण-पोषण की मांग
और सेवा रिकॉर्ड में बदलाव की अपील की गई थी। लेकिन क्या ये सभी मांगे अनुच्छेद 226
के तहत स्वीकार की जा सकती हैं?
अनुच्छेद 226
और वैकल्पिक उपाय का सिद्धांत
उच्च न्यायालय ने
साफ किया कि अनुच्छेद 226 एक असाधारण अधिकार है,
जिसे तभी प्रयोग में लाया जाना चाहिए जब कोई प्रभावी वैकल्पिक उपाय
उपलब्ध न हो। इस मामले में याचिकाकर्ता के पास सिविल न्यायालय का विकल्प मौजूद था,
इसलिए रिट याचिका विचारणीय नहीं थी।
"महत्वपूर्ण केस:
हिमाचल प्रदेश बनाम गुजरात अंबुजा सीमेंट लिमिटेड"
वैवाहिक स्थिति का
दावा: क्या यह साबित हुआ?
रश्मि ने दावा किया
कि उनकी शादी 2008 में हुई और उन्होंने पति के सेवा
रिकॉर्ड में खुद को "पत्नी" के रूप में दर्ज कराने की मांग की। लेकिन
रिकॉर्ड में साहिस्ता परवीन को पहले से ही पत्नी के रूप में दर्ज पाया गया,
और उन्हें पार्टी तक नहीं बनाया गया था।
"कोर्ट ने कहा: सेवा
रिकॉर्ड को रिट याचिका से नहीं बदला जा सकता।"
भारतीय वायु सेना
अधिनियम की धारा 91 का संदर्भ
रश्मि ने वायुसेना
अधिकारी के वेतन से भरण-पोषण की राशि काटने का निर्देश देने की भी मांग की थी।
लेकिन धारा 91 केवल तभी लागू होती है जब केंद्र सरकार
अथवा निर्धारित प्राधिकारी द्वारा आदेश दिया जाए — जो कि इस केस में अनुपस्थित था।
"न्यायालय की
टिप्पणी: धारा 91 स्वचालित रूप से लागू नहीं
होती।"
दो विवाह,
एक तलाक और कानूनी भ्रम
याचिकाकर्ता ने
निकाह और तलाकनामे के दस्तावेज प्रस्तुत किए, लेकिन
कोर्ट ने पाया कि वायुसेना अधिकारी ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत साहिस्ता से
कानूनी विवाह किया था। उन्होंने पहले विवाह को निरस्त करने की कोई कानूनी
कार्यवाही नहीं की थी, जिससे विवाद और बढ़ गया।
"न्यायालय ने कहा:
विवादित तथ्य सिविल कोर्ट में तय होने चाहिए।"
"घरेलू संबंध" की सीमाएं: अधिकार बनाम मान्यता
याचिकाकर्ता ने
घरेलू हिंसा कानून की धारा 2(f) के तहत "विवाह
जैसा संबंध" बताकर भरण-पोषण की मांग की, लेकिन कोर्ट ने
कहा कि ऐसा संबंध सेवा रिकॉर्ड में पत्नी की मान्यता पाने के लिए पर्याप्त नहीं
होता।
"कोर्ट ने ‘most
akin to wife’ की परिभाषा को भी समझाया।"
अंतिम निर्णय: रिट
याचिका नहीं, सिविल कोर्ट जाएं
न्यायालय ने स्पष्ट
कर दिया कि यह मामला अनुच्छेद 226 के अधिकार क्षेत्र
के अंतर्गत नहीं आता। ऐसे विवाद जिनमें जटिल तथ्यों की जांच जरूरी हो, उन्हें केवल सक्षम सिविल अदालत में ही हल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ एक
व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि भारतीय न्यायिक प्रणाली के अनुच्छेद 226
के सीमित दायरे को समझने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी है। अदालत ने
स्पष्ट कर दिया कि किसी वैवाहिक विवाद को केवल तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर
सिविल न्यायालय में ही सुलझाया जा सकता है, न कि रिट याचिका
के माध्यम से।
निर्णय की मुख्य
बातें (Quick Recap)
वैवाहिक विवाद और
भरण-पोषण के दावे रिट याचिका से नहीं सुलझते।
सेवा रिकॉर्ड में बदलाव के लिए कानूनी वैवाहिक स्थिति आवश्यक।
वायुसेना अधिनियम की धारा 91 स्वचालित नहीं,
प्राधिकारी आदेश जरूरी।
विवादित तथ्यों में हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता।
केस विवरण:
- मामला:
रश्मि रोशन @ निगार बनाम भारत संघ व
अन्य
- न्यायालय:
उड़ीसा उच्च न्यायालय
- मामला संख्या:
आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 835/2012
- निर्णय तिथि:
9 अप्रैल 2025
- पीठ:
न्यायमूर्ति मुरारी श्री रमन