भारत
में आपराधिक न्याय प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता,
1973 (CrPC) और अब नई भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) महत्वपूर्ण कानून
हैं। इनमें अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को
परिभाषित किया गया है, जो किसी भी आपराधिक मुकदमे का आधार
है। इस लेख में हम CrPC की धारा 231 और BNSS की धारा 254 के
बारे में सरल भाषा में विस्तार से समझेंगे, इनके प्रावधानों,
परिभाषाओं, और अंतरों पर प्रकाश डालेंगे।
CrPC की धारा 231: अभियोजन के लिए साक्ष्य
CrPC
की धारा 231 सत्र
न्यायालय (Sessions Court) में अभियोजन पक्ष द्वारा साक्ष्य
प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि
अभियोजन पक्ष को अपने मामले को साबित करने के लिए उचित अवसर मिले।
धारा
231
की परिभाषा
अभियोजन
के लिए साक्ष्य
1. साक्ष्य प्रस्तुत करना*: जिस तारीख को मुकदमा तय किया जाता है, उस दिन सत्र न्यायाधीश को अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी साक्ष्य लेने होंगे।
2. साक्षी की जिरह स्थगित करना*: न्यायाधीश अपने विवेक से किसी साक्षी की जिरह (cross-examination) को स्थगित कर सकता है, जब तक कि अन्य साक्षी या साक्षियों की जांच पूरी न हो जाए। इसके अलावा, वह किसी साक्षी को फिर से बुलाकर अतिरिक्त जिरह की अनुमति दे सकता है।
सरल भाषा में अर्थ
- क्या होता है?:
जब कोई आपराधिक मामला सत्र न्यायालय में सुनवाई के लिए आता है,
तो अभियोजन पक्ष (जैसे पुलिस या सरकारी वकील) को अपने दावों को
साबित करने के लिए साक्ष्य (जैसे गवाह, दस्तावेज,
या अन्य सामग्री) प्रस्तुत करने होते हैं।
- न्यायाधीश की भूमिका:
न्यायाधीश यह सुनिश्चित करता है कि सभी साक्ष्य व्यवस्थित रूप
से प्रस्तुत हों। वह यह भी तय कर सकता है कि किसी गवाह की जिरह को बाद में
किया जाए या किसी गवाह को दोबारा बुलाया जाए।
- उद्देश्य:
इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि अभियोजन पक्ष को अपने
मामले को मजबूत करने का पूरा मौका मिले, साथ ही
प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी रहे।
उदाहरण
मान
लीजिए,
एक चोरी के मामले में अभियोजन पक्ष के पास एक गवाह है जो कहता है कि
उसने आरोपी को चोरी करते देखा। धारा 231 के तहत, इस गवाह को अदालत में बुलाया जाएगा, उसका बयान दर्ज
होगा, और बचाव पक्ष (आरोपी का वकील) उससे जिरह कर सकता है।
अगर न्यायाधीश को लगता है कि किसी अन्य गवाह के बयान के बाद जिरह करना बेहतर होगा,
तो वह जिरह को स्थगित कर सकता है।
BNSS की धारा 254: अभियोजन के लिए साक्ष्य
BNSS
की धारा 254 CrPC की
धारा 231 का ही नया रूप है, लेकिन
इसमें कुछ आधुनिक बदलाव किए गए हैं, खासकर तकनीकी और समयबद्ध
प्रक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए। BNSS 1 जुलाई,
2024 से लागू हो चुकी है और यह CrPC को पूरी
तरह से प्रतिस्थापित करती है।
धारा
254
की परिभाषा
अभियोजन के लिए साक्ष्य
1. साक्ष्य
प्रस्तुत करना: जिस तारीख को मुकदमा तय
किया जाता है, उस दिन न्यायाधीश को अभियोजन पक्ष द्वारा
प्रस्तुत सभी साक्ष्य लेने होंगे। प्रावधान: इस
उप-धारा के तहत किसी साक्षी के साक्ष्य को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के
माध्यम से दर्ज किया जा सकता है।
2. पुलिस
अधिकारी या लोक सेवक का साक्ष्य: किसी
पुलिस अधिकारी या लोक सेवक के साक्ष्य की गवाही को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक
