सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का भाग 2 निष्पादन (Execution), रेखांकित करता है तथा भाग 2a में धारा 36 व 37 को सम्मिलित किया गया है तथा धारा 36 व 37 में "साधारण (General)" को रखा गया है।
धारा 36:
निष्पादन की प्रक्रिया (Provision for Execution of Decrees)
निष्पादन का अधिकार
(Right
to Execution)
- धारा 36
यह स्पष्ट करती है कि निष्पादन (Execution) उसी प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा जो वाद (Suit) की कार्यवाही के दौरान अपनाई गई थी।
- निष्पादन प्रक्रिया "सभी प्रकार की डिक्री"
और "आदेशों"
पर समान रूप से लागू होती है।
- यदि कोई व्यक्ति न्यायालय से
डिक्री प्राप्त करता है, तो उसे लागू करने
के लिए वह निष्पादन याचिका (Execution Petition) दायर
कर सकता है।
निष्पादन की
विधियां (Modes of Execution)
निष्पादन
निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
1. संपत्ति
की कुर्की (Attachment of Property):
o यदि
प्रतिवादी (Judgment Debtor) भुगतान करने में असमर्थ
या अनिच्छुक हो, तो उसकी संपत्ति कुर्क की जा सकती है।
2. संपत्ति
की नीलामी (Auction of Property):
o कुर्क
की गई संपत्ति की नीलामी की जा सकती है और उससे प्राप्त राशि डिक्रीधारी (Decree
Holder) को दी जाती है।
3. आदेश
के अनुपालन का बलपूर्वक पालन (Compelling Obedience to
Orders):
o यदि
डिक्री में किसी विशेष कार्य को करने का आदेश दिया गया हो,
तो उसे निष्पादित कराया जा सकता है।
4. गिरफ्तारी
और कारावास (Arrest and Detention):
o यदि
प्रतिवादी जानबूझकर आदेश का पालन नहीं करता, तो उसे
गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है।
उदाहरण:
मान लीजिए,
A ने B के खिलाफ ₹5 लाख
का वाद दायर किया और न्यायालय ने A के पक्ष में डिक्री पारित
की। यदि B भुगतान नहीं करता है, तो A
धारा 36 के तहत निष्पादन की मांग कर सकता है
और न्यायालय B की संपत्ति कुर्क कर सकता है।
संबंधित महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
प्रेमनाथ कपूर बनाम
दिल्ली विकास प्राधिकरण, 2015 (Premnath Kapoor vs DDA, 2015)
न्यायालय:
दिल्ली उच्च न्यायालय
मुख्य विषय: निष्पादन प्रक्रिया में
न्यायालय की शक्तियाँ
निर्णय:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 36 CPC यह सुनिश्चित करती है कि निष्पादन की प्रक्रिया वही होगी जो वाद की
कार्यवाही में अपनाई गई थी। यदि किसी पक्षकार को डिक्री प्राप्त हुई है और
प्रतिवादी जानबूझकर उसका पालन नहीं कर रहा है, तो न्यायालय
उसके खिलाफ संपत्ति कुर्की, नीलामी, गिरफ्तारी या बलपूर्वक अनुपालन का आदेश दे सकता
है।
धारा 37:
निष्पादन के लिए सक्षम न्यायालय (Court Competent to Execute
Decrees)
निष्पादन किस
न्यायालय द्वारा किया जाएगा?
धारा 37
यह स्पष्ट करती है कि डिक्री का निष्पादन निम्नलिखित न्यायालयों में
से किसी एक द्वारा किया जा सकता है:
1. वह
न्यायालय जिसने डिक्री पारित की (Court which Passed the
Decree):
o मूल
रूप से वाद (Suit) जिस न्यायालय में दायर हुआ था और
जिसने डिक्री पारित की, वह इसे निष्पादित करने के लिए सक्षम
होता है।
2. अन्य
सक्षम न्यायालय (Court to which it is Sent for Execution):
o यदि
डिक्रीधारी की सुविधा के लिए निष्पादन किसी अन्य न्यायालय में करवाना आवश्यक हो,
तो मूल न्यायालय उस न्यायालय को डिक्री स्थानांतरित कर सकता है।
किस प्रकार के
न्यायालय निष्पादन कर सकते हैं?
