केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि
विधेयकों (बिल) को मंजूरी देने में देरी को लेकर तमिलनाडु मामले में जो फैसला दिया
गया था,
वही नियम केरल के मामले में लागू नहीं किया जा सकता।
केंद्र का कहना है कि केरल की याचिका में कुछ अलग बातें हैं,
जो तमिलनाडु के केस में सामने नहीं आई थीं। इसलिए दोनों
मामलों में फर्क है और सरकार कोर्ट को वह फर्क बताएगी।
दरअसल, केरल
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि जब तमिलनाडु में राज्यपाल के पास लटके
विधेयकों पर कोर्ट ने समय सीमा तय करने और निर्णय लेने का आदेश दिया है,
तो वही नियम केरल में भी लागू होना चाहिए। इस पर केंद्र
सरकार ने विरोध जताया और कहा कि दोनों मामलों की परिस्थितियाँ अलग हैं।
सुनवाई छह मई तक टली
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई फिलहाल छह मई तक
टाल दी है। कोर्ट अब यह तय करेगा कि केरल का मामला तमिलनाडु वाले केस जैसा है या
नहीं।
अदालत में क्या हुआ
केरल सरकार की तरफ से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल
ने कोर्ट में कहा कि उनका मामला भी उसी फैसले के दायरे में आता है। इस पर सुप्रीम
कोर्ट की बेंच ने पूछा कि जब फैसला पहले से मौजूद है,
तो क्या आप अपनी याचिका वापस लेना चाहेंगे?
इस पर केरल के राज्यपाल की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि
यह मामला उस पुराने फैसले में शामिल नहीं होता। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी
जनरल आर. वेंकट्रमणी ने भी कहा कि तमिलनाडु के फैसले में इस केस से जुड़े कुछ
महत्वपूर्ण तथ्य शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा कि सरकार कोर्ट को बताएगी कि दोनों
मामलों में क्या फर्क है।
पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु
में लटके विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के मामले में फैसला देते हुए राज्यपाल
को लंबित बिलों को स्वीकार करने का निर्देश दिया था। इसी का हवाला देकर केरल सरकार
ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी।