इलाहाबाद
उच्च न्यायालय ने पर्यवेक्षी भूमिका निभाने वाले सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक की पेंशन
में की गई कटौती को रद्द किया। जानिए क्यों अधीनस्थों की गलती के लिए पर्यवेक्षक
को दोषी नहीं ठहराया गया।
उच्च न्यायालय ने जेल अधीक्षक की पेंशन कटौती पर विचार किया
हाल
ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें सेवानिवृत्त
जेल अधीक्षक राज किशोर सिंह की पेंशन में की गई 10% कटौती
को रद्द कर दिया गया। यह निर्णय एक ऐसी घटना से जुड़ा है जिसमें दो दोषी कैदी जेल
से फरार हो गए थे और अधीक्षक पर अधीनस्थों को नियंत्रित न कर पाने का आरोप लगा।
सेवा इतिहास और आरोपों की पृष्ठभूमि
राज
किशोर सिंह ने 1994 में डिप्टी जेलर के रूप में सेवा
शुरू की थी। उन्हें 2017 में इटावा के जेल अधीक्षक के रूप
में पदोन्नति मिली। उनके कार्यकाल में हुई घटना में दो कैदी फरार हो गए, जिसके बाद उन पर अपने अधीनस्थ अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं रखने का आरोप
लगा।
सेवानिवृत्ति के बाद भी विभागीय कार्रवाई
हालांकि
सिंह 30
नवंबर 2021 को सेवानिवृत्त हो गए थे, फिर भी उत्तर प्रदेश सिविल सेवा विनियमन के नियम 351-ए के तहत विभागीय कार्यवाही जारी रही। राज्य सरकार ने जांच के बाद तीन साल
के लिए उनकी पेंशन में 10% कटौती का आदेश जारी किया।
पेंशन कटौती के आदेश को न्यायालय में चुनौती
राज
किशोर सिंह ने इस आदेश को 21 जून 2023 के सरकारी निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उन्होंने कहा कि
उनका कार्य पर्यवेक्षण का था, न कि सीधे संचालन का, इसलिए उन्हें गंभीर कदाचार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायालय द्वारा पर्यवेक्षक की भूमिका की समीक्षा
न्यायमूर्ति
नीरज तिवारी ने पाया कि घटना के समय जेल में सीसीटीवी कैमरे बंद थे और
सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी थी। सिंह ने समय-समय पर उच्च अधिकारियों को इन कमियों
की सूचना दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
जेल मैनुअल और अधीक्षक की भूमिका
यूपी
जेल मैनुअल के अनुसार, जेलर और डिप्टी जेलर की
परिचालन जिम्मेदारियाँ अधिक होती हैं जबकि अधीक्षक की भूमिका मुख्य रूप से
पर्यवेक्षी होती है। फिर भी संबंधित जेल अधिकारियों को मामूली सजा दी गई जबकि सिंह
को कठोर दंड मिला।
पुराने फैसले से तुलना: सुरेन्द्र पांडे प्रकरण
न्यायालय
ने 'सुरेन्द्र पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य' केस का
हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि केवल पर्यवेक्षण में विफलता
गंभीर कदाचार नहीं मानी जा सकती। दोनों मामलों में समानता पाते हुए, अदालत ने सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया।
अंतिम निर्णय: राहत और न्याय
अदालत
ने आदेश दिया कि सिंह की पेंशन कटौती को रद्द किया जाए और 9%
ब्याज के साथ पूरी राशि लौटाई जाए। साथ ही सभी लंबित लाभ भी बहाल
किए जाएं। यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा में एक उदाहरण बन
गया है।
प्रशासनिक
न्याय और पारदर्शिता की मिसाल
यह
फैसला सिविल सेवा नियमों की पारदर्शी व्याख्या और प्रशासनिक जवाबदेही की सीमा तय
करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पर्यवेक्षण संबंधी सीमाओं को गंभीर कदाचार का
आधार नहीं बनाया जा सकता।
केस
विवरण:
- केस संख्या:
रिट ए संख्या 6716/2024
- पक्षकार: राज किशोर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य