9 अप्रैल 2025
सुप्रीम
कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालतों का काम नैतिकता सिखाना
या नैतिक पुलिसिंग करना नहीं है। अदालत ने यह बात उस फैसले में कही, जिसमें 2016 में जैन मुनि तरुण सागर पर व्यंग्यात्मक
ट्वीट करने के मामले में संगीतकार विशाल ददलानी और राजनीतिक कार्यकर्ता तहसीन
पूनावाला पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा लगाया गया 10-10 लाख रुपये का जुर्माना रद्द कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान जस्टिस
अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि किसी पोस्ट को
व्यंग्य या आलोचना मानने के बाद सिर्फ इसलिए दंड नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह
किसी को असंवेदनशील लगी हो। जब तक यह स्पष्ट न हो कि किसी विशेष समुदाय की धार्मिक
भावना को ठेस पहुंची है, तब तक अभियोजन नहीं
चलाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने
हाईकोर्ट के निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि अदालतों को नैतिकता सिखाने का काम
नहीं दिया गया है। अदालत ने दोहराया कि भारतीय संविधान सभी नागरिकों को विचार
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।
क्या था मामला?
2016 में
विशाल ददलानी और तहसीन पूनावाला ने जैन मुनि तरुण सागर द्वारा हरियाणा
विधानसभा में दिए गए प्रवचन पर सोशल मीडिया पर कुछ ट्वीट किए थे। इन ट्वीट्स को
लेकर उन पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगा। पंजाब और हरियाणा
हाईकोर्ट ने दोनों पर 10 लाख रुपये जुर्माना लगाया था,
जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।