17 अप्रैल 2025:
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा आरोपी
अब्दुल रज़्ज़ाक को दी गई अग्रिम ज़मानत को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता अंकित
मिश्रा की अपील को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि ज़मानत रद्द करने के लिए कोई ठोस
आधार नहीं है।
यह मामला जबलपुर के
ओमती थाना क्षेत्र में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें
आरोपी पर गवाह को धमकाने, गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी
देने के आरोप लगे थे। एफआईआर आईपीसी की धारा 195A, 294 और 506
के तहत दर्ज की गई थी।
क्या था मामला?
30 मार्च 2023
को पीड़ित अंकित मिश्रा और उनके मित्र संदीप दुबे अस्पताल गए थे,
जहां आरोपी अब्दुल रज़्ज़ाक ने उन्हें कथित रूप से गालियाँ दीं और
धमकी दी कि अगर उन्होंने एक पुराने आपराधिक मामले में दर्ज गवाही नहीं बदली,
तो उन्हें और उनके परिवार को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
अंकित मिश्रा ने
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा कि आरोपी
एक "आदतन अपराधी" है और उसके खिलाफ 45 से अधिक
आपराधिक मामले दर्ज हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपी को अग्रिम ज़मानत देना
न्याय व्यवस्था के लिए खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
जस्टिस संजय करोल
और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि ज़मानत एक कानूनी अधिकार है और
अगर आरोपी के खिलाफ सबूत और गवाहों से छेड़छाड़ की कोई ठोस संभावना नहीं है,
तो अग्रिम ज़मानत रद्द नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने यह भी
स्पष्ट किया कि इस केस में लगाए गए अपराध गंभीर नहीं हैं और ज़मानत आदेश
देने में हाईकोर्ट ने आरोपी का आपराधिक इतिहास भी ध्यान में रखा था। सुप्रीम कोर्ट
ने कहा कि “ज़मानत रद्द करने के लिए बेहद ठोस कारण
चाहिए होते हैं, जैसे गवाहों को धमकाना या कोर्ट को गुमराह
करना।”
क्या रहेगा आरोपी
पर नियंत्रण?
सुप्रीम कोर्ट ने
यह निर्देश भी दिया कि अगर आरोपी अन्य मामलों में ज़मानत पर रिहा होता है,
तो उसे हर महीने की पहली या दूसरी तारीख को संबंधित थाने में
हाज़िरी देनी होगी। यदि वह भविष्य में किसी अपराध में शामिल होता है, तो ज़मानत रद्द करने के लिए संबंधित पक्ष पुनः अदालत का दरवाज़ा खटखटा
सकते हैं।
निष्कर्ष
इस निर्णय के साथ
ही सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि ज़मानत का उद्देश्य किसी आरोपी को
ट्रायल तक बेवजह कारावास से बचाना है, न कि उसे
दोषी साबित करना। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट
अपराधों की गंभीरता और आरोपी के आचरण दोनों को ध्यान में रखकर निर्णय लेता है।
संबंधित
धाराएँ:
IPC 195A – गवाह को धमकाना
IPC 294 – अश्लील शब्द
IPC 506 – आपराधिक धमकी
CrPC 438 – अग्रिम ज़मानत
मामला:
अंकित मिश्रा बनाम
मध्य प्रदेश राज्य एवं अब्दुल रज़्ज़ाक
निर्णय की तारीख: 17 अप्रैल 2025
पीठ: न्यायमूर्ति संजय करोल एवं
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा