भारतीय
आपराधिक न्याय प्रणाली में, अभियुक्त को निष्पक्ष
सुनवाई का अधिकार एक मूलभूत सिद्धांत है। दंड प्रक्रिया संहिता,
1973 (CrPC) की धारा 243 और भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 266
अभियुक्त को बचाव पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान
करती हैं। ये प्रावधान अभियुक्त को अपने बचाव में साक्षी, दस्तावेज,
या अन्य सामग्री पेश करने की अनुमति देते हैं, जिससे न्याय के सिद्धांतों को सुनिश्चित किया जा सके। इस लेख में, हम इन दोनों धाराओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, उनकी
समानताओं, अंतरों, और संबंधित न्यायिक
निर्णयों पर चर्चा करेंगे।
दंड
प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 243: अवलोकन
धारा
243 अभियुक्त को बचाव पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार देती है। इस
धारा के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. बचाव
प्रस्तुत करने का अवसर: अभियुक्त को अपना बचाव
प्रस्तुत करने और साक्ष्य पेश करने के लिए कहा जाता है। यदि अभियुक्त कोई लिखित
बयान देता है, तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में दाखिल करता है।
2. साक्षी
या दस्तावेज के लिए आवेदन: यदि अभियुक्त अपनी
प्रतिरक्षा शुरू करने के बाद किसी साक्षी को बुलाने या किसी दस्तावेज/वस्तु को पेश
करने के लिए मजिस्ट्रेट से आदेशिका जारी करने का अनुरोध करता है, तो मजिस्ट्रेट इसे जारी करेगा। हालांकि, यह अनुरोध
अस्वीकार किया जा सकता है यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि यह अनुरोध तंग करने,
विलंब करने, या न्याय को विफल करने के
उद्देश्य से किया गया है। इस अस्वीकृति का कारण लिखित रूप में दर्ज किया जाता है।
3. प्रतिपरीक्षा
का अवसर: यदि अभियुक्त ने पहले किसी साक्षी से
प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे ऐसा करने का अवसर मिला है, तो
उस साक्षी को दोबारा बुलाने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, सिवाय
इसके कि मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो कि यह न्याय के लिए आवश्यक है।
4. साक्षी
के व्यय: मजिस्ट्रेट साक्षी को बुलाने से पहले यह
अपेक्षा कर सकता है कि साक्षी के उचित व्यय को न्यायालय में जमा किया जाए।
भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 266:
अवलोकन
BNSS
की धारा 266 CrPC की
धारा 243 का एक आधुनिक संस्करण है, जिसमें
कुछ अतिरिक्त प्रावधान जोड़े गए हैं। इस धारा के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. बचाव
प्रस्तुत करने का अधिकार: CrPC की धारा 243
के समान, अभियुक्त को अपना बचाव प्रस्तुत करने
और साक्ष्य पेश करने का अवसर दिया जाता है। लिखित बयान को अभिलेख में दाखिल किया
जाता है।
2. साक्षी
या दस्तावेज के लिए आवेदन: यह प्रावधान भी CrPC
के समान है, जिसमें मजिस्ट्रेट को साक्षी या
दस्तावेज के लिए आदेशिका जारी करने का अधिकार है। अस्वीकृति के लिए कारण लिखित रूप
में दर्ज किए जाते हैं।
3. प्रतिपरीक्षा
का अवसर: यदि अभियुक्त ने पहले साक्षी से
प्रतिपरीक्षा की है या उसे अवसर मिला है, तो साक्षी को
दोबारा बुलाने की आवश्यकता नहीं होगी, सिवाय इसके कि यह
न्याय के लिए आवश्यक हो।
4. इलेक्ट्रॉनिक
माध्यम से साक्ष्य: BNSS में एक नया प्रावधान
जोड़ा गया है, जो साक्षी की परीक्षा को राज्य सरकार द्वारा
अधिसूचित स्थान पर श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (ऑडियो-वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) के माध्यम से करने की अनुमति देता है।
5. साक्षी
के व्यय: CrPC की तरह, मजिस्ट्रेट
साक्षी के उचित व्यय को जमा करने की मांग कर सकता है।
प्रमुख अंतर
BNSS
की धारा 266 में श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रॉनिक
माध्यम का प्रावधान एक महत्वपूर्ण नवाचार है, जो तकनीकी
प्रगति को दर्शाता है। यह प्रावधान साक्षियों की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता को कम
करता है, जिससे समय और संसाधनों की बचत होती है। यह विशेष
रूप से उन मामलों में उपयोगी है जहां साक्षी दूरस्थ स्थान पर हैं या उनकी उपस्थिति
जोखिम भरी हो सकती है।
न्यायिक निर्णय और व्याख्या
CrPC
की धारा 243 और BNSS की
धारा 266 से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
निम्नलिखित हैं:
1. Kalyan
Chandra Sarkar v. Rajesh Ranjan (2005):
o निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 243 अभियुक्त को
बचाव में साक्ष्य पेश करने का पूर्ण अधिकार देती है। यदि मजिस्ट्रेट इस अधिकार को
अनुचित रूप से प्रतिबंधित करता है, तो यह निष्पक्ष सुनवाई के
सिद्धांत का उल्लंघन है।
o प्रभाव:
यह निर्णय अभियुक्त के बचाव के अधिकार को मजबूत करता है और
मजिस्ट्रेट को अनुरोधों की उचित जांच करने का निर्देश देता है।
2. V.K.
Sasikala v. State (2012):
o निर्णय:
अदालत ने स्पष्ट किया कि मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि
साक्षी को बुलाने का अनुरोध विलंब या तंग करने के उद्देश्य से न हो। यदि अनुरोध
न्याय के हित में है, तो इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।
o प्रभाव: इस निर्णय ने धारा 243 के तहत मजिस्ट्रेट की विवेकाधीन शक्ति को संतुलित करने पर जोर दिया।
3. टेक्नोलॉजी
का उपयोग (BNSS के संदर्भ में):
o BNSS
धारा 266 के तहत इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से
साक्ष्य प्रस्तुत करने का प्रावधान हाल के वर्षों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के
उपयोग से प्रेरित है। State of Maharashtra v. Dr. Praful B. Desai
(2003) में सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से
साक्ष्य रिकॉर्ड करने की वैधता को मान्यता दी थी, जो BNSS
के प्रावधान को समर्थन देता है।
धारा
243
और 266 का महत्व
ये
दोनों धाराएँ भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता और पारदर्शिता
सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये अभियुक्त को न केवल अपने
बचाव में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर देती हैं, बल्कि
यह भी सुनिश्चित करती हैं कि मजिस्ट्रेट इस प्रक्रिया में संतुलन बनाए रखे। BNSS
का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से साक्ष्य प्रस्तुत करने का प्रावधान
तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बिठाने का एक कदम है, जो विशेष
रूप से आधुनिक युग में उपयोगी है।
निष्कर्ष
CrPC
की धारा 243 और BNSS
की धारा 266 अभियुक्त के बचाव के अधिकार
को मजबूत करती हैं, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21
(जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अनुरूप है। BNSS
का नया प्रावधान, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से
साक्ष्य की अनुमति देता है, न्याय प्रक्रिया को और अधिक कुशल
और सुलभ बनाता है। हालांकि, मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना
होगा कि इन प्रावधानों का दुरुपयोग न हो, और न्याय के हित
में संतुलन बनाए रखा जाए।