भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान की आत्मा है, जो हमारे राष्ट्र की मूलभूत अवधारणाओं, उद्देश्यों और लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है। प्रस्तावना यह सुनिश्चित करती है कि संविधान का उद्देश्य एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना है, जहां न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को बढ़ावा दिया जाए। प्रस्तावना न केवल संविधान की मंशा को प्रकट करती है, बल्कि यह संविधान को व्याख्या करते समय न्यायालयों को मार्गदर्शन भी प्रदान करती है।
प्रस्तावना का मूल पाठ
“हम,
भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण
प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष,
लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
- सामाजिक,
आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
- विचार,
अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
- प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए,
- और उन सब में व्यक्ति की गरिमा और
राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
प्रस्तावना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
(Preamble) का निर्माण कई ऐतिहासिक घटनाओं, आंदोलनों
और विचारधाराओं से प्रभावित रहा है। इसके मूल सिद्धांतों का आधार भारतीय
स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक सुधार आंदोलन और वैश्विक
विचारधाराओं में निहित है। यहां कुछ प्रमुख बाहरी स्रोत और घटनाएं दी जा रही हैं,
जिन्होंने प्रस्तावना के विचारों को आकार दिया –
1. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और स्वराज की अवधारणा
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के
अधिवेशन: 1931 का कराची
अधिवेशन महत्वपूर्ण था, जहाँ पूर्ण स्वतंत्रता (Complete
Independence) की मांग के साथ-साथ मौलिक अधिकारों
(Fundamental Rights) और आर्थिक समानता पर भी बल दिया गया।
- 1929 का लाहौर अधिवेशन:
पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज (Purna
Swaraj) की घोषणा की गई,
जो स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण मोड़ बना।
प्रभाव:
प्रस्तावना में उल्लिखित न्याय, स्वतंत्रता
और समानता जैसे मूल्य इन आंदोलनों की ही देन
हैं।
2. नेहरू रिपोर्ट (1928)
- मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में
तैयार की गई इस रिपोर्ट में भारत के लिए एक स्वतंत्र संविधान का
प्रारूप प्रस्तुत किया गया था। इसमें मौलिक अधिकारों,
धर्मनिरपेक्षता और समानता पर विशेष जोर दिया गया था।
प्रभाव:
प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता (Secularism) और
लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic Republic) की भावना का बीज
इसी रिपोर्ट से लिया गया।
3. अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा (1776)
- अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा
में "सभी मनुष्यों को समान रूप से
जन्म देने" और "जीवन, स्वतंत्रता और सुख की खोज"
जैसे विचार निहित थे।
प्रभाव:
प्रस्तावना में न्याय, स्वतंत्रता और समानता
की अवधारणा इस ऐतिहासिक घोषणा से प्रेरित है।
4. फ्रांसीसी क्रांति (1789) और स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व
- फ्रांसीसी क्रांति ने "Liberty,
Equality, Fraternity" का
नारा दिया, जो आधुनिक लोकतंत्र की बुनियाद बना।
प्रभाव:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में "स्वतंत्रता
(Liberty), समानता (Equality) और
बंधुत्व (Fraternity)" का उल्लेख
इस क्रांति से प्रेरित है।
5. आयरिश संविधान (1937)
- आयरलैंड के संविधान में न्याय
और स्वतंत्रता जैसे मौलिक सिद्धांतों का उल्लेख किया गया था।
प्रभाव:
भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of
State Policy) और प्रस्तावना की अवधारणाएं आयरिश संविधान से
प्रभावित हैं।
6. गांधीवादी दर्शन और रचनात्मक कार्यक्रम
- महात्मा गांधी के स्वराज,
ग्राम स्वराज, अहिंसा और समानता
के विचार प्रस्तावना में न्याय और बंधुत्व की भावना में झलकते हैं।
प्रभाव:
संविधान में सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के विचार गांधीवादी दर्शन से
प्रेरित हैं।
7. भारतीय समाज सुधार आंदोलन और सामाजिक न्याय
- राजा राममोहन राय,
ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले,
बी.आर. आंबेडकर और अन्य समाज सुधारकों ने समानता,
सामाजिक न्याय और शिक्षा पर जोर
दिया।
प्रभाव:
प्रस्तावना में सामाजिक न्याय और समानता का विचार इन समाज सुधार आंदोलनों
से प्रेरित है।
“भारतीय