साधनों के माध्यम से लिया जा सकता है।
3. जिरह
का स्थगन: न्यायाधीश अपने विवेक से किसी साक्षी की
जिरह को स्थगित कर सकता है, जब तक कि अन्य साक्षी या
साक्षियों की जांच पूरी न हो जाए, या किसी साक्षी को फिर से
बुलाकर अतिरिक्त जिरह की अनुमति दे सकता है।
सरल भाषा में अर्थ
- क्या होता है?:
BNSS की धारा 254 भी CrPC की धारा 231 की तरह ही अभियोजन पक्ष को साक्ष्य
प्रस्तुत करने की प्रक्रिया बताती है। लेकिन इसमें नया यह है कि साक्ष्य को
अब ऑडियो-वीडियो जैसे इलेक्ट्रॉनिक साधनों से दर्ज किया जा सकता है।
- तकनीकी बदलाव:
विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों या सरकारी कर्मचारियों (लोक
सेवकों) के बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से दर्ज
हो सकते हैं। इससे समय की बचत होती है और प्रक्रिया तेज होती है।
- उद्देश्य:
यह धारा न केवल निष्पक्षता सुनिश्चित करती है, बल्कि आधुनिक तकनीक का उपयोग करके आपराधिक न्याय प्रणाली को और सुगम
बनाती है।
उदाहरण
एक
हत्या के मामले में अभियोजन पक्ष एक पुलिस अधिकारी को गवाह के रूप में पेश करना
चाहता है,
जो घटनास्थल पर मौजूद था। धारा 254 के तहत,
उसका बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज किया जा सकता है,
अगर वह किसी कारणवश अदालत में उपस्थित नहीं हो सकता। इससे मुकदमा
बिना देरी के आगे बढ़ता है।
मुख्य अंतर
1. तकनीक
का उपयोग: BNSS में ऑडियो-वीडियो साधनों का
प्रावधान एक बड़ा बदलाव है। यह विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है जहां गवाह
दूर हैं या व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना संभव नहीं है।
2. लोक
सेवकों के लिए विशेष प्रावधान: BNSS में
पुलिस अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों के साक्ष्य को इलेक्ट्रॉनिक रूप से दर्ज
करने की सुविधा दी गई है, जो CrPC में
नहीं थी।
3. आधुनिकीकरण:
BNSS का लक्ष्य आपराधिक न्याय प्रणाली को डिजिटल और तेज बनाना है,
जबकि CrPC पुराने जमाने की प्रक्रियाओं पर
आधारित थी।
अभियोजन के लिए साक्ष्य का महत्व
1. निष्पक्षता
सुनिश्चित करना: साक्ष्य के बिना कोई भी
मामला साबित नहीं हो सकता। धारा 231 और 254 यह सुनिश्चित करती हैं कि अभियोजन पक्ष को अपने दावों को साबित करने का
पूरा मौका मिले।
2. आरोपी
के अधिकारों की रक्षा: साक्ष्य प्रस्तुत करने की
प्रक्रिया में बचाव पक्ष को भी जिरह का अवसर मिलता है, जिससे
मुकदमा निष्पक्ष रहता है।
3. तकनीकी
प्रगति: BNSS की धारा 254 में
इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग समय और संसाधनों की बचत करता है, जिससे न्याय प्रक्रिया तेज होती है।
4. पारदर्शिता:
साक्ष्य को व्यवस्थित और पारदर्शी तरीके से दर्ज करने से अदालत का
फैसला विश्वसनीय होता है।
निष्कर्ष
CrPC
की धारा 231 और BNSS
की धारा 254 दोनों ही अभियोजन पक्ष के लिए
साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं, लेकिन
BNSS में तकनीकी और समयबद्ध सुधारों ने इसे और प्रभावी बनाया
है। ऑडियो-वीडियो साधनों का उपयोग और लोक सेवकों के लिए विशेष प्रावधान BNSS
को आधुनिक और प्रगतिशील बनाते हैं। यह न केवल अभियोजन पक्ष को मजबूत
करता है, बल्कि पूरे आपराधिक न्याय तंत्र को तेज, पारदर्शी, और निष्पक्ष बनाता है।
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