24 अप्रैल 2025।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट पर नाराज़गी जताते हुए कहा है कि
न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के बराबर है, लेकिन
न्याय न मिलना उससे भी खराब है। दरअसल, झारखंड की जेल में बंद आजीवन कारावास की सजा पाए चार कैदियों ने सुप्रीम
कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने बताया कि उनकी अपील झारखंड हाई कोर्ट में
तीन साल से पड़ी है, लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया
है।
इस मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट से रिपोर्ट तलब की है। कोर्ट ने पूछा है कि दो
महीने से ज्यादा समय तक किन-किन मामलों के फैसले सुरक्षित रखे गए हैं,
उसकी पूरी जानकारी सीलबंद लिफाफे में दी जाए। कोर्ट ने कहा कि
कैदियों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।
11 से 16 साल काट चुके हैं सजा
इन चारों कैदियों
ने जमानत की भी मांग की है। बताया गया कि ये कैदी 11
से 16 साल की सजा पूरी कर चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार और हाई कोर्ट को नोटिस जारी कर याचिका को सुनवाई के
लिए स्वीकार कर लिया है।
अन्य कैदी भी इसी हाल में
याचिका में कहा गया
है कि सिर्फ ये चार कैदी ही नहीं, बल्कि ऐसे
10 और कैदी हैं जो 3 साल से अपने
फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं। इन कैदियों ने जेल
अधिकारियों, विधिक सेवा संस्थाओं और राज्य के अधिकारियों से
भी कई बार शिकायत की, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फैसले का भी दिया हवाला
सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि फैसले सुरक्षित रखने की आदत ठीक नहीं है। फैसले तीन महीने में सुनाने
चाहिए, और किसी भी हालत में छह महीने से ज्यादा
नहीं लगना चाहिए। अदालत ने अपने पुराने
निर्णय 'अनी राय बनाम बिहार राज्य (2001)' का ज़िक्र करते हुए कहा कि न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए,
बल्कि दिखना भी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को भी निर्देश दिया कि लंबित फैसले छह हफ्ते के
भीतर सुनाए जाएं।