9 अप्रैल 2025
दिल्ली हाईकोर्ट के
एक जज के बंगले में नकदी जलने की घटना के बाद देशभर में न्यायपालिका की जवाबदेही
और पारदर्शिता को लेकर बहस तेज हो गई है। आम जनता से लेकर विशेषज्ञों तक की मांग
है कि अब वक्त आ गया है जब जजों की संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा को कानूनी रूप दिया
जाए।
हाल ही में एक
रिपोर्ट से सामने आया है कि देश के 25 उच्च
न्यायालयों में काम कर रहे 769 न्यायाधीशों में से केवल 95
यानी सिर्फ 12.3 प्रतिशत जजों ने ही अपनी संपत्ति का ब्योरा वेबसाइट पर सार्वजनिक किया है।
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जरूर संपत्ति का विवरण साझा किया है, लेकिन उच्च न्यायालयों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। कई राज्यों के
हाईकोर्ट की वेबसाइट पर कोई जानकारी उपलब्ध ही नहीं है।
भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर उठते सवाल
सिर्फ
संपत्ति ही नहीं, बल्कि न्यायपालिका में
भाई-भतीजावाद को लेकर भी लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। विधि आयोग ने भी इस पर
चिंता जताते हुए नियुक्तियों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की सिफारिश की थी।
वर्ष 2009 में विधि आयोग की 230वी रिपोर्ट
में यह साफ तौर पर कहा गया था कि जजों को अपनी संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य
होनी चाहिए।
यह सिफारिश उस वक्त
आई थी जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंत्रियों और सांसदों को भी अपनी संपत्ति का
ब्योरा देने का निर्देश दिया था। हालांकि जजों की संपत्ति की घोषणा अब भी
स्वैच्छिक है, यानी वे चाहें तो जानकारी दें या न दें।
न्यायिक गरिमा और पारदर्शिता की जरूरत
विशेषज्ञों
का कहना है कि देश की न्यायिक व्यवस्था पर जनता का भरोसा तभी मजबूत रहेगा,
जब अदालतों में पारदर्शिता और नैतिक जवाबदेही हो। सुप्रीम कोर्ट
पहले ही कह चुका है कि न्यायपालिका को खुद को हर शक से परे रखना होगा। 1997
में एक फैसले में कोर्ट ने माना था कि न्यायिक संस्थानों में
पारदर्शिता जरूरी है, ताकि लोगों का विश्वास बना रहे।
आज जब सरकार और
प्रशासन से पारदर्शिता की अपेक्षा की जाती है, तो
न्यायपालिका को भी इससे अछूता नहीं रहना चाहिए।
क्या है आगे का रास्ता?
अब
देश में यह मांग तेज हो गई है कि संसद को एक ऐसा कानून बनाना चाहिए जो न्यायाधीशों
को संपत्ति की घोषणा के लिए बाध्य करे। यह कानून न सिर्फ पारदर्शिता बढ़ाएगा,
बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता को भी मजबूत करेगा।
संविधान के संरक्षक जजों को खुद नैतिक आदर्श स्थापित करने चाहिए।
जब तक न्यायपालिका
खुद को पारदर्शिता के दायरे में नहीं लाएगी, तब तक
भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों से पूरी तरह बचा नहीं जा सकेगा।
आपकी राय मायने रखती है!
क्या आपको लगता है कि जजों को अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करना कानूनी रूप से अनिवार्य होना चाहिए?
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