इंडिया जस्टिस रिपोर्ट का नया संस्करण एक चिंताजनक सच्चाई को सामने लाता है –
हमारे देश में आम लोगों को समय पर और सस्ता न्याय मिलना अब भी एक बड़ी चुनौती है।
यह रिपोर्ट टाटा ट्रस्ट और कुछ सामाजिक संगठनों ने मिलकर तैयार की है। इसमें देश
के सभी राज्यों की 24 मापदंडों के आधार पर रैंकिंग की गई है। ये मापदंड
न्याय व्यवस्था के चार हिस्सों
से जुड़े हैं:
1. पुलिस
2. न्यायपालिका (कोर्ट)
3. जेल
4. विधिक सहायता (कानूनी मदद)
कौन से राज्य सबसे अच्छे और सबसे खराब हैं?
- सबसे
अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं:
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु बड़े और मझोले राज्यों में सबसे ऊपर हैं। - ये राज्य
कानून व्यवस्था, संसाधनों के उपयोग और न्याय देने के मामले में
बेहतर हैं।
- सबसे
कमजोर प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं:
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और राजस्थान सबसे नीचे हैं यहां न्याय व्यवस्था कमजोर, अव्यवस्थित और संसाधनों की भारी कमी से जूझ रही है।
समस्याएं कहां-कहां हैं?
1. पुलिस – देश की पुलिस में 23%
पद खाली हैं।
फोरेंसिक साइंस (जांच) के क्षेत्र में
50%
पद खाली हैं।
30,000 से ज़्यादा मामलों
में फोरेंसिक जांच अब भी बाकी है।
2. जेलें – जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से
131%
ज़्यादा
है।
इनमें से 76%
कैदी अभी भी
विचाराधीन हैं यानी कोर्ट से उनका फैसला नहीं हुआ है।
जेल स्टाफ के 30%
पद खाली
हैं।
3. न्यायपालिका (कोर्ट) – देश में हर 10
लाख लोगों पर सिर्फ
15
जज
हैं, जबकि जरूरत 50
जजों
की है।
इससे अदालतों में मुकदमे लंबित हो जाते हैं।
4. विधिक सहायता (Legal Aid)
–
गरीब और कमजोर वर्ग को कानूनी मदद देने के लिए जो
पैरालीगल वॉलंटियर
होते हैं, उनकी संख्या लगातार घट रही है।
महिलाएं और सामाजिक समानता
- न्याय
व्यवस्था महिलाओं और वंचित वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व
नहीं देती।
- पुलिस
में महिलाओं के लिए तय 33% कोटे के बावजूद, वरिष्ठ पदों पर सिर्फ 8%
महिलाएं
हैं।
- न्यायपालिका
में निचले स्तर पर 38% और हाईकोर्ट में सिर्फ 14%
महिलाएं
हैं।
- आरक्षण
के नियमों का पालन सिर्फ कर्नाटक की न्यायपालिका ही ठीक से करती है।
समस्या की जड़ क्या है?
- देश की
न्याय व्यवस्था अब भी औपनिवेशिक (ब्रिटिश शासन) सोच
से बंधी हुई है – जिसमें
जनता की सेवा से ज़्यादा "नियंत्रण और दमन" पर जोर है।
- कानून की
शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता भी कमजोर है – जिससे अधिकारियों को संविधान और
कानून की अच्छी समझ नहीं हो पाती।
निष्कर्ष
भारत में न्याय की व्यवस्था अभी भी कमजोर, बिखरी हुई और संसाधनों की भारी कमी से ग्रसित
है। जब तक पुलिस, कोर्ट, जेल और कानूनी सहायता के हर हिस्से को सुधारने के लिए
सशक्त कदम नहीं उठाए जाएंगे – तब तक आम जनता को समय पर और सुलभ न्याय मिल पाना
मुश्किल है।