भारतीय संविधान के प्रस्तावना में प्रयुक्त शब्द 'बंधुत्व' का महत्व एवं गहन विश्लेषण
भारतीय संविधान की
प्रस्तावना (Preamble) देश के आदर्शों और मूल्यों का
प्रतिबिंब है। इसमें उल्लिखित 'बंधुत्व' (Fraternity)
का सिद्धांत भारतीय समाज की सामाजिक संरचना और लोकतांत्रिक मूल्यों
को मजबूती प्रदान करता है। 'बंधुत्व' का
अर्थ है – सभी नागरिकों में परस्पर भाईचारा, सम्मान और
सहिष्णुता की भावना को विकसित करना ताकि समाज में प्रेम और एकता बनी रहे। डॉ.
भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में यह स्पष्ट किया था कि बंधुत्व का अभिप्राय
सिर्फ एक औपचारिक आदर्श से नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा भाव है
जो समाज को विभाजन और भेदभाव से बचाकर एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करता है।
प्रस्तावना में बंधुत्व का स्थान और महत्व
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है:
"हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी,
धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के
लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक; विचार,
अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता; प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त
कराने के लिए; तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर इस
संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते
हैं।"
इसमें स्पष्ट रूप
से यह उल्लेख किया गया है कि बंधुत्व (Fraternity) का उद्देश्य व्यक्ति की गरिमा (Dignity of the Individual) और राष्ट्र की एकता और अखंडता (Unity and Integrity of the Nation)
को सुनिश्चित करना है। यह शब्द भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को दर्शाता
है, जहाँ विभिन्न जातियों, धर्मों,
भाषाओं और संस्कृतियों के लोग आपसी सहयोग और सद्भाव से रहते हैं।
बंधुत्व का व्यापक अर्थ और उद्देश्य
'बंधुत्व'
का अर्थ केवल जाति, धर्म और भाषा की दीवारों
को तोड़ना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा सामाजिक आदर्श है,
जहाँ सभी नागरिक समानता, स्वतंत्रता और न्याय
के साथ परस्पर भाईचारे की भावना से जीते हैं। बंधुत्व का महत्व भारत के बहुलतावादी
समाज में और अधिक बढ़ जाता है, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों और
समुदायों के लोग रहते हैं।
1. सामाजिक
समरसता: बंधुत्व का मुख्य उद्देश्य समाज में
सौहार्द और समरसता को बनाए रखना है ताकि सभी नागरिक परस्पर प्रेम और सम्मान से
एक-दूसरे के साथ रहें।
2. असमानता
और भेदभाव का उन्मूलन: बंधुत्व की भावना जातिवाद,
सांप्रदायिकता और क्षेत्रवाद जैसी बुराइयों को समाप्त करने में
सहायक होती है। यह समाज में समानता और न्याय को प्रोत्साहित करती है।
3. राष्ट्रीय
एकता और अखंडता: बंधुत्व का उद्देश्य राष्ट्र की एकता
और अखंडता को बनाए रखना है ताकि किसी भी प्रकार की सामाजिक या सांस्कृतिक विविधता
राष्ट्र की अखंडता को प्रभावित न कर सके।
संविधान में बंधुत्व का संवैधानिक आधार
भारतीय संविधान में
बंधुत्व का आदर्श केवल प्रस्तावना तक सीमित नहीं है, बल्कि
इसे मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक सिद्धांतों में भी स्थान दिया गया है।
1. अनुच्छेद
14 – विधि के समक्ष समता (Equality Before Law)
अनुच्छेद 14
सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समता का अधिकार प्रदान करता है। यह
अनुच्छेद भेदभाव के खिलाफ है और हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार प्रदान करता
है। समता और बंधुत्व का आपसी संबंध है, क्योंकि जब व्यक्ति
समानता महसूस करता है, तो उसमें बंधुत्व की भावना स्वतः
उत्पन्न होती है।
2. अनुच्छेद
15 – भेदभाव का निषेध (Prohibition of
Discrimination)
अनुच्छेद 15
धर्म, जाति, लिंग,
जन्म स्थान या किसी भी आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है। यह
प्रावधान बंधुत्व को मजबूत करता है क्योंकि समाज में समता और न्याय की स्थापना से
ही परस्पर भाईचारा और सौहार्द्र उत्पन्न होता है।
बंधुत्व से संबंधित न्यायिक व्याख्या और महत्वपूर्ण फैसले
