इलाहाबाद हाईकोर्ट
ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी कर्मचारी पर आपराधिक मामला चल रहा
है,
तो जब तक वह मामला कोर्ट में लंबित है, तब तक
उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई नहीं की जा सकती। कोर्ट ने यह फैसला कौशांबी जिले में
तैनात रहे ट्रैफिक उप निरीक्षक (TI) कमलेश पांडेय की याचिका
पर सुनाया।
कमलेश पांडेय पर पाँच हजार रुपये रिश्वत लेने का आरोप है। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत
केस दर्ज हुआ था और एफआईआर के बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। मामले की चार्जशीट
विशेष अदालत में दाखिल हो चुकी है।
इसी बीच पुलिस
विभाग ने उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी थी और उन्हें चार्जशीट भी थमा दी
गई थी,
जिसमें बर्खास्तगी की सिफारिश की गई थी।
कमलेश पांडेय ने इस
कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट
ने विभागीय कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी है और राज्य सरकार से चार हफ्तों के
अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है।
क्या है महत्व:
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ जब
तक कोर्ट में आपराधिक मामला चल रहा हो, तब तक विभाग उसे
विभागीय रूप से सजा नहीं दे सकता। यह एक कानूनी और नैतिक रूप से अहम फैसला है,
जिससे भविष्य में कई मामलों में स्पष्टता आएगी।
क्या है यह मामला?
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में 'कमलेश पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य' के रूप में दर्ज है। कमलेश पांडे, जो कौशांबी जिले में ट्रैफिक उप निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे, पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि उन्होंने ट्रैफिक चेकिंग के दौरान वाहनों से अवैध वसूली की और 5,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़े गए। यह मामला वाराणसी की विशेष अदालत में विचाराधीन है, और उन्हें जमानत मिल चुकी है। इसी बीच, उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी शुरू की गई थी। हाईकोर्ट ने इस विभागीय कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाते हुए राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
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