धारा 37
के अनुसार, निष्पादन निम्नलिखित न्यायालयों
में से किसी एक द्वारा किया जा सकता है:
1. मूल
न्यायालय (Original Court) जिसने डिक्री पारित की।
2. कोई
अन्य न्यायालय (Transferee Court) जिसे निष्पादन के लिए मामला स्थानांतरित किया गया हो।
3. वह
न्यायालय जिसके क्षेत्राधिकार में प्रतिवादी रहता है (Court
within whose jurisdiction the Judgment Debtor Resides or has Property)
4. अधीनस्थ
न्यायालय (Subordinate Court) यदि मुख्य न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय को निष्पादन के लिए अधिकृत किया
गया हो।
उदाहरण:
मान लीजिए,
दिल्ली के एक न्यायालय ने A के पक्ष में
डिक्री पारित की, लेकिन प्रतिवादी B की
संपत्ति मुंबई में है। A धारा 37 के
तहत दिल्ली न्यायालय से मुंबई न्यायालय में डिक्री भेजने का अनुरोध कर सकता है
ताकि उसे मुंबई में निष्पादित किया जा सके।
संबंधित महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
1. कौशल
कुमार गुप्ता बनाम विजय कुमार, 1996 (Kaushal Kumar Gupta vs Vijay Kumar,
1996)
न्यायालय:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
मुख्य विषय: धारा 37
- निष्पादन के लिए सक्षम न्यायालय
निर्णय:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि यदि डिक्री
पारित करने वाला न्यायालय निष्पादन के लिए सक्षम नहीं है, तो डिक्रीधारी किसी अन्य सक्षम न्यायालय में निष्पादन की मांग कर सकता है।
यदि प्रतिवादी की संपत्ति किसी अन्य राज्य में स्थित है, तो मूल
न्यायालय को निष्पादन प्रक्रिया के लिए वहां की सक्षम अदालत को डिक्री स्थानांतरित
करनी होगी।
2. कुंवर
बहादुर सिंह बनाम राज्य सरकार, 1978 (Kunwar Bahadur Singh vs State
Government, 1978)
न्यायालय:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय
मुख्य विषय: निष्पादन प्रक्रिया में
न्यायालय की शक्तियाँ
निर्णय:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि डिक्रीधारी की
निष्पादन याचिका दी गई शर्तों के अनुसार पूरी नहीं की जा रही है, तो न्यायालय को उचित कदम उठाने चाहिए। संपत्ति कुर्की और गिरफ्तारी
जैसे उपाय अंतिम साधन होने चाहिए, लेकिन यदि
प्रतिवादी जानबूझकर भुगतान नहीं कर रहा हो, तो ये उपाय
आवश्यक हो सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
- धारा 36:
डिक्री निष्पादन की प्रक्रिया को परिभाषित करती है और बताती है
कि यह उसी प्रकार किया जाएगा जैसे वाद की कार्यवाही की गई थी।
- धारा 37:
यह निर्धारित करती है कि निष्पादन का अधिकार किस न्यायालय को
होगा – मूल न्यायालय, स्थानांतरित न्यायालय, या वह न्यायालय जहां प्रतिवादी की संपत्ति स्थित है।
“इस प्रकार,
धारा 36 और 37 न्यायालय
के आदेशों को प्रभावी बनाने और न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।“
सिविल प्रक्रिया
संहिता, 1908 (CPC) – भाग 2: निष्पादन (Execution) से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
1. निष्पादन
(Execution) क्या होता है?
उत्तर:
निष्पादन वह विधि है जिसके द्वारा न्यायालय द्वारा पारित डिक्री या आदेश को लागू
किया जाता है। यदि प्रतिवादी (Judgment Debtor) स्वेच्छा
से आदेश का पालन नहीं करता, तो न्यायालय निष्पादन की
प्रक्रिया के माध्यम से उसे बाध्य करता है।
2. सिविल
प्रक्रिया संहिता (CPC) की कौन-कौन सी धाराएँ निष्पादन से
संबंधित हैं?
उत्तर:
निष्पादन से मुख्य रूप से धारा 36 से 74 और आदेश 21 (Order 21) संबंधित हैं। इनमें धारा 36
और 37 निष्पादन की प्रक्रिया और सक्षम
न्यायालय को परिभाषित करती हैं।
3. धारा 36
CPC क्या कहती है?
उत्तर:
धारा 36 के अनुसार,
निष्पादन उसी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा जो वाद की
कार्यवाही के दौरान अपनाई गई थी। यह डिक्री और आदेश दोनों पर समान रूप से लागू
होती है।
4. निष्पादन
की कौन-कौन सी विधियाँ (Modes of Execution) होती हैं?
उत्तर:
निष्पादन निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
1. संपत्ति
की कुर्की (Attachment of Property)
2. संपत्ति
की नीलामी (Auction of Property)
3. गिरफ्तारी
और कारावास (Arrest and Detention)
4. आदेश
के अनुपालन का बलपूर्वक पालन (Compelling Obedience to
Orders)
5. यदि
प्रतिवादी (Judgment Debtor) भुगतान नहीं करता है, तो क्या उपाय हैं?
उत्तर:
यदि प्रतिवादी जानबूझकर भुगतान नहीं करता है, तो
न्यायालय उसकी संपत्ति कुर्क करके नीलाम कर सकता है या उसे जेल भेज सकता है।
6. धारा 37
CPC के अंतर्गत निष्पादन किस न्यायालय द्वारा किया जाएगा?