संविधान की प्रस्तावना केवल भारतीय परंपराओं और मूल्यों का ही प्रतिबिंब नहीं है,
बल्कि यह वैश्विक विचारधाराओं और ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरित एक सर्वसमावेशी
दृष्टिकोण है। प्रस्तावना में निहित उद्देश्य – न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व – इन ऐतिहासिक आंदोलनों और विचारधाराओं से विकसित हुए हैं, जो भारत को एक समावेशी और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने में मदद करते
हैं।“
प्रस्तावना की मुख्य विषय-वस्तु
1. संप्रभुता (Sovereignty):
प्रस्तावना भारत को
एक "संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न" राष्ट्र
घोषित करती है, जिसका अर्थ है कि भारत किसी भी बाहरी
शक्ति से स्वतंत्र है और देश के आंतरिक व बाहरी मामलों पर पूर्ण नियंत्रण रखता है।
भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है जो अपने फैसले स्वयं लेता है और किसी भी बाहरी दबाव
या हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है।
2. समाजवाद (Socialism):
1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में
"समाजवादी" शब्द जोड़ा गया। भारतीय समाजवाद का अर्थ यह है कि संसाधनों
का न्यायसंगत वितरण हो और आर्थिक असमानता को समाप्त किया जाए। भारत का समाजवाद
गांधीवादी समाजवाद है, जो अहिंसा और समानता पर आधारित है।
3. धर्मनिरपेक्षता (Secularism):
भारत को "धर्मनिरपेक्ष" राष्ट्र घोषित
किया गया है, जहां राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और
सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाएगा। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य धर्म
के मामलों में तटस्थ रहेगा और नागरिकों को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और पालन करने की पूरी स्वतंत्रता होगी।
4. लोकतंत्रात्मक गणराज्य (Democratic Republic):
भारत एक "लोकतंत्रात्मक गणराज्य" है।
लोकतंत्र का अर्थ है कि देश में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और जनता के प्रति
जवाबदेह होती है।
- गणराज्य (Republic):
इसका अर्थ है कि भारत का प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति)
जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से निर्वाचित होता है और यह पद
वंशानुगत नहीं होता।
5. न्याय (Justice):
प्रस्तावना
नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
न्याय का आश्वासन देती है।
- सामाजिक न्याय:
जाति, धर्म, लिंग
या जन्म स्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं।
- आर्थिक न्याय:
संसाधनों का समान वितरण और आर्थिक असमानता का उन्मूलन।
- राजनीतिक न्याय:
सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार और अवसर मिलें।
6. स्वतंत्रता (Liberty):
प्रस्तावना
नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
प्रदान करती है। यह स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने और किसी
भी धर्म को मानने की आजादी देती है।
7. समानता (Equality):
प्रस्तावना
नागरिकों को समान अवसर और कानून के समक्ष समानता प्रदान करती है। सभी
नागरिकों को किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना समान अधिकार मिलते हैं,
जिससे एक समान समाज की स्थापना होती है।
8. बंधुत्व (Fraternity):
प्रस्तावना देश में
बंधुत्व की भावना विकसित करने का संकल्प करती है,
जिससे व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो।
संविधान में प्रस्तावना का कानूनी महत्व
1. केशवानंद
भारती बनाम केरल राज्य (1973):
इस ऐतिहासिक मामले
में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है और
संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संसद संविधान की
मूल संरचना को नहीं बदल सकती है और प्रस्तावना में उल्लिखित मूल्यों और उद्देश्यों
का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
2. गोलकनाथ
बनाम पंजाब राज्य (1967):
इस मामले में
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का मार्गदर्शक सिद्धांत है और
इसकी व्याख्या में सहायता करती है।
3. बेरीबारी
यूनियन मामला (1960):
इस मामले में
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है,
लेकिन केशवानंद भारती मामले में इस दृष्टिकोण को बदल दिया गया और
प्रस्तावना को संविधान का अभिन्न हिस्सा माना गया।
संविधान के अनुच्छेद और प्रस्तावना का संबंध
अनुच्छेद 14:
समानता का अधिकार, जो प्रस्तावना के "समानता" सिद्धांत को मूर्त रूप देता है।
अनुच्छेद 19:
स्वतंत्रता के अधिकार, जो "स्वतंत्रता" के सिद्धांत का समर्थन करता है।
