मामला क्या है?
- यह मामला श्रीमती सारिकाथु निशा
की याचिका से शुरू हुआ। उनके भाई, जो
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत जेल
में विचाराधीन कैदी हैं, अपनी मां के अंतिम संस्कार में
शामिल नहीं हो पाए। उनकी मां का निधन 18 अप्रैल 2025
को हुआ था।
- तमिलनाडु के जेल नियम (तमिलनाडु
सजा निलंबन नियम, 1982) के अनुसार,
केवल दोषी कैदियों को अंतिम संस्कार के लिए छुट्टी मिल सकती है,
लेकिन विचाराधीन कैदियों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।
- इस वजह से सारिकाथु निशा को अपने
भाई के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी,
ताकि उसे अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति मिल सके।
हाई कोर्ट ने क्या
कहा?
मद्रास हाई कोर्ट
ने इस मामले में कई अहम बातें कहीं:
1. विचाराधीन
कैदियों का अधिकार: कोर्ट ने कहा कि विचाराधीन
कैदी, जिन्हें कानूनन निर्दोष माना जाता है, उनके अधिकारों को दोषी कैदियों से कम नहीं किया जा सकता। अंतिम संस्कार
में शामिल होना एक बुनियादी मानवीय अधिकार है, जो संविधान के
अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत सभी को मिलना चाहिए।
2. अदालत
की जरूरत नहीं: कोर्ट ने कहा कि विचाराधीन
कैदियों को अंतिम संस्कार के लिए छुट्टी पाने के लिए बार-बार अदालत में जमानत के
लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। यह प्रक्रिया समय लेती है और खासकर गरीब
कैदियों के लिए मुश्किल होती है, जो वकील या कानूनी मदद का
खर्च नहीं उठा सकते।
3. जेल
अधिकारियों को निर्देश: कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और
जेल विभाग को आदेश दिया कि वे एक परिपत्र (सर्कुलर) जारी करें, जिसमें जेल अधिकारी बिना अदालत के हस्तक्षेप के विचाराधीन कैदियों को
छुट्टी दे सकें। यह छुट्टी जेल महानिदेशक, जेल महानिरीक्षक
या पुलिस अधीक्षक की अनुमति से दी जा सकती है।
4. मानवीय
दृष्टिकोण: कोर्ट ने कहा कि जेल का मकसद कैदियों को
समाज से पूरी तरह अलग करना नहीं है। अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति देना
जेल के उद्देश्य के खिलाफ नहीं है। यह कैदियों को यह अहसास दिलाता है कि वे समाज
का हिस्सा हैं और सजा पूरी होने के बाद समाज में वापस लौटेंगे।
5. तत्काल
राहत:
कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता के भाई को
तुरंत सुरक्षा के साथ उसकी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाए।
यह फैसला क्यों
महत्वपूर्ण है?
- मानवाधिकारों की रक्षा:
यह फैसला विचाराधीन कैदियों के बुनियादी अधिकारों और गरिमा को
सुनिश्चित करता है। यह बताता है कि कानून को मानवीय और करुणामय होना चाहिए।
- समानता का सिद्धांत:
कोर्ट ने कहा कि विचाराधीन कैदियों को दोषी कैदियों से कम
अधिकार देना संविधान के खिलाफ है। दोनों को समान मानवीय अधिकार मिलने चाहिए।
- प्रक्रियागत आसानी:
अब विचाराधीन कैदियों को अंतिम संस्कार के लिए अदालत में जाने
की जरूरत नहीं होगी, जिससे समय और पैसे की बचत होगी।
खासकर गरीब परिवारों को इससे राहत मिलेगी।
- नजीर स्थापित:
यह फैसला देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है,
जहां विचाराधीन कैदियों को ऐसी सुविधाएं नहीं मिलतीं।
आगे क्या होगा?
- तमिलनाडु सरकार और जेल विभाग को
जल्द ही एक परिपत्र जारी करना होगा, जिसमें
जेल अधिकारियों को विचाराधीन कैदियों को छुट्टी देने के नियम बताए जाएंगे।
- इस फैसले से तमिलनाडु की सभी
जेलों में विचाराधीन कैदियों को अपने करीबी रिश्तेदारों के अंतिम संस्कार में
शामिल होने का अधिकार मिलेगा, बिना
जटिल कानूनी प्रक्रिया के।
- यह नीति अन्य राज्यों के लिए भी
प्रेरणा बन सकती है।
निष्कर्ष
मद्रास हाई कोर्ट
का यह फैसला विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों और गरिमा की रक्षा में एक बड़ा कदम
है। यह सुनिश्चित करता है कि कैदी, जो अभी
दोषी साबित नहीं हुए, अपने परिवार के दुख के समय में शामिल
हो सकें। यह फैसला न केवल कानूनी बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है,
जो न्याय प्रणाली में करुणा और समानता को बढ़ावा देता है।
केस विवरण:
- केस संख्या:
WPNo.14244/2025
- याचिकाकर्ता:
श्रीमती सारिकाथु निशा
- प्रतिवादी: जेल अधीक्षक और अन्य