1. केसवानंद
भारती बनाम केरल राज्य (1973)
इस ऐतिहासिक मामले
में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषित किया कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित
न्याय,
समता और बंधुत्व संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और इन्हें
संशोधन द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता।
2. मिनर्वा
मिल्स बनाम भारत संघ (1980)
इस मामले में
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बंधुत्व का उद्देश्य समाज में सामाजिक और आर्थिक
विषमताओं को समाप्त करना और सभी नागरिकों में समानता और न्याय को बढ़ावा देना है।
3. सरला
मुद्गल बनाम भारत संघ (1995)
इस मामले में
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व एक-दूसरे के पूरक हैं और
समाज में बंधुत्व की भावना को बनाए रखना देश की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक है।
4. इंडियन
यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (सबरीमाला मामला, 2018)
इस ऐतिहासिक निर्णय
में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि बंधुत्व का सिद्धांत धार्मिक परंपराओं
में भेदभाव को समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है और महिलाओं को बराबरी का
दर्जा देता है।
बंधुत्व और राष्ट्रीय एकता का संबंध
बंधुत्व और
राष्ट्रीय एकता का गहरा संबंध है। भारतीय समाज विविधताओं से भरा हुआ है – धर्म,
जाति, भाषा और संस्कृति के आधार पर विविधताएँ
विद्यमान हैं। इन विविधताओं के बावजूद, यदि बंधुत्व की भावना
को मजबूत किया जाए, तो यह समाज को एकता और अखंडता के सूत्र
में पिरो सकता है। बंधुत्व का उद्देश्य समाज में आपसी भाईचारे, प्रेम और विश्वास को बढ़ावा देना है ताकि किसी भी प्रकार की असमानता और
भेदभाव को समाप्त किया जा सके।
के. एम. मुंशी के अनुसार व्यक्ति के गौरव का अर्थ
कन्हैयालाल
माणिकलाल मुंशी (K. M. Munshi), जो भारतीय
संविधान सभा के एक प्रमुख सदस्य और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने
वाले व्यक्ति थे, ने व्यक्ति के गौरव (Dignity of the
Individual) को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित बंधुत्व
(Fraternity) से जोड़कर देखा।
मुंशी के अनुसार व्यक्ति के गौरव का अर्थ और महत्व
1. व्यक्ति की गरिमा और आत्मसम्मान:
मुंशी के अनुसार, व्यक्ति का गौरव केवल बाहरी सम्मान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस आत्मसम्मान और गरिमा को दर्शाता है जो व्यक्ति को समानता, स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त करने के बाद प्राप्त होती है। उन्होंने यह तर्क दिया कि जब समाज में बंधुत्व और समता का वातावरण होगा, तभी व्यक्ति का वास्तविक गौरव सुरक्षित रह पाएगा।2. बंधुत्व और व्यक्ति की गरिमा का संबंध:
के. एम. मुंशी का मानना था कि बंधुत्व का उद्देश्य समाज में सामाजिक समरसता और सौहार्द को बनाए रखना है। जब व्यक्ति को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता का समान अवसर मिलता है और वह समाज में बिना किसी भेदभाव के रह सकता है, तभी वह गौरव और गरिमा का अनुभव करता है।3. व्यक्ति का गौरव – संविधान का मूल उद्देश्य:
मुंशी ने संविधान सभा में कहा था कि भारतीय समाज में जाति, धर्म, भाषा और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद व्यक्ति का गौरव बनाए रखना संविधान का मूल उद्देश्य है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि व्यक्ति का गौरव सुरक्षित नहीं रहेगा, तो बंधुत्व का आदर्श अधूरा रह जाएगा।4. व्यक्ति के गौरव का संवैधानिक आधार:
मुंशी के अनुसार, अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करता है। इसके अलावा, मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक सिद्धांतों का उद्देश्य भी व्यक्ति के गौरव को बनाए रखना है।5. राष्ट्र की एकता और व्यक्ति की गरिमा का संबंध:
मुंशी ने यह तर्क दिया कि व्यक्ति की गरिमा तभी सुनिश्चित हो सकती है जब राष्ट्र में एकता और अखंडता बनी रहे। समाज में आपसी सहयोग, भाईचारा और सम्मान का वातावरण व्यक्ति को गौरव का अनुभव कराता है।“के. एम.