अनुच्छेद 21:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जो
व्यक्ति की "गरिमा" सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 38:
राज्य को समाजवादी, आर्थिक और सामाजिक न्याय
को बढ़ावा देने के लिए निर्देशित करता है।
42वां संविधान संशोधन और प्रस्तावना में बदलाव
1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में
तीन शब्द जोड़े गए:
1. समाजवादी
(Socialist)
2. धर्मनिरपेक्ष
(Secular)
3. राष्ट्रीय
एकता और अखंडता (Unity and Integrity of the Nation)
इन परिवर्तनों ने
संविधान की मूल भावना को और मजबूत किया और राष्ट्र के आदर्शों को अधिक स्पष्ट
किया।
निष्कर्ष
संविधान की
प्रस्तावना भारतीय गणराज्य के मूल उद्देश्य, आदर्शों
और सिद्धांतों को परिभाषित करती है। यह सामाजिक, आर्थिक और
राजनीतिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और
बंधुत्व के मूल सिद्धांतों को संरक्षित और संवर्धित करने का मार्गदर्शन प्रदान
करती है। प्रस्तावना न केवल संविधान का परिचय है, बल्कि यह
एक मार्गदर्शक प्रकाश भी है, जो भारतीय लोकतंत्र को
उसकी सही दिशा में बनाए रखती है। भारतीय न्यायपालिका ने भी प्रस्तावना को संविधान
की आत्मा के रूप में स्वीकार किया है और इसके मूल सिद्धांतों की रक्षा करना अपना
परम कर्तव्य माना है।
भारतीय संविधान की
प्रस्तावना: एक जीवंत मार्गदर्शक – FAQs (अक्सर
पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. भारतीय
संविधान की प्रस्तावना क्या है?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान का
परिचय और आत्मा है, जो भारत के लक्ष्यों, आदर्शों और मूल्यों को दर्शाती है। इसमें न्याय, स्वतंत्रता,
समानता और बंधुत्व जैसे मौलिक सिद्धांतों को स्थापित किया गया है,
जो भारत को एक संपूर्ण, समाजवादी,
धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है।
Q2. "हम,
भारत के लोग" का क्या अर्थ है?
उत्तर:
प्रस्तावना की शुरुआत "हम, भारत के लोग" से होती है,
जो यह दर्शाता है कि भारतीय संविधान की असली शक्ति जनता में निहित
है। इसका अर्थ है कि संविधान जनता द्वारा, जनता के
लिए और जनता के हित में बनाया गया है।
Q3. प्रस्तावना
में "संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न" का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
"संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न" का
अर्थ है कि भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है, जो
किसी भी बाहरी शक्ति के नियंत्रण में नहीं है और अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का
संचालन स्वतंत्र रूप से करता है।
Q4. प्रस्तावना
में "समाजवादी" का क्या अर्थ है?
उत्तर:
"समाजवादी" का अर्थ है कि भारत में
सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा दिया जाएगा। समाजवाद का उद्देश्य गरीबी,
आर्थिक असमानता और शोषण को समाप्त कर समाज के सभी वर्गों को समान
अवसर प्रदान करना है।
Q5. "धर्मनिरपेक्ष"
शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:
"धर्मनिरपेक्ष" का अर्थ है कि
भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा और राज्य सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान
करेगा। नागरिकों को अपने धर्म को मानने, प्रचार
करने और उसका पालन करने की पूरी स्वतंत्रता होगी।
Q6. प्रस्तावना
में "लोकतांत्रिक गणराज्य" का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
- "लोकतांत्रिक"
का अर्थ है कि भारत में जनता के द्वारा चुनी गई सरकार होगी,
जो जनता के प्रति जवाबदेह होगी।
- "गणराज्य"
का अर्थ है कि भारत का प्रमुख (राष्ट्रपति) जनता द्वारा निर्वाचित
प्रतिनिधियों के माध्यम से चुना जाता है, और
यह पद वंशानुगत नहीं होता।
Q7. भारतीय
संविधान की प्रस्तावना के चार मौलिक उद्देश्य कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में चार मुख्य उद्देश्य बताए गए हैं:
1. न्याय
(Justice): सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय।
2. स्वतंत्रता
(Liberty): विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास,
धर्म और उपासना की स्वतंत्रता।
3. समानता
(Equality): अवसरों की समानता और कानून के समक्ष समान व्यवहार।
4. बंधुत्व
(Fraternity): सभी नागरिकों के बीच भाईचारा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना।
Q8. प्रस्तावना
को संविधान में कब जोड़ा गया था?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान के अंग के रूप में 26
नवंबर 1949 को अपनाया
गया और 26 जनवरी 1950 को इसे
लागू किया गया।
Q9. 42वें
संविधान संशोधन (1976) द्वारा प्रस्तावना में क्या बदलाव किए
गए?
