19 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट ने
सेना के एक कांस्टेबल द्वारा गुस्से में साथियों पर AK-47
से गोली चलाने के मामले में ट्रायल कोर्ट की सजा को सही ठहराया है।
कोर्ट ने साफ कहा कि आरोपी ने जानबूझकर खतरनाक हरकत की थी,
जिससे जान जाने का खतरा था।
घटना क्या थी?
यह घटना हिमाचल
प्रदेश की है, जहां एक कांस्टेबल ने मेस
(सैनिकों के भोजन स्थल) के खाने से नाराज होकर AK-47 से
अपने ही साथियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी। यह घटना
साल 2013 की है।
हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था
हिमाचल प्रदेश
हाईकोर्ट ने 2014 में आरोपी को बरी कर
दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस
फैसले को खारिज करते हुए कहा कि यह हमला जानबूझकर और गुस्से में किया गया था,
जिससे लोगों की जान जा सकती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की
पीठ ने कहा कि आरोपी को पता था कि AK-47 से
चलाई गई गोली किसी की जान ले सकती है, फिर
भी उसने यह हरकत की। कोर्ट ने माना कि धारा 307 (हत्या
की कोशिश) और शस्त्र अधिनियम की धारा 27
के तहत उसका अपराध साबित होता है।
सजा में दी गई थोड़ी राहत
कोर्ट ने ट्रायल
कोर्ट के 20 मार्च 2013 के
फैसले को बहाल किया, लेकिन सजा में थोड़ा
बदलाव किया है।
पहले उसे 7 साल की कठोर कैद दी गई थी, जिसे घटाकर पहले ही काटी गई सजा (लगभग
1 साल 5 महीने) मान लिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का
यह फैसला संदेश देता है कि सेना जैसे अनुशासित संस्थानों में ऐसी हिंसक घटनाओं के
लिए कोई जगह नहीं है। हालांकि, अदालत ने न्याय के हित
में सजा को कुछ हद तक नरम भी किया है।