मुंशी के अनुसार, व्यक्ति का गौरव भारतीय लोकतंत्र का आधार
है। बंधुत्व, समता और न्याय की भावना से ही व्यक्ति के
आत्मसम्मान और गरिमा को सुरक्षित रखा जा सकता है। संविधान का उद्देश्य केवल विधि
का शासन स्थापित करना नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को
उसके अधिकार, अवसर और सम्मान के साथ जीवन जीने का वातावरण
प्रदान करना भी है।“
डॉ. भीमराव अंबेडकर की दृष्टि में बंधुत्व का महत्व
डॉ. भीमराव अंबेडकर
ने संविधान सभा में कहा था:
"बंधुत्व का अर्थ केवल सामाजिक समरसता तक सीमित नहीं है,
बल्कि यह एक ऐसा आदर्श है जो व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखता है और
राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करता है।"
डॉ. अंबेडकर ने यह
भी कहा था कि बिना बंधुत्व के समता और स्वतंत्रता के आदर्श अधूरे रह जाते हैं।
उन्होंने समाज में जातिवाद और असमानता को समाप्त कर बंधुत्व को बढ़ावा देने पर
विशेष बल दिया था।
अनुच्छेद 51A
के अनुसार बंधुत्व का महत्व
भारतीय संविधान का अनुच्छेद
51A मूल कर्तव्यों (Fundamental Duties) से संबंधित है,
जिसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम,
1976 के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था। इस अनुच्छेद में
नागरिकों को देश के प्रति अपने कर्तव्यों की जानकारी दी गई है, जिसमें बंधुत्व (Fraternity) को बनाए
रखना भी शामिल है।
बंधुत्व और
अनुच्छेद 51A का संबंध:
अनुच्छेद 51A(e)
के अनुसार:
"भारत
के सभी नागरिकों का यह कर्तव्य होगा कि वे समस्त भारतवासियों के बीच समरसता और
सामान्य बंधुत्व की भावना को बढ़ावा दें जो धर्म, भाषा और
क्षेत्र अथवा वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव को समाप्त करे और स्त्रियों की गरिमा का
सम्मान करें।"
बंधुत्व का महत्व
अनुच्छेद 51A में:
1. सामाजिक समरसता और सौहार्द:
अनुच्छेद 51A(e) नागरिकों को यह कर्तव्य देता है कि वे सामाजिक समरसता और बंधुत्व को बढ़ावा दें, ताकि धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सके। बंधुत्व की भावना समाज में एकजुटता और शांति बनाए रखने में सहायक होती है।2. स्त्रियों की गरिमा का सम्मान:
इस अनुच्छेद में विशेष रूप से स्त्रियों की गरिमा (Dignity of Women) का सम्मान करने की बात कही गई है। बंधुत्व का अर्थ है कि समाज में सभी वर्गों, विशेषकर महिलाओं को समान अधिकार और सम्मान दिया जाए।3. अनेकता में एकता का आदर्श:
बंधुत्व की भावना “अनेकता में एकता” के आदर्श को मजबूत करती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में यदि नागरिक बंधुत्व की भावना का पालन करेंगे, तो राष्ट्र की एकता और अखंडता बनी रहेगी।4. सामाजिक न्याय और समानता:
बंधुत्व समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देता है। जब व्यक्ति अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होता है, तो समाज में कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के भेदभाव या अन्याय का शिकार नहीं होता।5. राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा:
अनुच्छेद 51A का उद्देश्य केवल व्यक्ति के कर्तव्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय अखंडता और एकता की रक्षा का भी संदेश देता है। जब नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और बंधुत्व को अपनाते हैं, तो देश में शांति, सद्भाव और एकजुटता का वातावरण बना रहता है।"अनुच्छेद 51A(e)
के तहत बंधुत्व का उद्देश्य नागरिकों में आपसी सौहार्द और