उत्तर:
42वें संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा
प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए:
1. समाजवादी
(Socialist)
2. धर्मनिरपेक्ष
(Secular)
3. राष्ट्रीय
एकता और अखंडता (Unity and Integrity of the Nation)
Q10. केशवानंद
भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में प्रस्तावना पर
न्यायालय का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न
अंग है और इसके मूल सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह
भी स्पष्ट किया कि संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) को
संसद द्वारा संशोधन द्वारा नहीं बदला जा सकता।
Q11. प्रस्तावना
को संविधान का भाग माना जाता है या नहीं?
उत्तर:
- प्रारंभ में बेरीबारी यूनियन
मामला (1960)
में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का
हिस्सा नहीं है।
- लेकिन केशवानंद भारती मामला (1973)
में इस दृष्टिकोण को बदला गया और कहा गया कि प्रस्तावना
संविधान का एक अभिन्न भाग है और इसकी मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता।
Q12. प्रस्तावना
का भारतीय न्यायपालिका पर क्या प्रभाव है?
उत्तर:
प्रस्तावना भारतीय न्यायपालिका के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में
कार्य करती है। न्यायालय संविधान की व्याख्या करते समय प्रस्तावना में निहित
मूल्यों और उद्देश्यों का ध्यान रखते हुए न्याय करता है।
Q13. इंदिरा
नेहरू गांधी बनाम राजनरेशन (1975) मामले में प्रस्तावना पर
क्या कहा गया?
उत्तर:
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान की नीतिगत दिशा बताने
वाला मार्गदर्शक दस्तावेज माना।
Q14. प्रस्तावना
में वर्णित "बंधुत्व" का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
"बंधुत्व" का अर्थ है कि सभी
नागरिकों में भाईचारे की भावना हो, जिससे
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो सके।
Q15. क्या
प्रस्तावना को संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर:
हां,
संसद अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन
द्वारा प्रस्तावना में परिवर्तन कर सकती है, लेकिन इस संशोधन
को संविधान की मूल संरचना के अनुरूप होना चाहिए।
Q16. प्रस्तावना
और अनुच्छेद 14, 19, और 21 का क्या
संबंध है?
उत्तर:
- अनुच्छेद 14:
समानता का अधिकार, जो प्रस्तावना के "समानता" के सिद्धांत को मूर्त रूप
देता है।
- अनुच्छेद 19:
स्वतंत्रता के अधिकार, जो प्रस्तावना में
उल्लिखित "स्वतंत्रता" के मूल सिद्धांत को दर्शाता है।
- अनुच्छेद 21:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जो "व्यक्ति की गरिमा" को सुनिश्चित करता है।
Q17. प्रस्तावना
को "संविधान की आत्मा" क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्रस्तावना को "संविधान की आत्मा"
इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भारतीय संविधान के लक्ष्यों,
आदर्शों और मूल्यों को परिभाषित करती है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मौलिक
सिद्धांतों को संजोए हुए है, जो भारतीय लोकतंत्र की नींव
हैं।
Q18. प्रस्तावना
और मौलिक अधिकारों का क्या संबंध है?
उत्तर:
प्रस्तावना में उल्लिखित मूलभूत उद्देश्यों को मौलिक अधिकारों (भाग III)
के माध्यम से सुनिश्चित किया गया है। यह नागरिकों को समानता,
स्वतंत्रता और न्याय जैसे अधिकार प्रदान करता है।
Q19. क्या
प्रस्तावना को न्यायालय में लागू किया जा सकता है?
उत्तर:
प्रस्तावना को सीधे तौर पर लागू नहीं किया जा सकता, लेकिन
संविधान की व्याख्या और नीतियों के निर्माण में इसका उपयोग न्यायालय
मार्गदर्शक के रूप में करता है।
Q20. प्रस्तावना
का महत्व क्यों है?
उत्तर:
प्रस्तावना भारतीय संविधान की मूल भावना और दिशा को परिभाषित करती है। यह
हमारे लोकतंत्र को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की ओर प्रेरित करती है और राष्ट्र को एक समान, न्यायसंगत और समावेशी समाज बनाने का मार्ग दिखाती है।