उत्तर:
धारा 37 के अनुसार,
निष्पादन निम्नलिखित न्यायालयों में से किसी एक द्वारा किया जा सकता
है:
1. वह
न्यायालय जिसने डिक्री पारित की।
2. कोई
अन्य न्यायालय जिसे निष्पादन के लिए मामला स्थानांतरित किया गया हो।
3. वह
न्यायालय जिसके क्षेत्राधिकार में प्रतिवादी रहता है या जहां उसकी संपत्ति स्थित
है।
7. क्या
निष्पादन एक से अधिक न्यायालयों में किया जा सकता है?
उत्तर:
हां,
V.D. Modi बनाम R.A. Rehman (1970) केस में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निष्पादन प्रक्रिया एक से अधिक
न्यायालयों में चल सकती है।
8. निष्पादन
के लिए कौन-सी याचिका दायर करनी होती है?
उत्तर:
निष्पादन के लिए Execution Petition
(निष्पादन याचिका) दायर करनी होती है।
9. निष्पादन
प्रक्रिया में कितना समय लगता है?
उत्तर:
निष्पादन की प्रक्रिया की अवधि डिक्री के प्रकार, न्यायालय
की प्रक्रिया और प्रतिवादी के व्यवहार पर निर्भर करती है।
10. यदि
निष्पादन आदेश का पालन नहीं किया जाता, तो क्या होगा?
उत्तर:
यदि प्रतिवादी निष्पादन आदेश का पालन नहीं करता, तो
न्यायालय संपत्ति कुर्क कर सकता है, नीलामी कर सकता है,
या गिरफ्तारी का आदेश दे सकता है।
11. क्या
निष्पादन के दौरान किसी तीसरे पक्ष (Third Party) की संपत्ति
कुर्क की जा सकती है?
उत्तर:
नहीं,
न्यायालय केवल उस संपत्ति को कुर्क कर सकता है जो प्रतिवादी की है
या जिसे कानूनी रूप से उसके स्वामित्व में माना गया हो।
12. निष्पादन
प्रक्रिया में कौन-कौन से महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (Case Laws) हैं?
उत्तर:
1. Premnath
Kapoor बनाम DDA (2015) – निष्पादन
प्रक्रिया में न्यायालय की शक्तियाँ।
2. Kaushal
Kumar Gupta बनाम Vijay Kumar (1996) –
निष्पादन के लिए सक्षम न्यायालय।
3. Kunwar
Bahadur Singh बनाम राज्य सरकार (1978)
– संपत्ति कुर्की और गिरफ्तारी से संबंधित।
13. निष्पादन
प्रक्रिया को संविधान में कौन-कौन से अनुच्छेद प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
1. अनुच्छेद
14
– निष्पादन प्रक्रिया निष्पक्ष और समान होनी चाहिए।
2. अनुच्छेद
21
– निष्पादन प्रक्रिया उचित होनी चाहिए और इसमें उचित प्रक्रिया (Due
Process) का पालन किया जाना चाहिए।
14. क्या
अपील लंबित रहने पर निष्पादन किया जा सकता है?
उत्तर:
हां,
लेकिन निष्पादन रोकने के लिए अपीलकर्ता को सुपरसीड (Stay)
आदेश प्राप्त करना होगा।
15. क्या
डिक्रीधारी निष्पादन के दौरान किसी अन्य व्यक्ति को प्रतिनिधि नियुक्त कर सकता है?
उत्तर:
हां,
डिक्रीधारी निष्पादन के दौरान वकील या अधिकृत प्रतिनिधि नियुक्त कर
सकता है।
16. क्या एक
विदेशी डिक्री भारत में निष्पादित की जा सकती है?
उत्तर:
हां,
धारा 44A CPC के तहत यदि वह डिक्री
किसी "रिकॉग्नाइज्ड जूरीडिक्शन" (Recognized Jurisdiction) से आई हो।
17. क्या
निष्पादन प्रक्रिया के दौरान समझौता किया जा सकता है?
उत्तर:
हां,
यदि दोनों पक्षकार समझौता करना चाहते हैं, तो
निष्पादन कार्यवाही को रोका जा सकता है।
18. क्या
कोई डिक्री निष्पादन के बिना भी प्रभावी हो सकती है?
उत्तर:
नहीं,
जब तक निष्पादन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, डिक्री
केवल एक आदेश मात्र होती है, जिसका क्रियान्वयन आवश्यक है।
19. निष्पादन
में देरी होने पर डिक्रीधारी क्या कर सकता है?
उत्तर:
यदि निष्पादन में अनुचित विलंब हो रहा है, तो
डिक्रीधारी उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर सकता है।
20. निष्पादन
की कार्यवाही का न्यायालय में कौन विरोध कर सकता है?
उत्तर:
1. प्रतिवादी
(Judgment
Debtor)।
2. कोई
तीसरा पक्ष जिसकी संपत्ति गलती से कुर्क हो रही हो।
3. यदि
निष्पादन में कोई अनियमितता हो तो न्यायालय स्वयं।