समरसता की भावना विकसित करना है। यह केवल कानूनी कर्तव्य नहीं है, बल्कि समाज में समानता, न्याय और सामाजिक
सौहार्द बनाए रखने का एक नैतिक दायित्व भी है। जब सभी
नागरिक बंधुत्व की भावना अपनाएंगे, तभी समाज में शांति,
प्रगति और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सकेगी।“
बंधुत्व की चुनौतियाँ और समाधान
बंधुत्व के आदर्श
को वास्तविकता में बदलने के लिए कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ मौजूद हैं:
1. जाति
आधारित असमानता: भारतीय समाज में जाति आधारित भेदभाव
अभी भी विद्यमान है, जो बंधुत्व के आदर्श को
कमजोर करता है।
2. सांप्रदायिकता
और धार्मिक असहिष्णुता: सांप्रदायिकता समाज में
विभाजन पैदा करती है और बंधुत्व की भावना को कमजोर करती है।
3. आर्थिक
असमानता: गरीबी और आर्थिक असमानता भी समाज में
बंधुत्व की भावना को कमजोर करती है।
समाधान:
- समता और न्याय को बढ़ावा देना
ताकि सभी नागरिक समान अवसर प्राप्त कर सकें।
- सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक
सहिष्णुता को प्रोत्साहित करना।
- आर्थिक विषमता को समाप्त कर समाज
में समावेशी विकास को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान की
प्रस्तावना में उल्लिखित 'बंधुत्व' का महत्व भारतीय समाज के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने और राष्ट्र की
एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बंधुत्व का
उद्देश्य सभी नागरिकों में परस्पर भाईचारे, प्रेम और
सौहार्द्र को बढ़ावा देना है ताकि समाज में समता, न्याय और
स्वतंत्रता के आदर्शों को साकार किया जा सके। भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर
बंधुत्व के सिद्धांत को संरक्षण प्रदान किया है और इसे संविधान की मूल संरचना का
हिस्सा माना है। बंधुत्व का आदर्श तभी सार्थक होगा जब समाज में हर व्यक्ति समान
अधिकारों, अवसरों और सम्मान के साथ जीवन यापन कर सकेगा।
भारतीय संविधान के प्रस्तावना में 'बंधुत्व' से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
1. प्रश्न: बंधुत्व
(Fraternity) का अर्थ क्या है?
उत्तर:
बंधुत्व का अर्थ परस्पर भाईचारा, सम्मान और सहिष्णुता
की भावना है, जो सभी नागरिकों के बीच समरसता और सौहार्द्र को
बढ़ावा देता है। यह समाज में एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
2. प्रश्न: संविधान
की प्रस्तावना में बंधुत्व का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्रस्तावना में बंधुत्व का उद्देश्य व्यक्ति की गरिमा (Dignity
of the Individual) और राष्ट्र की एकता और अखंडता (Unity and
Integrity of the Nation) को सुनिश्चित करना है।
3. प्रश्न: बंधुत्व
का संविधान में कानूनी आधार क्या है?
उत्तर:
- अनुच्छेद 14:
विधि के समक्ष समता का अधिकार
- अनुच्छेद 15:
भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद 51A(e):
मौलिक कर्तव्यों में बंधुत्व को बढ़ावा देने का प्रावधान
4. प्रश्न: डॉ.
भीमराव अंबेडकर ने बंधुत्व को क्यों महत्वपूर्ण माना?
उत्तर:
डॉ. अंबेडकर ने बंधुत्व को समाज में सामाजिक समरसता, समानता
और न्याय का आधार बताया। उन्होंने कहा कि बंधुत्व के बिना समता और स्वतंत्रता का
आदर्श अधूरा रह जाता है।
5. प्रश्न: केसवानंद
भारती मामले (1973) में बंधुत्व से संबंधित क्या निर्णय दिया
गया?
उत्तर:
केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बंधुत्व को
संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का
हिस्सा माना और इसे संशोधन द्वारा समाप्त न करने योग्य बताया।
6. प्रश्न: अनुच्छेद
51A(e) में बंधुत्व का क्या महत्व है?
