22 अप्रैल, 2025
देश में संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को लेकर चल रही बहस अब और तेज
हो गई है। हाल ही में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था —
अगर कानून सुप्रीम कोर्ट ही
बनाएगा, तो
संसद को ताला लगा देना चाहिए। इसी मुद्दे पर मंगलवार को उपराष्ट्रपति
जगदीप धनखड़
ने भी अपनी बात रखी।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए
कहा कि भारत में सबसे ऊपर संसद है। संविधान में भी लिखा है — 'हम, भारत के लोग'। मतलब, असली ताकत देश की जनता के पास है। और जनता जिन लोगों को
चुनती है, वही संसद में बैठते हैं और वही संविधान के असली मालिक
होते हैं।
धनखड़ ने कहा, संसद में बैठे प्रतिनिधि जनता की इच्छा के मुताबिक कानून बनाते हैं और
चुनाव के जरिए जनता उन्हें जिम्मेदार ठहराती है। उन्होंने यह भी कहा कि
लोकतंत्र में हर नागरिक एक
‘परमाणु’ है और इस परमाणु की असली ताकत चुनाव के वक्त दिखती है।
विपक्ष और वरिष्ठ वकीलों ने जताई नाराजगी
उपराष्ट्रपति के इस बयान पर विपक्षी पार्टियों ने आपत्ति जताई।
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और कुछ राज्यसभा सांसदों ने कहा कि
धनखड़ को संविधान सभा की बहसें
पढ़नी चाहिए, क्योंकि संविधान ने न्यायपालिका और विधायिका दोनों में
संतुलन रखा है।
कपिल सिब्बल, जो राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं,
उन्होंने भी कहा — सुप्रीम कोर्ट संविधान की व्याख्या करता है और देश के
संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करता है। कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है,
लेकिन संविधान के
मुताबिक न्याय करने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की है।
कहां से शुरू हुई बहस?
असल में, यह
पूरा विवाद तब शुरू हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर फैसला करने के
लिए समय-सीमा तय करनी चाहिए। इस पर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आपत्ति जताते हुए कहा था —
हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते कि
आप राष्ट्रपति को भी आदेश देने लगें।
अब इस बयान के बाद संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों की बहस फिर गरमा गई
है।