नई दिल्ली |
6 अप्रैल 2025
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को बाल
कल्याण समितियों (CWC) और किशोर न्याय बोर्डों
(JJB) में लंबे समय से लंबित नियुक्तियों को लेकर
सख्त लहजे में फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा, “दो साल से JJB
नहीं चल रहा, तो इन बच्चों का क्या हो रहा है?
उनकी देखभाल और न्याय की जिम्मेदारी कौन निभा रहा है?”
सरकार के वादे पर
कोर्ट नाराज़
दिल्ली हाईकोर्ट के
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की
पीठ ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि फरवरी में गृह सचिव ने
हलफनामा देकर दो हफ्तों में नियुक्तियां पूरी करने का वादा किया था। लेकिन अब
अप्रैल आ गया और कोई प्रगति नहीं हुई।
कोर्ट ने तीखे
शब्दों में पूछा — “क्या इतने
जरूरी पदों की नियुक्ति के लिए भी सरकार को बार-बार जगाना पड़ेगा?”
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि चयन समिति ने सितंबर 2024
में नाम सुझा दिए थे, फिर भी अंतिम सूची
जारी नहीं की गई।
बच्चों का भविष्य
अधर में
अदालत ने कहा कि JJB
और CWC जैसी संस्थाएं कोई मजाक नहीं हैं। इनके
बिना हजारों नाबालिगों के मामले लटके पड़े हैं। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया
कि जब बोर्ड और समितियां ही नहीं हैं, तो बच्चों को न्याय
कैसे मिल रहा है?
यह स्थिति न सिर्फ न्याय में देरी है, बल्कि बच्चों
के अधिकारों का हनन भी है।
सोमवार तक मांगा
जवाब
केंद्र सरकार की ओर
से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कोर्ट से कुछ समय मांगा,
ताकि वह पूरी जानकारी के साथ जवाब दे सकें। अदालत ने उनकी यह मांग
मानते हुए अगली सुनवाई दिनांक 7/4/2025 दिन सोमवार तक के लिए टाल दी।
बचपन बचाओ आंदोलन
की याचिका से खुला मामला
यह मामला तब उजागर
हुआ जब एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में बताया गया कि CWC
और JJB के सदस्यों की नियुक्ति में देरी की
वजह से हजारों नाबालिगों के केस अटके हुए हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता एच.एस.
फूलका ने कोर्ट में दलील दी कि यह सरकारी उदासीनता बच्चों के अधिकारों का
सीधा उल्लंघन है।
“इस पूरे मामले ने
एक बार फिर यह दिखा दिया कि बच्चों के अधिकारों और न्याय को लेकर सरकारी तंत्र में
गंभीर लापरवाही बरती जा रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सोमवार को
केंद्र सरकार कोर्ट में क्या ठोस जवाब पेश करती है।“