उत्तर:
अनुच्छेद 51A(e) के तहत प्रत्येक नागरिक का यह
कर्तव्य है कि वह धर्म, भाषा और क्षेत्र के बावजूद सभी में
भाईचारे और समरसता की भावना को बढ़ावा दे और स्त्रियों की गरिमा का सम्मान करे।
7. प्रश्न: बंधुत्व
का सामाजिक उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
बंधुत्व का उद्देश्य जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की दीवारों को तोड़कर सामाजिक समरसता, समानता और सम्मान को बढ़ावा देना है।
8. प्रश्न: मिनर्वा
मिल्स बनाम भारत संघ (1980) मामले में बंधुत्व पर क्या
टिप्पणी की गई?
उत्तर:
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बंधुत्व का उद्देश्य समाज में सामाजिक
और आर्थिक विषमताओं को समाप्त करना और समता तथा न्याय को बढ़ावा देना है।
9. प्रश्न: बंधुत्व
और राष्ट्रीय एकता में क्या संबंध है?
उत्तर:
बंधुत्व समाज में भाईचारा, सम्मान और समरसता को बढ़ावा
देता है, जिससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूती मिलती
है।
10. प्रश्न:
बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देने के लिए संविधान में कौन-कौन से प्रावधान हैं?
उत्तर:
- अनुच्छेद 14:
विधि के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 15:
भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद 16:
समान अवसर का अधिकार
- अनुच्छेद 21:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
11. प्रश्न:
सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) मामले में बंधुत्व से
संबंधित क्या कहा गया?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व एक-दूसरे के पूरक हैं और
समाज में सौहार्द बनाए रखना राष्ट्र की एकता के लिए आवश्यक है।
12. प्रश्न:
बंधुत्व से संबंधित मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर:
- जाति आधारित असमानता
- सांप्रदायिकता और धार्मिक
असहिष्णुता
- आर्थिक विषमता और गरीबी
13. प्रश्न:
बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
उत्तर:
- सामाजिक न्याय और समता को बढ़ावा
देना
- सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक
सहिष्णुता को प्रोत्साहित करना
- आर्थिक विषमता को समाप्त कर
समावेशी विकास को बढ़ावा देना
14. प्रश्न:
के. एम. मुंशी ने बंधुत्व और व्यक्ति की गरिमा को कैसे जोड़ा?
उत्तर:
के. एम. मुंशी ने कहा कि बंधुत्व का उद्देश्य व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखना है।
जब व्यक्ति को समान अवसर और न्याय मिलता है, तभी वह
गरिमा का अनुभव करता है।
15. प्रश्न:
क्या बंधुत्व केवल धार्मिक और जातीय समरसता तक सीमित है?
उत्तर:
नहीं,
बंधुत्व का अर्थ केवल धार्मिक और जातीय समरसता तक सीमित नहीं है। यह
सभी नागरिकों में समानता, स्वतंत्रता और न्याय के साथ परस्पर
सौहार्द और सहयोग की भावना को भी दर्शाता है।
16. प्रश्न:
अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) और बंधुत्व में
क्या संबंध है?
उत्तर:
अनुच्छेद 21 व्यक्ति की गरिमा और आत्मसम्मान को
सुनिश्चित करता है, जो बंधुत्व के आदर्श का एक महत्वपूर्ण
पहलू है।
17. प्रश्न:
क्या बंधुत्व को संविधान संशोधन द्वारा समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
नहीं,
बंधुत्व संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और इसे संशोधन
द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता।
18. प्रश्न:
बंधुत्व और लोकतंत्र में क्या संबंध है?
उत्तर:
बंधुत्व लोकतंत्र की आत्मा है, क्योंकि यह समाज में
समानता, न्याय और स्वतंत्रता को बढ़ावा देकर सभी नागरिकों को
परस्पर सम्मान और सौहार्द से जोड़ता है।
19. प्रश्न:
बंधुत्व और सामाजिक समरसता कैसे जुड़े हैं?
उत्तर:
बंधुत्व का उद्देश्य समाज में समरसता, सौहार्द
और समानता को बढ़ावा देना है ताकि सभी नागरिक परस्पर प्रेम और सम्मान से साथ रह
सकें।
20. प्रश्न:
बंधुत्व के आदर्श को कैसे वास्तविकता में बदला जा सकता है?
उत्तर:
बंधुत्व के आदर्श को वास्तविकता में बदलने के लिए शिक्षा,
संवैधानिक मूल्यों का प्रचार, भेदभाव का
उन्मूलन और समाज में न्याय व समानता को बढ़ावा देना आवश्यक है।